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रूस के चाय-बागानों में चाय कैसे उगाई जाती है

/ Lori/Legion-Media

भारत और श्रीलंका की तरह रूस में भी चाय उगाई जाती है। हर साल रूसी लोग 1 लाख 70 हज़ार टन चाय पी जाते हैं, जबकि ब्रिटेन में भी चाय की इतनी ज़्यादा खपत नहीं होती है। सबसे ज़्यादा आश्चर्य की बात तो यह है कि रूस एक ठण्डा देश है, इसके बावजूद रूस में चाय उगाई जाती है।

दुनिया के धुर उत्तरी चायबागान कोहकाफ़ के उस इलाके में बने हुए हैं, जहाँ 2014 के शीतकालीन ओलम्पिक खेलों की राजधानी सोची से बस डेढ़ घण्टे का सफ़र करके पहुँचा जा सकता है। सोची मस्क्वा से 1400 किलोमीटर दूर एक पर्यटन नगरी है, जहाँ लोग आराम करने के लिए जाते हैं। लेकिन सोची आने वाले दस लाख से ज़्यादा पर्यटकों में से, बस, इक्का-दुक्का  पर्यटक ही रूस के इन चायबागानों को देखने पहुँचते हैं क्योंकि बहुत कम लोग यह जानते हैं कि रूस में भी चाय पैदा होती है।

रूसी चाय के पूर्वज 

उपोष्णकटिबंधीय हरियाली में डूबे सोची के समुद्रतटीय इलाके में एक पहाड़ी सर्पीली पगडण्डी पर चढ़कर सलोख़ अऊल गाँव तक पहुँचा जा सकता है। यह चाय की खेती करने वाले किसानों का गाँव है। गाँव में जगह-जगह मरखनी गायों से बचने की चेतावनी लगी हुई है क्योंकि इस गाँव में परम्परागत रूप से पशुपालन किया जाता रहा है। 1901 में पड़ोसी जार्ज़िया प्रदेश से एक 61 वर्षीया बूढ़ा इऊदा कोशमन अपनी पत्नी मत्र्योना के साथ इस गाँव में रहने चला आया।

पहले यह जोड़ा सुख़ूमी की चाय फ़ैक्ट्री में नौकरी किया करता था। उन्होंने गाँव में आकर गाँव के एक किनारे पर बना छोटा-सा घर ख़रीद लिया और उसमें रहने लगे। बाद में उन्होंने धीरे-धीरे घर के चारों ओर कुछ क्यारियाँ बना लीं और उनमें कुछ झाड़ियाँ-सी बो दीं। ये झाड़ियाँ वे अपने साथ एक बोरे में लेकर आए थे। तीन साल बाद उन्होंने अपने पड़ोसियों को चाय पीने के लिए अपने घर बुलाया और उन्हें अपने घर में उगी हुई चाय पीने के लिए दी।  

/ TASS/Artur Lebedev

आज फ़िश्त नामक पहाड़ के ऊपर बसे इस सलोख़ अऊल गाँव में जंगली ढलान के किनारे-किनारे कोई पचास-एक लकड़ी के घर बसे हुए हैं। फ़िश्त पहाड़ की चोटी पर गर्मियों के दिनों में भी बर्फ़ पड़ी रहती है। गाँव की एकमात्र पथरीली सड़क सफ़ेद सरियों से घिरे लकड़ी के एक सफ़ेद घर पर जाकर ख़त्म हो जाती है। इस मकान पर लगे बोर्ड पर लिखा हुआ है — कोशमन फ़ार्म संग्रहालय। संग्रहालय की प्रबन्धक येलेना ज़विर्यूख़ा बताती हैं — यहीं पर कोशमन परिवार रहता था। इस झोंपड़ेनुमा मकान में एक छोटा-सा कमरा बना हुआ है। इस कमरे में दो चारपाइयाँ पड़ी हुई हैं और एक लकड़ी का बक्सा रखा हुआ है। कमरे की एक दीवार पर घुंघराली दाढ़ी वाले एक वृद्ध और सिर पर स्कार्फ़ बाँधे हुए एक बूढ़ी महिला की तस्वीरें लगी हुई हैं।

तभी येलेना यह कहते हुए बराबर वाले कमरे में घुस जाती हैं — और यहाँ चाय बनाई जाती थी। इस कमरे में आधी जगह रूसी अँगीठी (फ़ायरप्लेस) ने घेर रखी है। बाक़ी आधी जगह में लकड़ी की एक मेज़ रखी हुई है और उस पर चाय की सूखी पत्तियाँ मुड़ी-तुड़ी पड़ी हैं। कमरे की खिड़की से चाय की वह झाड़ी दिखाई दे रही है, जिसे कभी ख़ुद कोशमन परिवार ने 1901 में लगाया था। यहीं इस छोटे से चायबागान में ही रूस में सबसे पहले चाय उगाने वाले कोशमन परिवार को दफ़नाया गया था।

/ Lori/Legion-Media

— ये सबसे पुराने रूसी चाय के पौधे हैं — खिड़की की तरफ़ इशारा करते हुए येलेना बताती हैं — अगर इनकी ठीक से देखभाल की जाए और समय पर कटाई-छँटाई की जाए तो ये पौधे पाँच सौ साल तक ज़िन्दा रहेंगे। हर साल हम इन पौधों की चाय इकट्ठी करते हैं और सँग्रहालय में हम अपनी चाय ही पीते हैं। 

काली चाय या हरी चाय?

रूस में आम तौर पर काली चाय सड़ाकर पी जाती है। इस चाय को बनाने के लिए चाय की पत्तियाँ तोड़कर उन पर हलका दबाव डालकर उन्हें मसला जाता है, उसके बाद उन्हें इतना ऐंठा जाता है कि उनका रस बाहर छलकने लगता है। इससे चाय की सड़ने की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है। येलेना बताती हैं — आजकल चाय फ़ैक्ट्रियों में चाय को विशेष तरह की मशीनों से ऐंठा जाता है, लेकिन बीसवीं सदी के शुरू में कोशमन परिवार यह सारा काम अपनी उँगलियों और हथेलियों से किया करता। एक बार मैंने भी अपनी बेटी के साथ अपने हाथ से चाय बनाने की कोशिश की। एक किलो चाय की ताज़ा पत्तियाँ तोड़कर हमने उन्हें मसला। उसके बाद एक हफ़्ते तक हमारे हाथों में दर्द होता रहा। यह बड़ी मेहनत का काम है।   

पत्तियों से रस छलकने के बाद हमने उन्हें कुछ देर चूल्हे के ऊपर रख दिया और उसके बाद उन्हें एक छप्पर के नीचे सूखने के लिए डाल दिया।

/ TASS/Artur Lebedev

इस तरह से अपनी चाय बनाकर इऊदा कोशमन उसे अपने कन्धों पर लादकर पहाड़ी पगडण्डियों पर चलता हुआ पैदल ही 25 मील (40 कि०मी०) दूर सोची के बाज़ार में बेचने के लिए जाता था। 

सोची के व्यापारी इस दढ़ियल पहाड़ी आदमी को देखकर उसकी हँसी उड़ाया करते थे कि वो इतनी ताज़ा चाय कहाँ से ले आता है। वे सोचा करते थे कि सर्दियों में तो सोची के पहाड़ बर्फ़ से ढके होते हैं, तापमान भी शून्य से दस डिग्री तक कम होता है तो इतने ठण्डे मौसम में गर्म मौसम में पैदा होने वाली चाय कहाँ से आती है।  

/ RIA Novosti/Nina Zotina

जब कोशमन ने रूस की विज्ञान अकादमी को अपनी चाय भेजी तो रूसी विज्ञान अकादमी ने उसे उत्तर में लिखा कि वह मज़ाक क्यों कर रहा है, रूस में तो जार्जिया के उत्तरी प्रदेशों के अलावा और कहीं भी चाय पैदा हो ही नहीं सकती है। केवल रूसी समाजवादी क्रान्ति के बाद 1920 में ही रूस की सरकार ने कोशमन की इस शुरूआत की तरफ़ ध्यान दिया। इसके बाद सलोख़ अऊल गाँव के आसपास चायबागान बनाए गए, जिनमें पिछली सदी के आठवें दशक में 7 हज़ार टन चाय की पैदावार प्रतिवर्ष होती थी। बाद में सोवियत कृषि वैज्ञानिकों ने चाय की ऐसी क़िस्में तैयार कर लीं जो ठण्ड भी सह सकती थीं।

चाय का स्वाद

संग्रहालय की रसोई में येलेना गर्म पानी से चीनी मिट्टी की केतली को धोकर उसमें चाय की पत्तियाँ डाल देती हैं। उसके बाद वे ताम्बे के समोवार से केतली में गर्म उबलता हुआ पानी उँड़ेल देती हैं। रूसी चाय कड़ी नहीं होती। उसका रंग कुछ-कुछ उजला होता है। लेकिन रूसी चाय अलग-अलग स्वादों में उपलब्ध है। विभिन्न फलों के स्वादों में भी और विभिन्न किस्म के फ़ूलों की हलकी ख़ुशबुओं वाले स्वादों में भी।

/ RIA Novosti/Nina Zotina

इऊदा कोशमन ने चाय की अपनी कम्पनी खोल ली थी, जिसका नाम रखा था  — सलोहअऊल्स्की चाय। आज इस कम्पनी के चायबागान 60 हैक्टर (148 एकड़) में फैले हुए हैं। 25 साल पहले इस कम्पनी के चायबागान इससे कई गुना ज़्यादा बड़े इलाकों में बने हुए थे। लेकिन उसके बाद आर्थिक मन्दी का ज़माना आया और रूसी चाय उद्योग भी खत्म हो गया।

चाय की पत्तियों की तुड़ाई वसन्त काल में शुरू होती है, जब पहाड़ों पर जमी बर्फ़ पिघल जाती है। कम्पनी के निदेशक कोशमान द्वारा लगाए गए चाय के पौधों से चाय की पहली पत्तियाँ तोड़कर सीजन शुरू करते हैं। इसके बाद कृषि-मज़दूर चाय जमा करना शुरू कर देते हैं। अप्रैल से अक्तूबर के महीने तक बीसियों टन चाय तोड़कर जमा कर ली जाती है। इस चाय को फ़ैक्ट्री में मशीनों से ऐंठा और बटा जाता है और उसको सुखाया जाता है। 

/ TASS/Viktor Velikzhanin,Vadim Kozhevnikov

अभी कुछ समय पहले तक स्थानीय काली और हरी चाय सिर्फ़ सलोह अऊल में ही ख़रीदी जा सकती थी या उसे इण्टरनेट शॉप पर ही ख़रीदना सम्भव था। अब पिछले दो साल से रूसी चाय फिर से रूस के सुपर बाज़ारों में बिकने लगी है।

लेकिन येलेना का मानना है कि कोशमन के चायबागानों की चाय जब चायबागानों में ही बनाई जाती है तो उसका स्वाद दुकानों में बिकने वाली चाय से बहुत बेहतर होता है। येलेना ने सोची शहर में शिक्षा पाई है। लेकिन पढ़ाई ख़त्म करने के बाद वे अपने गाँव सलोह अऊल वापिस लौट आईं। उन्होंने बताया कि हर साल सलोह अऊल आने वाला कोई न कोई पर्यटक यहीं रुक जाता है और हफ़्ते-दो हफ़्ते चाय तोड़ता है। ये चायबागान पहाड़ों की ऊँचाइयों पर फैले हैं। कहीं-कहीं पहुँचने के लिए तो घोड़े की ज़रूरत पड़ती है। चाय हाथ से ही तोड़ी जाती है, जैसे ख़ुद कोशमन तोड़ते थे। यह एक विरल अनुभव है। यह एक जीवन्त परम्परा है, जो रूस के इस आरामगाह प्रदेश में किसी जादू की तरह सुरक्षित रह गई है। 

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