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पूर्वी साइबेरिया के एवेन्की आदिवासियों के बीच


रूस के यकूतिया प्रदेश में रहने वाली आदिवासी जाति एवेन्की एक घुमक्कड़ जनजाति है

RIA Novosti/Michael Kukhtarev

मस्क्वा (मास्को) से 8310 किलोमीटर दूर स्थित यकूत्स्क शहर से एवेन्की आदिवासी इलाके तक जाने के लिए विमान सिर्फ़ सप्ताह में दो ही बार उड़ान भरता है। एवेन्की आदिवासी अपने रिश्तेदारों को लेने के लिए अपनी जीपें लेकर सीधा विमान की उड़न-पट्टी पर ही पहुँच जाते हैं। यहाँ हर आदमी दूसरे आदमी को उसके चेहरे से पहचानता है। अगर कोई बाहरी आदमी इस इलाके में आता है तो उसके बारे में ख़बर घण्टे-दो घण्टे में ही सभी आदिवासी गाँवों तक पहुँच जाती है। दो घण्टे बाद ही उस बाहरी व्यक्ति को स्थानीय एवेन्की आदिवासी घरों से निमन्त्रण मिलने शुरू हो जाते हैं। एवेन्की सचमुच बेहद मेहमाननवाज़ जनजाति है।  

टूण्ड्रा और जाड़े का साम्राज्य

एवेन्की जनजातीय क्षेत्र यकूत्स्क प्रदेश का सबसे बड़ा ज़िला माना जाता है। बारहसिंघा पालकों का यह ज़िला यकूत्स्क प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में उत्तरी ध्रुव के उस पार की भूमि के इलाके में पड़ता है।

RIA Novosti/Michael Kukhtarev

एवेन्की आदिवासी क्षेत्र के चार गाँवों में टुण्ड्रा के बीचोंबीच चार हज़ार लोग रहते हैं। एवेन्की आदिवासी क्षेत्र में जनपरिवहन की सुविधाएँ नहीं हैं। एक गाँव से दूसरे गाँव में आने-जाने के लिए लोग उन्हीं कच्चे रास्तों का इस्तेमाल करते हैं, जो बर्फ़ पर चलने वाले ट्रकों या जीपों के चलने से बन जाते हैं। यहाँ पूरे साल बर्फ़ पड़ी रहती है। सिर्फ़ जून और जुलाई में दो महीनों के लिए ही जब ठण्ड कम होती है तो उन्हें गर्मियों के महीने कहा जाता है।

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यकूत्स्क से एवेन्की आदिवासी गाँव अलिन्योक तक  एएन-24 नामक जो विमान उड़ान भरता है, वह भी काफ़ी पुराना है और उड़ान भरते हुए बहुत शोर करता है। यकूत्स्क से अलिन्योक तक जाने के लिए 20 हज़ार रूबल का टिकट लेना पड़ता है, जो मस्क्वा से यकूत्स्क तक जाने वाले टिकट से महंगा होता है। ज़्यादातर आदिवासी यकूत्स्क तक जाने का टिकट ख़रीदने के लिए ही सालों-साल बचत करते हैं।

एवेन्की आदिवासी यकूतियाई भाषा बोलते हैं

अलिन्योक और हरियालाख़ आदिवासी गाँवों में एवेन्की जनजाति के क़रीब 1500 लोग रहते हैं। स्थानीय दुकानों में मिलने वाले खाद्य-पदार्थ बहुत महंगे होते हैं। विदेशी सेब या आलू सब सोने के भाव बिकते हैं। एवेन्की जनजाति के लोगों का मुख्य भोजन बारहसिंघे का गोश्त या मछली है। समुद्र के किनारे बसे होने के कारण इन्हें तरह-तरह की मछलियाँ उपलब्ध हैं। एवेन्की आदिवासी इलाके में नौकरी नहीं मिलती है, इसलिए एवेन्की आदिवासी या तो जंगली बारहसिंघों का शिकार करते हैं या पैसा कमाने के लिए जंगली भेड़ियों का शिकार करते हैं।

RIA Novosti/Alexander Lyskin

एवेन्की आदिवासी इलाके में इण्टरनेट या दूसरी सम्पर्क सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन अलिन्योक गाँव में स्कूल की पक्की इमारत बनी हुई है, जिसमें सभी तरह की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। स्कूल में इतिहास क्लब बना हुआ है, बच्चों को बिलियर्ड खेलना सिखाया जाता है और एक नृवंश संग्रहालय भी बना हुआ है, जिसमें छात्रों को यह भी बताया जाता है कि बारहसिंघों का पालन-पोषण कैसे शुरू हुआ  और तुंगूस आदिवासियों (1931 से पहले एवेन्की जनजाति का पुराना नाम) के बारे में विस्तार से जानकारी मिल जाती है।

प्रकोपी साव्विनफ़ इस संग्रहालय के निदेशक हैं। वे आगन्तुकों को अपना पूरा संग्रहालय दिखाते हैं और स्थानीय शमानों (ओझाओं) के आभूषणों और कपड़ों को दिखाकर उनके बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं। हालाँकि अब एवेन्की जनजाति में शमानों का नाम-ओ-निशान भी बाक़ी नहीं रह गया है। 

RIA Novosti/Igor Mikhalev

प्रकोपी सव्विनफ़ बताते हैं – 1935 में यहाँ सोवियत सरकार की स्थापना होने से पहले एवेन्की जाति के लोग एक बड़े परिवार के रूप में रहते थे। आम तौर पर वे बारहसिंघों को पालते थे और उत्तरी जंगली बारहसिंघों का शिकार किया करते थे या फिर समुद्र में मछलियाँ पकड़ा करते थे। मार्च में जब सरदी थोड़ी कम हो जाया करती थी तो काम-धन्धे का समय शुरू हो जाता था। अपनी एवेन्की भाषा बोलना तो हम 17 वीं सदी में रूसी कज़्ज़ाकों के सम्पर्क में आने के बाद ही छोड़ चुके थे क्योंकि कज़्ज़ाक लोग हमसे एवेन्की भाषा बोलने की एवज़ में ’यसाक’ यानी टैक्स लिया करते थे। यह टैक्स हमें सेबल की खालों के रूप में चुकाना पड़ता था। यह टैक्स न देना पड़े, इसके लिए एवन्की जाति के लोग ख़ुद को अपनी पड़ोसी ’यकूत’ जनजाति का बताया करते थे। यकूतों के बीच रहकर एवेन्की जनजाति के लोग भी यकूतों जैसे ही हो गए और आज लगभग सभी एवेन्की यकूतियाई भाषा बोलते हैं।

बारहसिंघों के रेवड़ों के बीच    

RIA Novosti/Igor Mikhalev

एवेन्की जनजाति के लोग शुरू में बारहसिंघा पालन नहीं किया करते थे। लेकिन बारहसिंघों का पालन शुरू करने के बाद ही वे यकूतिया के ठण्डे इलाकों में आज़ादी से घूमने-फिरने लगे। आज एवेन्की जनजाति के आदिवासियों के पास 4 हज़ार से ज़्यादा बारहसिंघे हैं। 

Yulia Korchagina

हम एक बारहसिंघा स्लेज में बैठकर धचके खाते हुए, उछलते-कूदते बर्फ़ीले इलाकों को पार करके आख़िर में एक बड़े से ट्रक में चढ़ जाते हैं। एवेन्की स्त्रियाँ यकूतियाई लोकगीत गा रही हैं। जब हमारा ट्रक बर्फ़ीले रास्तों पर रपटते हुए एक नदी के किनारे पहुँचता है तो लोग स्थानीय रस्मों के अनुसार उन नदियों पर मीठे पूए चढ़ाते हैं ताकि नदी हमें आगे जाने का रास्ता दे दे। एवेन्की जनजाति के बीच पूओं को सूरज का प्रतीक माना जाता है। एवेन्की जनजाति के लोग अपनी पुरानी रस्मों और रीति-रिवाज़ों का आज भी बड़ी शिद्दत से पालन करते हैं। बर्फ़ ढके ऊबड़-खाबड़ कच्चे रास्ते पर पाँच घण्टे की यात्रा करके आख़िरकार हम बारहसिंघों के रेवड़ों के बीच पहुँच जाते हैं। 

स्थानीय बड़े-बूढ़े लोग चीचिपकान की प्रक्रिया पूरी करते हुए पूओं से हमारी नज़र उतारते हैं और फिर उन पूओं को आग में डाल देते हैं। चीचिपकान यानी नज़र उतारने की यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही हम स्थानीय लोगों से मिल-जुल सकते हैं और आसपास के इलाके में घूम-फिर सकते हैं।

RIA Novosti/Igor Mikhalev

एक साँवले-सलोने से बारहसिंघा पालक सिर्गेय ने अपने एक बारहसिंघे को सहलाते हुए बताया – बारहसिंघा पालने का काम बेकार का काम है क्योंकि इससे कोई आय नहीं होती है। सारी ज़िन्दगी हम इन बारहसिंघों के साथ यहाँ से वहाँ घूमते रहते हैं। लेकिन कोई दूसरी ज़िन्दगी जीना भी हमारे लिए आसान नहीं होगा। इसके बाद हम सिर्गेय के साथ उसके तम्बू में घुस जाते हैं, जहाँ बारहसिंघा पालक सिर्गेय अपने परिवार के साथ रहता है। तम्बू में बारहसिंघों की खालों पर ही सब लोग सोते हैं।

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 लगभग सभी के पास स्मार्टफ़ोन हैं। कुछ लोगों के हाथों में आईफ़ोन भी दिखाई दे रहे हैं। इन टेलिफ़ोनों को चार्ज करने के लिए ये लोग सूर्यबैटरियों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आज भी खाना बनाने के लिए ये लोग वही पुराने ढंग का चूल्हा या अँगीठी जलाते हैं। इनके कपड़े वही पुराने ज़माने के हैं और बारहसिंघा की खालों के बने हैं। ये अपने कपड़े ख़ुद ही सिलते हैं। इस इलाके में मौसम इतना कठोर है कि ये कपड़े ही उन्हें ठण्ड से बचाते हैं।

एवेन्की भाषा की अध्यापिका

एवेन्की भाषा की अध्यापिका स्वितलाना स्तिपानवा बताती हैं –  हमारी घुमक्कड़ प्रवृत्ति की वजह से ही हमारी भाषा भी अभी तक सुरक्षित बची हुई है। एवेन्की जाति के बहुत से खानाबदोश-दल ताइगा के दुर्गम इलाकों में जाकर रहने लगे हैं। उन्हीं की वजह से हमारी सुरीली और सुनने में संगीत की तरह लगने वाली भाषा बची हुई है।  स्वितलाना स्तिपानवा अलिन्योक के स्कूल में पिछले अनेक वर्षों से एवेन्की भाषा पढ़ा रही हैं और उसे फिर से ज़िन्दा करने की कोशिश में लगी हुई हैं। वे बताती हैं – मेरे माता-पिता भी ख़ानाबदोश थे और ताइगा में घुमक्कड़ी किया करते थे। मेरा सारा बचपन बारहसिंघों के रेवड़ों के बीच ही बीता है।

Yulia Korchagina

स्वितलाना स्तिपानवा ने कहा – मुझे याद है कि कैसे मैं अपनी जवानी के दिनों में ’पान्ती’ खाना पसन्द करती थी। बारहसिंघों के रेवड़ के साथ चलते-चलते मैं उनके सींग चबाया करती थी। वैसे एवेन्की जनजाति के लोग बड़े शान्तिप्रिय होते हैं। वे बारहसिंघों को अपने बच्चों की तरह पालते हैं और सिर्फ़ उतने ही बारहसिंघों को काटते हैं, जितनी ज़रूरत है। बारहसिंघे का हर अंग खाने के काम आता है। उनके पंजों से लेकर, उनके सींगों तक हर अंग का हम इस्तेमाल करते हैं। मिसाल के तौर पर उनके पंजों से हम खिलौने बना लेते हैं। मेरे माता-पिता ने ही यकूत्स्क के अम्मोसफ़ उत्तर-पूर्वी जनजाति संस्कृति और भाषा संस्थान में एवेन्की भाषा विभाग की स्थापना की थी। अब मैं भी उनके काम को आगे बढ़ा रही हूँ और एवेन्की जनजाति के लोगों को एवेन्की भाषा सिखाने में ही मैंने अपनी सारी ज़िन्दगी होम कर दी है।

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