साँक्त पितेरबुर्ग के आसपास बसे पाँच ऐतिहासिक स्थान
रूस का साँक्त पितेरबुर्ग नगर दुनिया भर के पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय है
पितिरगोफ़
यह साँक्त पितेरबुर्ग का सबसे शानदार उपनगर माना जाता है। पितिरगोफ़ उपनगर फ़िनलैण्ड की खाड़ी के किनारे बसा हुआ है। यहाँ पर रूसी ज़ार प्योतर प्रथम का बग़ीचा बना हुआ है। यह बग़ीचा ज़ार के मोनप्लेज़िर महल का हिस्सा है। रूसी ज़ार प्योतर इतने सामान्य ढंग से रहते थे कि उनका बग़ीचा देखने में किसी हवेली का साधारण अहाता लगता है और उनका महल कोई साधारण सी हवेली। ज़ार का बड़ा महल भी आज हमें किसी बैरक की तरह दिखाई देता है। ज़ार के महल के चारों तरफ़ रूसी किसानों के घर बने हुए थे। इन घरों को देखकर ही यह अहसास हो जाता था कि वे घर किसानों ने बड़ी कठिनाई से किसी तरह बना लिए हैं।
Shutterstock/Legion-Media
लेकिन यह महल और यह बग़ीचा ज़ार प्योतर को बहुत प्रिय था। ज़ार का कहना था कि यहाँ समुद्र के किनारे बहकर आने वाली समुद्री हवा उनके लिए किसी औषधि का काम करती है और उन्हें स्वस्थ रखती है। ज़ार ने महल की ख़ूबसूरती बढ़ाने के लिए अपने बग़ीचे में यूरोप की तरह हरी घास लगाने और एक ख़ूबसूरत फव्वारा बनाने का आदेश दिया था। ज़ार प्योतर अपने देसी-विदेशी मेहमानों का स्वागत भी अनोखे ढंग से किया करते थे। खाने-पीने के बाद वे मेहमानों को यह आदेश देते थे कि वे कुल्हाड़ियाँ और फावड़े उठाएँ और व्यायाम करने तथा खाना पचाने के लिए उनके बग़ीचे में काम करें। वे मेहमानों से कहते थे कि उन्हें बग़ीचे में जाकर किसानों के साथ लकड़ी चीरनी चाहिए और ज़मीन की खुदाई करनी चाहिए।
आज पितिरगोफ़ में बग़ीचे की जो सौन्दर्य दिखाई देता है, वह ख़ूबसूरती ज़ार प्योतर प्रथम की मृत्यु के बाद उनकी बेटी साम्राज्ञी येलिजावेता के आदेश पर क़ायम की गई थी। येलिज़ावेता ने ही पितिरगोफ़ में बने बड़े महल का पुनर्निर्माण कराकर उसे सुन्दर बनाया था। वही सौन्दर्य आज भी हम पितिरगोफ़ में देखते हैं।
पूश्किन
Lori/Legion-Media
पूश्किन क़स्बे का मुख्य दर्शनीय स्थल है – संरक्षित क्षेत्र ’त्सारसकए सिलो’ (राजा का गाँव)। इस क़स्बे का पुराना नाम भी ’त्सारसकए सिलो’ ही है। बाद में इसका नाम पूश्किन रख दिया गया। इस क़स्बे के बीचोंबीच येकतिरीन्स्की महल बना हुआ है। यह महल रूस की साम्राज्ञी येकतिरीना द्वितीय का ग्रीष्म महल था, जहाँ महारानी येकतिरीना गर्मियों में रहा करती थीं। इसी महल में पीले कहरूबा पत्थर की कलाकृतियों से सजा एक कक्ष था। लेकिन द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान इन सभी कलाकृतियों को चुरा लिया गया। हाल ही में इस कमरे को फिर से उन्हीं कहरूबा कलाकृतियों की प्रतिकृतियों से सजा दिया गया है। अब दर्शक इसे फिर से देख सकते हैं और इन कलाकृतियों के सौन्दर्य का रसपान कर सकते हैं।
TASS/Eugene Asmolov
गर्मियों में और छुट्टी वाले दिन पूश्किन क़स्बे में पर्यटकों की भारी भीड़ होती है। लेकिन पूश्किन का वास्तविक सौन्दर्य जाड़ों के दिनों में ही दिखाई देता है। येकतिरीनस्की महल के चारों तरफ़ येकतिरीनस्की पार्क बना हुआ है। इस पार्क में तरह-तरह के ख़ूबसूरत मण्डप बने हुए हैं। अक्तूबर से अप्रैल तक येकतिरीन्स्की महल और पार्क को देखने के लिए टिकट नहीं लेना पड़ता। महल के पास ही त्सारकए सिलो का लिसेयुम या वह स्कूल बना हुआ है, जहाँ विश्व-प्रसिद्ध महान् रूसी कवि अलिक्सान्दर पूश्किन पढ़ा करते थे।
Photoxpress
येकतिरीनस्की पार्क के भीतर ही अलिक्सान्दरस्की महल भी बना हुआ है। महारानी येकतिरीना ने अपने पौत्र साशा को यह महल उसके विवाह के अवसर पर उपहार में दिया था। बाद में यही साशा अलिक्सान्दर प्रथम के नाम से रूस की गद्दी पर बैठे। यह महल अलिक्सान्दर प्रथम और उनके सगे भाई निकलाय प्रथम का प्रिय महल था। बाद में यह महल रूसी ज़ारवंश के सभी ज़ारों का प्रिय महल बना रहा। यहाँ तक कि रूस के अन्तिम ज़ार निकलाय द्वितीय ने अपनी ताजपोशी भी इसी महल में की थी। 1917 की क्रान्ति से पहले ज़ार निकलाय द्वितीय को कम्युनिस्टों ने इसी महल में गिरफ़्तार करके उन्हें साइबेरिया भेज दिया था।
पाव्लव्स्क
TASS/Irina Afonskaya
पाव्लव्स्क क़स्बा अनेक महलों और पार्कों वाला एक समृद्ध क़स्बा है, जिसे महारानी येकतिरीना द्वितीय ने अपने पुत्र पाविल को उपहार में दिया था। लेकिन पाविल को गातचिना नामक जगह बेहद पसन्द थी, इसलिए पाविल ने पाव्लव्स्क क़स्बा अपनी पत्नी को उपहार में दे दिया था। राजकुमार पाविल ने अपनी पत्नी के लिए यहाँ पवलोवस्की महल बनवाया था। अपने लिए पाविल ने यहीं पर एक खिलौनानुमा किला बनवाया था। ऊँची-ऊँची मीनारों वाले इस किले के चारों तरफ़ बनी खाइयों पर फ़ोल्डिंग पुल बने हुए थे, जिन्हें कभी भी हटाया जा सकता था। पाविल की मृत्यु होने के बाद इसी खिलौनानुमा किले में गूँगे-बहरों के लिए रूस का पहला स्कूल खोला गया था।
ज़ार निकलाय प्रथम के शासनकाल में पाव्लव्स्क क़स्बे तक रेलमार्ग बनाया गया था। पाव्लव्स्क का रेलवे स्टेशन इतना ख़ूबसूरत है कि उसे रूस का पहला सांस्कृतिक केन्द्र माना जाता है। इस रेलवे स्टेशन को म्यूजिकल रेलवे स्टेशन कहा जाता था। संगीतवादक योगान्न श्ट्राऊस यहाँ पर वायलिन बजाया करते थे। गायक शल्यापिन यहाँ आकर गाया करते थे। संगीतकार प्रकाफ़ियेफ़ यहाँ आकर पियानो बजाया करते थे, बैलेडाँसर आन्ना पाव्लवा यहाँ आकर बैले नृत्य किया करती थीं और दस्ताएवस्की, बाल्ज़ाक तथा ड्यूमा जैसे लेखक यहाँ आकर अपनी रचनाओं का पाठ किया करते थे। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यह म्यूजिकल रेलवे स्टेशन नष्ट हो गया। अब उसकी जगह बस, एक सजावटी लालटेन लगी हुई है।
क्रोनश्तात
Ruslan Shamukov
यह किला-नगर एक द्वीप पर बसा हुआ है। इस द्वीप पर रूसी नौसैनिक अड्डा और बन्दरगाह बना हुआ है। सोवियत सत्ता काल में इस द्वीप नगर में विदेशी लोग नहीं आ सकते थे। इस क़स्बे में जगह-जगह नौसैनिक स्मारक और जहाज़ों के लंगर दिखाई देते हैं। यहाँ बना गिरजा भी रूस के नौसैनिक विभाग से ही जुड़ा हुआ है। इस द्वीप नगर में निकोलस्की गिरजा सबसे ख़ूबसूरत गिरजा माना जाता है। जब मौसम खुला होता है तो इस गिरजे के सुनहरे गुम्बद दूर से ही चमकते नज़र आते हैं। साँक्त पितेरबुर्ग में भी इस गिरजे के घण्टों की आवाज़ें सुनाई देती हैं। इस द्वीप पर सबसे कुरूप लगता है – अलिक्सान्दर किला। लेकिन यह किला भी एक दिलचस्प दर्शनीय स्थल है। यहीं पर पुरानी महामारी प्रयोगशाला भी बनी हुई है, जिसमें जाने के लिए नाव में बैठकर उसके दरवाज़े तक जाना पड़ता है।
गातचिना
/ Press photo
जब तक रूस पर साम्राज्ञी येकतिरीना द्वितीय का शासन रहा, उनका पुत्र राजकुमार पाविल गातचिना में ’ज़ार का खेल’ खेलता रहा और अपनी खिलौना सेना की कमान सम्भालता रहा। राजकुमार पाविल की सेना के सैनिक प्रूशिया की सेना की तरह की वर्दी पहनते थे और राजकुमार पाविल अपने इन नकली खिलौना सैनिकों को तरह-तरह के पदक दिया करता था।
गातचिना क़स्बे में मुख्य दर्शनीय स्थल है – गातचिना का महल, जिसमें परेड के लिए एक मैदान भी बना हुआ है। इसी महल के साथ बने एक पार्क में ’कुबड़ा’ पुल और योद्धाओं का हिण्डोला बना हुआ है। पाविल के मेहमान इस हिण्डोले मे बने घोड़ों पर बैठकर झूला झूला करते थे और अपने भाले को एक गोल छल्ले में घुसाने की कोशिश करते थे।
राजकुमार पाविल को योद्धाओं वाले ये खेल इतने पसन्द थे कि जब अपनी माँ की मृत्यु के बाद वह ख़ुद ज़ार बना तो उसने नेपोलियन की सेना के शिकार हुए सैनिकों के लिए माल्टा पदक की स्थापना की और ख़ुद इस पदक को पाने वाला पहला ग्रैण्ड मास्टर बना। गातचिना में पाविल ने मुख्य माल्टा महल भी बनवाया था।