2016 की पाँच महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएँ
1. सीरिया में सैन्य-कार्रवाई
हालाँकि मार्च-2016 में रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन ने यह ऐलान कर दिया था कि सितम्बर-2015 में सीरिया में शुरू की गई सैन्य-कार्रवाई ख़त्म हो गई है और रूस के रक्षा मन्त्रालय को यह आदेश दे दिया था कि सीरिया में सक्रिय रूसी सेना को वापिस बुला लिया जाए, लेकिन सच्चाई यह है कि इसके बाद भी रूस सीरियाई संकट में फँसा हुआ था और सीरिया से अपना दामन नहीं छुड़ा पा रहा था। रूसी सेना के इस समर्थन और सहयोग की बदौलत ही बशर असद सीरिया के एक बहुत बड़े इलाके पर फिर से अपना नियन्त्रण स्थापित कर पाए।
अमरीका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ-साथ रूस लगातार यह कोशिश करता रहा कि बशर असद और सीरियाई विद्रोहियों के बीच समझौता हो जाए। 27 फ़रवरी को रूस और अमरीका की मध्यस्थता से सीरिया में युद्ध-विराम की घोषणा की गई, जो कुछ महीने तक चलता रहा। लेकिन विगत जुलाई के महीने में युद्धविराम तब भंग हो गया, जब आतंकवादी गिरोहों और सीरिया की सरकारी सेना के बीच हैलाब के लिए भयंकर युद्ध भड़क उठा।
रूस और अमरीका ने फिर से शान्ति-प्रक्रिया को शुरू करने की कोशिश की, लेकिन दोनों पक्षों के बीच बातचीत बार-बार भंग हो जाती थी और लड़ाई फिर से शुरू हो जाती थी। सन् 2016 के आख़िर में सीरिया की सरकारी सेना ने सीरिया के दूसरे बड़े महानगर हैलाब के एक बड़े हिस्से पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया। इसके अलावा विगत मार्च के महीने में ही रूस की वायुसेना ने आतंकवादी गिरोह ’इस्लामी राज्य’ (आईएस) से सीरिया के प्राचीन नगर पालमीरा को मुक्त कराने में सीरिया की सरकारी सेना की सहायता की थी। लेकिन दिसम्बर में आतंकवादियों ने फिर से उस समय पालमीरा पर कब्ज़ा कर लिया, जब सीरियाई और रूसी सेनाओं का ध्यान हैलाब की ओर लगा हुआ था।
2. तुर्की के साथ सुलह
विगत 28 जून को जब तुर्की के राष्ट्रपति रजेप तैयप एरदोगान ने रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन से उन घटनाओं के लिए माफ़ी माँग ली, जो नवम्बर 2015 में रूसी बमवर्षक विमान को मार गिराए जाने से जुड़ी थीं, तो रूस और तुर्की के रिश्ते पूरी तरह से बदल गए। नवम्बर-2015 की घटनाओं के बाद दो देशों के बीच रिश्ते पूरी तरह से टूट गए थे, लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति द्वारा क्षमा माँगे जाने के बाद वे पहले से भी कहीं बेहतर हो गए। रूस ने तुर्की जाने वाले विमानों की चार्टर उड़ानें फिर से शुरू कर दीं और तुर्की पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबन्धों में से अनेक प्रतिबन्ध हटा लिए। रूसी पर्यटक फिर से तुर्की की यात्रा पर जाने लगे। विगत अक्तूबर में दोनों देशों ने ’तुर्की धारा’ नामक गैस पाइपलाइन के निर्माण से सम्बन्धित अनुबन्ध पर हस्ताक्षर कर दिए।
दोनों देशों के नेताओं के कथन भी अब पूरी तरह से बदल गए। 2015 में रूसी विमान के साथ घटी घटना को ’आतंकवादियों के सहयोगियों द्वारा पीठ में चाकू घोंपना’ बताने वाले व्लदीमिर पूतिन ने विगत अगस्त माह में तुर्की को रूस का दोस्त बताया और कहा कि दो देशों के बीच अनूठे सहयोग सम्बन्ध हैं। बीते साल में व्लदीमिर पूतिन ने तीन बार रजेप तैयप एरदोगान से मुलाक़ात की। पूतिन के प्रेस सचिव ने कहा कि दोनों नेताओं के बीच फिर से ’आपसी विश्वास के रिश्ते’ बन गए हैं।
3. डोपिंग हंगामा
रियो-दे जेनेरो में ओलम्पिक खेलों के शुरू होने में जब एक महीने से भी कम समय बाक़ी रह गया था, तब 18 जुलाई को विश्व डोपिंग एजेंसी ’वाडा’ की जाँच समिति ने रूसी खिलाड़ियों द्वारा ताक़तवर दवाइयों के इस्तेमाल (यानी डोपिंग) के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की। यह रिपोर्ट पूर्व रूसी खेल अधिकारी गिओर्गी रदचिन्कोफ़ के बयानों पर आधारित थी। इस रिपोर्ट के अनुसार रूसी खिलाड़ी बड़े पैमाने पर ताक़त बढ़ाने की दवाइयों का इस्तेमाल करते हैंं। रिपोर्ट के अनुसार, रूसी डोपिंगरोधी एजेन्सी, रूसी खेल मन्त्रालय और रूसी ख़ुफ़िया एजेन्सी एफ़एसबी मिलकर यह काम कर रही थीं कि रूसी खिलाड़ी डोपिंग परीक्षण से सकुशल गुज़र जाते थे। ’वाडा’ के अनुसार, रूसी खिलाड़ियों ने लन्दन और सोची ओलम्पिक के दौरान भी पदक जीतने के लिए बड़े पैमाने पर ताक़तवर दवाइयों का इस्तेमाल किया था।
रूस की सरकार ने यह मानने से इंकार कर दिया कि इस डोपिंग हंगामे से रूस की सरकार भी जुड़ी हुई है। लेकिन इसके बावजूद अन्तरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने ’वाडा’ की जाँच समिति द्वारा पेश की गई इस रिपोर्ट को बड़ी गम्भीरता से लिया। रूसी खेलदल को पूरी तरह से ओलम्पिक खेलों में भाग लेने से रोका जा सकता था। लेकिन रूसी खेलदल ओलम्पिक खेलों में भाग लेने के लिए रियो-दे-जेनेरो गया। यह अलग बात है कि रूसी खेलदल में रूस के बहुत से खिलाड़ी शामिल नहीं थे। रूस की एथलेटिक टीम सहित रूस के उन सब खिलाड़ियों पर ओलम्पिक खेलों में भाग लेने पर रोक लगा दी गई थी, जो पहले डोपिंग परीक्षण में असफल सिद्ध हो चुके थे।
4. अमरीका के साथ रिश्तों में आए बदलाव
पिछले पूरे साल रूस और अमरीका के रिश्ते ढुलमुल रहे। कभी दोनों शान्त रहते थे तो कभी दोनों ही देश एक-दूसरे के ख़िलाफ़ आग उगलने लगते थे। विगत सितम्बर में सीरिया में शान्ति-प्रक्रिया के भंग होने के बाद दोनों महाशक्तियों के बीच रिश्ते बहुत तेज़ी से बिगड़े। रूस ने ऐलान किया कि अमरीका आतंकवादियों की सहायता कर रहा है। अमरीका ने कहा कि रूस सीरियाई नागरिकों की हत्याएँ कर रहा है और तानाशाह बशर असद को बचा रहा है। रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन ने प्लूटोनियम को नष्ट करने की अमरीका के साथ की गई सन्धि को रद्द कर दिया और इस तरह परमाणु निःशस्त्रीकरण के क्षेत्र में चल रहे सहयोग को ही निरस्त कर दिया।
लेकिन 8 नवम्बर को अमरीका में हुए राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की विजय होने के बाद दो देशों ने एक-दूसरे की आलोचना करनी कम कर दी। राष्ट्रपति पद पर विजयी हुए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प ने अपना चुनाव अभियान चलाते हुए बार-बार इस तरह की घोषणाएँ की थीं कि रूस के साथ सहयोग करना चाहिए। उन्होंने बार-बार कहा कि वे एक ताक़तवर नेता के रूप में पूतिन का बड़ा सम्मान करते हैं। अमरीकी मीडिया ने रूस पर यह आरोप लगाया है कि रूसी हैकरों ने डेमोक्रेटिक पार्टी के कम्प्यूटर सर्वरों में सेंध लगाकर डोनाल्ड ट्रम्प की विजय में उनकी सीधे-सीधे सहायता की। लेकिन रूस ने इस तरह के आरोपों को स्वीकार नहीं किया है।
5. तुर्की में रूस के राजदूत की हत्या
2016 में रूस को आतंकवादियों के एक नए हमले का शिकार होना पड़ा। इस बार एक उच्चस्तरीय रूसी कूटनीतिज्ञ आतंकवादी हमले में मारे गए। 19 दिसम्बर को जब तुर्की में रूस के राजदूत अन्द्रेय कारलफ़ अंकारा में एक फ़ोटो-प्रदर्शनी का उद्घाटन कर रहे थे, तो तुर्की के एक पूर्व पुलिसकर्मी मव्ल्यूत मेर्त अलतिनताश ने गोलियाँ मारकर उनकी हत्या कर दी। उनकी हत्या करते हुए हत्यारा चिल्ला रहा था — यह अलेप्पो का बदला है, जहाँ रूस, मानो आम जनता की हत्या कर रहा है। अन्तरराष्ट्रीय समाज ने रूसी राजनयिक की नृशंस हत्या की कड़ी निन्दा की।
रूसी विशेषज्ञों का मानना है कि रूसी राजनयिक की हत्या करके आतंकवादी एक बार फिर से उन रूसी-तुर्की रिश्तों को भंग करना चाहते थे, जो पिछले छह महीनों में धीरे-धीरे स्थापित हुए थे। रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन के प्रेस सचिव दिमित्री पिस्कोफ़ ने रूस के राजनयिक की हत्या को एक उकसावा बताया और ज़ोर दिया कि रूस और तुर्की के बीच आगे सहयोग जारी रहेगा और दोनों देश आतंकवाद के विरुद्ध भी सक्रिय रूप से सहयोग करते रहेंगे। उसी समय रूसी अधिकारियों का यह भी कहना है कि रूसी राजनयिक की सुरक्षा करने में तुर्की के असफल रहने से अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर तुर्की की छवि ख़राब हुई है।