जाड़ों की छुट्टियों से पहले रूस में छात्र दिवस
रूस के विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों में आम तौर पर वर्ष में दो सत्र होते हैं — ग्रीष्म सत्र और शिशिर सत्र। और दोनों ही सत्र परीक्षाओं के साथ समाप्त होते हैं। परीक्षा देने के बाद छात्रों की जाड़ों की या गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हो जाती हैं। जाड़ों की छुट्टियाँ शुरू होने से पहले रूस के सभी विश्वविद्यालयों में छात्र दिवस के समारोह और उत्सव आयोजित किए जाते हैं।
साँक्त पितेरबुर्ग (सेण्ट पीटर्सबर्ग) के राष्ट्रीय सूचना तकनीक, यान्त्रिकी और प्रकाशिकी अनुसन्धान विश्वविद्यालय के संगणक विज्ञान विभाग के छात्र थाइलैण्ड के जीरम नोयमना ने कहा — मैंने इससे पहले कभी भी छात्र-दिवस के बारे में नहीं सुना था। मुझे तो इस तरह के किसी उत्सव की कोई जानकारी ही नहीं थी। मेरे एक रूसी दोस्त ने मुझे इस बारे में बताया और फिर हमने यह तय किया कि हम भी इसे अपने ढंग से मनाएँगे। उस दिन हम अपनी शोध योजना बनाएँगे। रूस में मुझे अभी लम्बे समय तक रहना है और पढ़ाई के अलावा और भी बहुत से काम करने हैं।
रूस में आज ’बपतिस्मा नहान’ का त्यौहार
बहुत से विदेशी छात्र यह मानते हैं कि पहले रूस की ठण्ड के बारे में सुनकर वे बहुत डर गए थे, लेकिन बाद में हर व्यक्ति ने रूसी जाड़े में भी अपना आनन्द खोज लिया और रूसी जाड़ा उन्हें अच्छा लगने लगा।
उराल संघीय विश्वविद्यालय के संगणक विज्ञान और सूचना तकनीक विषय के सीरिया से आए हुए फ़िलिस्तीनी मूल के छात्र अयहाम अली ने बताया — मेरे रूस आने से पहले मेरे चचा हमेशा कहा करते थे कि रूसी ठण्ड के सामने हमारी ठण्ड कुछ भी नहीं है और उनकी बातें एकदम ठीक थीं। मेरे मन में हमेशा यह सवाल उठता है कि रूसी बच्चे इस भारी ठण्ड में भी मैदानों में कैसे खेलते रहते हैं? फिर मैंने यह देखा कि रूसी बच्चों के चेहरों पर हमेशा मुस्कुराहट बनी रहती है, उससे मुझे लगा कि रूसियों की आत्मा गर्म है। गर्मी उनके मन में है, इसीलिए उन्हें ठण्ड नहीं लगती।
नवसिबीर्स्क विश्वविद्यालय के यान्त्रिकी-गणितीय संकाय के छात्र, मलेशियाई नागरिक इज़्ज़त मोहम्मद ने कहा — यहाँ आकर मुझे भी कुछ तकलीफ़ें और परेशानियाँ झेलनी पड़ीं। शुरू में मैं रूसी भाषा नहीं बोल पाता था। मौसम में होने वाला बड़ा उतार-चढ़ाव देखकर भी मुझे डर लगता था। लेकिन एक दिन मैं समझ गया कि रोज़-रोज़ रोने और शिकायत करने से तो बेहतर यह है कि इन चुनौतियाँ का सामना करना चाहिए और कुछ चीज़ें सहन भी करनी चाहिए। कुल मिलाकर इन समस्याओं ने मुझे ताक़तवर बनाया और आज मैं ख़ुद को सच्चा साइबेरियावासी मानता हूँ।
एक भारतीय छात्र प्रभजोत सिंह ने कहा — जब मैं नवसिबीर्स्क विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए आया तो मैंने देखा कि सारे छात्र अपने अध्यापकों को उनके नाम से बुलाते हैं। भारत में अक्सर हम अपने अध्यापकों को ’सर’ कहते हैं। अगर मैं भारत के किसी विश्वविद्यालय में जाकर किसी प्रोफ़ेसर को उनके नाम से बुलाऊँगा तो शायद मुझे सज़ा मिलेगी और अनुशासन-समिति के सामने पेश होना पड़ेगा।
इसहाकी महागिरजा – दुनिया भर में क्यों मशहूर है
नवसिबीर्स्क विश्वविद्यालय के चिकित्सा विभाग के छात्र ज़िम्बाब्वे की मोनालिसा नोथाण्डो ने कहा — रूस आने से पहले मुझे अक्सर यह बताया जाता था कि रूसी लोग बहुत ज़्यादा पीते-पिलाते हैं। मेरे माता-पिता मुझे बार-बार यह नसीहत दिया करते थे कि मैं इस तरह के कामों से दूर रहूँ। इसके अलावा मुझे यह भी बताया गया था कि रूसी लोग बड़े नस्लवादी क़िस्म के होते हैं और रूस में रंगभेद बहुत ज़्यादा है। लेकिन अब मैं कह सकती हूँ कि रूसी लोग बड़े मैत्रीपूर्ण स्वभाव के होते हैं। रूस में रहकर मैं वैसा ही महसूस करती हूँ, जैसे अपने घर में रह रही हूँ। अपनी यूनिवर्सिटी की परम्पराओं में से मुझे झील किनारे अलाव जाकर बैठने और साथ-साथ मिलकर गाने और नाचने की परम्परा बेहद पसन्द आई। मैं अक्सर रूसी छात्रों के साथ इस तरह की महफ़िलों में भाग लेती हूँ।
दो नामों वाला त्यौहार
रूस में छात्र दिवस 25 जनवरी को मनाया जाता है। पवित्र सनातन ईसाई साध्वी और हुतात्मा ततियाना का स्मृति-दिवस भी 25 जनवरी को ही पड़ता है। इसलिए छात्र दिवस को लोग ’ततियानिन देन’ यानी ततियाना दिवस भी कहते हैं।
इसी ’ततियानिन देन’ के अवसर पर यानी 25 जनवरी 1755 को रूस की साम्राज्ञी येलिजावेता पित्रोव्ना ने ’मस्क्वा विश्वविद्यालय’ की स्थापना करने का आदेश पारित किया था। बस, उसी दिन से ’ततियानिन देन’ को औपचारिक तौर पर छात्र दिवस घोषित कर दिया गया। शुरू में 25 जनवरी को मस्क्वा (मास्को) विश्वविद्यालय स्थापना दिवस के तौर पर मनाया जाता था। लेकिन उस दिन से ही पवित्र साध्वी ततियाना को छात्रों का संरक्षक मान लिया गया।
शुरू में छात्र दिवस सिर्फ़ मस्क्वा नगर में ही मनाया जाता था। लेकिन पूरा मस्क्वा नगर इस त्यौहार में भाग लेता था। मस्क्वा विश्वविद्यालय की इमारत में कुछ औपचारिकताओं के साथ यह महोत्सव शुरू होता था और उसके बाद पूरे शहर में जश्न और मौज-मेले का माहौल बन जाता था।
मस्क्वा विश्वविद्यालय की यह परम्परा बाद में रूस के दूसरे विश्वविद्यालयों में भी फैल गई। इस दिन मस्क्वा विश्वविद्यालय के कुलपति छात्रों को ख़ुद अपने हाथ से शहद का शरबत ’मिदवूख़ा’ पिलाते हैं। छात्र अपने-अपने गिलास और प्याले लेकर कुलपति के हाथों से हलका मीठा आसव ’मिदवूख़ा’ लेने के लिए तैयार होकर आते हैं। शहद का आसवनुमा यह शरबत जाड़ों की छुट्टियों पर जाने से पहले छात्रों को गर्मी देता है और ज़ुकाम, हत्शूल व गलशोथ जैसी बीमारियों से राहत देता है।
रूसी वैज्ञानिकों ने वैदिक काल के आनुष्ठानिक पेय का रहस्य उजागर किया