शंघाई सहयोग संगठन की बिश्केक बैठक में आपसी सहयोग बढ़ाने का संकल्प
’प्रधानमन्त्री परिषद’ शंसस में दूसरे स्तर की उच्चतम संस्था है
शंघाई सहयोग संगठन (शंसस) की स्थापना क्षेत्रीय आतंकवादी खतरों से निपटने और यूरेशियाई क्षेत्र में राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 2001 में की गई थी। अभी छह देश — रूस, चीन, किर्गिज़िस्तान, कज़ाख़स्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान इस संगठन के पूर्ण सदस्य हैं। बेलारूस, भारत, पाकिस्तान, ईरान, अफ़गानिस्तान और मंगोलिया शंसस के सम्मेलनों और बैठकों में पर्यवेक्षकों के रूप में तथा अरमेनिया, अज़रबैजान, कम्बोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की संवाद सहयोगी के तौर पर भाग लेते हैं।
उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष जून में ताशकन्द में हुए शंघाई सहयोग संगठन (शंसस) के शिखर-सम्मेलन में, भारत और पाकिस्तान को शंसस में पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार किया गया था। हाल में मीडिया में आई रिपोर्टों के अनुसार, शंसस की विभिन्न संस्थाओं में उनकी विधिवत सदस्यता की प्रक्रिया अपने अन्तिम चरण में पहुँच गई है। आशा है कि आगामी जून 2017 में अस्ताना (कज़ाख़स्तान) में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन के शिखर-सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान को औपचारिक रूप से शंघाई शिखर सम्मेलन का पूर्ण सदस्य बना लिया जाएगा।
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किर्गिज़िस्तान के प्रधानमन्त्री सूरोनबाय ज़ीनबेकोव की अध्यक्षता में बिश्केक में हुई बैठक में रूस के प्रधानमन्त्री दिमित्री मिदवेदफ़, चीन के प्रधानमन्त्री ली खछ्यांग, कज़ाख़स्तान के प्रधानमन्त्री बाहित्जान सागिन्तायेव, ताजिकिस्तान के प्रधानमन्त्री कोहिर रसूलज़ोदा और उज़्बेकिस्तान के प्रथम उप-प्रधानमन्त्री रुस्तम अज़िमोव ने भाग लिया।
बैठक के कार्यक्रम में निम्नलिखित मुद्दों को प्राथमिकता दी गई — शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य-देशों के बीच व्यापारिक और आर्थिक सहयोग बढ़ाने की संभावनाएँ, 2012 से 2016 तक की अवधि के लिए शंसस की परियोजनाओं को वित्तीय समर्थन देने की प्रक्रिया और विधि, 2017 से 2021 तक की अवधि के लिए परियोजनाओं की सूची, इस वर्ष जून में ताशकन्द में शंसस के शिखर-सम्मेलन में हस्ताक्षरित समझौतों का कार्यान्वयन और आतंकवाद, अतिवाद, पृथकतावाद तथा मादक-पदार्थों की तस्करी की मिलजुल कर रोकथाम करने के उद्देश्य से क्षेत्रीय सुरक्षा को पुख़्ता बनाना।
बैठक के सहभागियों ने कुल 12 समझौतों और एक सँयुक्त विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर किए। इन समझौतों में शंघाई सहयोग संगठन की ’प्रधानमन्त्री परिषद’ के निर्णय, शंसस के विकास बैंक, बहुपक्षीय व्यापार और आर्थिक सहयोग योजना के कार्यान्वयन पर संगठन के सचिवालय की रिपोर्ट, 2017 से 2021 तक की अवधि के लिए शंसस के तहत परियोजनाओं के और आगे विकास सम्बन्धी क़दमों की सूची, 2012 से 2016 तक की अवधि के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग सम्बन्धी संगठन के सदस्य-देशों के बीच हुए समझौते पर अमल करने की कामकाजी योजना, शंसस की सड़क विकास योजना और 2017 के लिए बजट शामिल हैं।
विगत 15 वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ है कि शंसस के सदस्य-देशों के प्रधानमन्त्रियों ने अपनी बैठक के दौरान शंसस के भीतर व्यापार और आर्थिक, वित्तीय और बैंकिंग तथा बुनियादी ढाँचे के विकास सम्बन्धी सहयोग से जुड़ी दीर्घकालीन परियोजनाओं की एक सूची पर हस्ताक्षर किए। शंसस सड़क विकास योजना के तहत समुद्र तक पहुँच न रखने वाले देश दूसरे परिवहन गलियारों का उपयोग कर सकेंगे। किर्गिज़िस्तान के प्रधानमन्त्री ज़ीनबेकोव ने बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा — हम ’रेशमी मार्ग’ के निर्माण की चीन और रूस की पहलकदमी का समर्थन करते हैं।
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उन्होंने कहा कि शंघाई सहयोग संगठन को विभिन्न परियोजनाओं के लिए धन जुटाने की ज़रूरत है ताकि शंसस विकास बैंक और शंसस विकास कोष के निर्माण का कार्य जारी रखा जा सके। ज़ीनबेकोव ने जोर देते हुए कहा — हमें उद्योग, व्यापार और रसद सेवाओं के विकास के लिए सहयोग सम्बन्धी एक व्यापक योजना भी बनानी चाहिए।
शंसस की ’प्रधानमन्त्री परिषद’ की बैठक को सम्बोधित करते हुए रूस के प्रधानमन्त्री दिमित्री मिदवेदफ़ ने कहा कि शंसस के सदस्य देश शंसस की कई योजनाओं को पूरा करने के लिए कारगर ढंग से सहयोग कर रहे हैं और उन्हें संयुक्त रूप से अमल में ला रहे हैं।
दिमित्री मिदवेदफ़ ने कहा — आज की कठिन परिस्थिति और उपस्थित आर्थिक समस्याओं के बावजूद, आज हम कह सकते हैं कि शंघाई सहयोग संगठन के निर्माण के सिलसिले में तय की गई वास्तविक कार्रवाइयों पर अमल किया जा चुका है और हम अब बड़ी संख्या में ऐसे आन्तरिक और अन्तरराष्ट्रीय कामों को पूरा करने के लिए साथ-साथ काम कर रहे हैं, जिनमें सुरक्षा मामले, अपराधों की रोक-थाम और निश्चित रूप से बुनियादी ढाँचा सम्बन्धी विशाल आर्थिक परियोजनाओं की पूर्ति शामिल है। बहरहाल, उन्होंने इस बात को रेखांकित करते हुए कहा कि अब तक सभी आर्थिक लक्ष्य पूरे नहीं किए गए हैं। उन्होंने कहा — हम पहले ही यह बता चुके हैं कि ऐसे भी लक्ष्य हैं, जिन तक हमें अभी पहुँचना है। ऐसी आर्थिक कार्रवाइयाँ हैं, जिन्हें हमें अभी पूरा करना है।
दिमित्री मिदवेदफ़ ने ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया जो विदेशी मण्डियों और तीसरे देश की मण्डियों में पहँचने के अलावा मालों और सेवाओं तथा विनियोगों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाएँ। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि शंसस के सदस्य-देशों में खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा की ओर हमें मुख्य तौर पर ध्यान देना चाहिए।
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चीन के प्रधानमन्त्री ली खछ्यांग ने व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के उद्देश्य से सदस्य-देशों के बीच व्यापार बाधाओं को दूर करने के लिए एक मुक्त व्यापार क्षेत्र का निर्माण करने की अपील की। उन्होंने कहा — हम मुक्त व्यापार क्षेत्र के निर्माण के सवाल पर आपस में सहयोग करने और इस बारे में विचार-विमर्श करने के लिए तैयार हैं। इससे व्यापार बाधाओं को दूर करने में मदद मिलेगी।
ली खछयांग ने चीन द्वारा प्रस्तावित ’एक मेखला, एक मार्ग’ योजना और रूस-नीत यूरेशियाई आर्थिक संघ के बीच समन्वय बढ़ाने की आवश्यकता को उदहारण के तौर पर पेश करते हुए शंसस के सदस्य-देशों के बीच विकास सम्बन्धी रणनीतियों के निर्बाध तालमेल और सामंजस्य की भी मांग की।
गौरतलब है कि बिश्केक बैठक से ठीक पहले 31 अक्तूबर को पेइचिंग में रूस के राजदूत अन्द्रेय देनिसफ़ ने कहा था कि चीन की ’रेशमी मार्ग आर्थिक मेखला’ योजना को रूस की यूरेशियाई एकीकरण परियोजना से जोड़ लिया गया है। अन्द्रेय देनिसफ़ ने तास समाचार समिति से कहा — यूरेशियाई एकीकरण परियोजना और सिल्क मार्ग परियोजना के बीच आपसी जुड़ाव की दिशा में काफ़ी प्रगति हुई है।
बैठक में पारित सँयुक्त विज्ञप्ति के अनुसार, चीन की ’एक मेखला, एक मार्ग’ योजना क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के लिए पहले से प्रस्तावित अन्तरराष्ट्रीय सहयोग और शंसस के सदस्य-देशों के रिश्तों को सुदृढ़ बनाने के प्रयासों में सहायक हैं। बैठक में इस बात पर भी सहमति जताई गई कि शंसस के सदस्य-देशों के बीच सहयोग बढ़ाना और उसे अधिक गहन बनाना शंसस के सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं के सतत विकास के हितों के अनुरूप हैं।
शंसस की प्रधानमन्त्री परिषद की बैठक में यूरेशियाई क्षेत्र में आतंकवादी गिरोह ’इस्लामी राज्य’ (इरा) सहित विभिन्न कट्टरवादी इस्लामी गुटों के बढ़ते हुए क्षेत्रीय आतंकी हमलों के मद्देनज़र शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य-देशों के बीच सुरक्षा सहयोग के मुद्दे पर भी सघन विचार-विनिमय किया गया।
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इस बैठक में भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के जगह भारत का प्रतिनिधित्व भारत के विदेश राज्य मन्त्री एम० जे० अकबर ने किया। अकबर ने आशा जतायी कि शंसस के साथ भारत के एक दशक से भी अधिक समय पुराने रिश्तों का परिणाम आख़िरकार यह निकलेगा कि आगामी जून में अस्ताना (कज़ाख़स्तान ) में भारत शंसस का पूर्ण सदस्य बन जाएगा।
अकबर ने कहा कि आतंकवाद शान्ति और स्थिरता के लिए अकेला बेहद महत्वपूर्ण ख़तरा है। उन्होंने शुरू से ही आतंकवाद पर संगठन के स्पष्ट दृष्टिकोण का स्वागत करते हुए कहा कि हम सभी रूपों में अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद से निपटने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि आतंकी कार्रवाई को किसी भी आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता है।
भारत के विदेश राज्य मन्त्री एम० जे० अकबर ने कहा — हमें यह पक्का विश्वास हैं कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ हमारी लड़ाई केवल आतंकियों को ख़त्म करने और उनके नेटवर्क को ध्वस्त करने तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए। इस लड़ाई में ऐसे देशों की पहचान और ज़िम्मेदारी भी तय की जानी चाहिए, जो आतंकवाद को प्रोत्साहन और समर्थन देते हैं और उसे धन मुहैया कराते हैं तथा आतंकवादियों और आतंकी समूहों को शरण देते हैं और उनका झूठा महिमामण्डन करते हैं।
एम० जे० अकबर ने कहा — हम क्षेत्र में हाल के बर्बरतापूर्ण आतंकी हमलों की कड़े-से-कड़े शब्दों में निन्दा करते हैं। बैठक में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ़ के विदेश मामलों सम्बन्धी सलाहकार सरताज अज़ीज़ ने भी भाग लिया।
शंघाई सहयोग संगठन की प्रधानमन्त्री परिषद की अगली बैठक अब 2017 में रूस में होगी। इस नई बैठक की ज़िम्मेदारी को स्वीकार करते हुए रूस के प्रधानमन्त्री दिमित्री मिदवेदफ़ ने कहा कि उन्हें यह ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए प्रसन्नता हो रही है।
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