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क्या अमरीका रूस को हथियारबन्दी की दौड़ में फँसा लेगा?

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अमरीका के बजट की अन्य मदों के लिए सुनिश्चित अनुदान राशि कम करके अमरीका के रक्षा बजट को 54 अरब डॉलर बढ़ाना चाहते हैं। अमरीकी सेना के आधुनिकीकरण के लिए ऐसा करना ज़रूरी है। अमरीकी सेना को नए विमानों और युद्धपोतों की ज़रूरत है तथा उसे दुनिया के समुद्रों से गुज़रने वाले प्रमुख अन्तरराष्ट्रीय मार्गों पर अपनी ताकत बढ़ानी है।

इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अमरीका की सरकार अपने विदेश मन्त्रालय के खर्चों में एक-तिहाई कटौती करने और देश की विभिन्न एजेन्सियों की कार्यक्रमों में गम्भीर बदलाव करके उनकी गतिविधियों को घटाने के लिए तैयार है।

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अमरीकी सरकार नाटो सन्धि संगठन में शामिल दूसरे देशों से पहले ही यह कह चुकी है कि उन्हें नाटो गठबन्धन के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद की वह दो प्रतिशत राशि देनी चाहिए, जिसका नाटो सन्धि में प्रावधान है। अमरीका के रक्षामन्त्री जेम्स मेटिस ने कहा कि अगर ऐसा नहीं होगा तो अमरीका भी नाटो सन्धि संगठन के लिए तय अपने हिस्से की धनराशि को कम करने के सवाल पर विचार करेगा। 

दूसरी तरफ़ रूस, जो इस समय 2018 से 2025 के लिए अपनी सेना की हथियारबन्दी का नया कार्यक्रम बना रहा है, न केवल अपने सैन्य खर्च बढ़ाने की कोई योजना नहीं बना रहा, बल्कि इसके विपरीत उनमें कमी कर रहा है। अब रूस के रक्षा खर्च उसके सकल घरेलू उत्पाद के 4 प्रतिशत हिस्से की जगह, सिर्फ़ 3 प्रतिशत ही होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि रूस ने यह नीति अपनी आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन करके ही तय की है। रूस समझता है कि अमरीका की तरफ़ से उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किसी तरह का कोई खतरा नहीं है। 

शीत-युद्ध की शुरूआत

रूस-भारत संवाद से बात करते हुए रूस के अमरीका और कनाडा अध्ययन संस्थान के विशेषज्ञ सिर्गेय रोगफ़ ने कहा — अमरीका में राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव से पहले ट्रम्प के चुनाव-अभियान के दौरान रिपब्लिकन पार्टी के सभी उम्मीदवार यह कह रहे थे कि अमरीका की सैन्य ताक़त को बढ़ाने के लिए सैन्य खर्चों में बढ़ोतरी की जानी चाहिए। इसलिए पहले से ही यह उम्मीद थी कि 2018 के अमरीका के सैन्य बजट में वृद्धि होगी।

उन्होंने कहा — मार्च के शुरू में जब अमरीका का रक्षा बजट संसद में पेश किया जाएगा, तब यह बात सामने आएगी कि अमरीका किस मद में कितना-कितना खर्च करना चाहता है। आजकल यह तय किया जा रहा है कि किन मदों पर ज़ोर दिया जाए। अमरीकी सेना को युद्ध के लिए तैयार रखने पर ज़्यादा खर्च किया जाए या सेना को नए हथियारों से लैस किया जाए। उल्लेखनीय है कि हाल ही में अमरीकी वायुसेना ने यह ऐलान किया था कि वायुसेना के ज़्यादातर लड़ाकू विमानों और हैलिकॉप्टरों में बड़े बदलावों और मरम्मत की ज़रूरत है।

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सिर्गेय रोगफ़ ने कहा — ट्रम्प रक्षा बजट में 54 अरब डॉलर की वृद्धि करना चाहते हैं। जबकि रूस का कुल रक्षा बजट ही 54 अरब डॉलर के लगभग है। ट्रम्प नए युद्धपोतों के निर्माण, परमाणु हथियार भण्डार में सुधार और अमरीकी मिसाइल प्रतिरोधी प्रणाली के विकास के लिए यह पूंजी निवेश करना चाहते हैं।

रोगफ़ ने बताया — अमरीका के भीतर तैनात मिसाइल प्रतिरक्षा व्यवस्था की तीसरी पोजिशन को मज़बूत करने की ओर विशेष ध्यान दिया जाएगा, जो न्यूयार्क, अल्यास्का और कैलिफ़ोर्निया के विभिन्न इलाकों में स्थित है। 

सिर्गेय रोगफ़ ने कहा कि रूस और अमरीका के बीच फिर से शीत-युद्ध शुरू होने जा रहा है। दोनों देश फिर से हथियारबन्दी की दौड़ शुरू कर सकते हैं, जो रूस पर बहुत बुरा असर डालेगी।

अमरीकी रक्षा बजट में वृद्धि का रूस पर असर

लेकिन दूसरे विशेषज्ञों का यह मानना है कि अगर अमरीका के रक्षा बजट में भारी वृद्धि को अमरीकी संसद पारित कर देगी, तो भी उससे रूस की सुरक्षा के लिए अभी कोई खतरा पैदा नहीं होगा। रूस को चिन्ता तभी करनी पड़ेगी, जब अमरीका के रक्षा बजट में बढ़ाई गई रक़म से नाटो नए सैनिक-अड्डे बनाने लगेगा या रूस की सीमाओं के निकट नए हमलावर हथियार तैनात करने लगेगा।

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रूस की इस संयत प्रतिक्रिया का एक कारण यह भी है कि रूस की आर्थिक स्थिति इस समय बहुत जटिल है। इसी कारण से रूस ने अपने रक्षा बजट को भी एक चौथाई घटा दिया है।

विश्व अर्थव्यवस्था और अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध संस्थान के अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन केन्द्र के निदेशक अलिक्सेय अरबातफ़ ने रूस-भारत संवाद से कहा — रूस की आर्थिक हालत ऐसी है कि वह हथियारबन्दी की नई दौड़ में शामिल नहीं हो सकता है और उसे अमरीकी रक्षा खर्चों में बढ़ोतरी का कोई जवाब नहीं देना चाहिए। 

उन्होंने कहा — हमारे दो देशों के बीच रिश्तों में दिखाई दे रहे तनाव तथा रूस के साथ सहयोग और बातचीत शुरू करने की अमरीकी सरकार की कोशिशों के अमरीका में किए जा रहे विरोध के बावजूद रूस की सरकार को अपने रक्षा खर्चों को ज्यों का त्यों बनाए रखना चाहिए।

उन्होंने कहा — अपने रक्षा बजट के लिए हमने जो अनुदान तय किए हैं, वे फ़िलहाल काफ़ी हैं। हम विदेशों में नए सैनिक अड्डे बनाने नहीं जा रहे हैं। हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बजट में तय धनराशि पर्याप्त है। 

अलिक्सेय अरबातफ़ ने कहा — जब हमें लड़ना पड़ेगा, तब हम अपनी नीतियों में बदलाव भी कर लेंगे। ख़ुदा का शुक्र है कि अभी हम युद्ध से बचे हुए हैं और ऐसी स्थिति आने से बहुत दूर हैं।

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