रूस में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों के जीवन-अनुभव
उच्च शिक्षा के लिए रूस के विश्वविद्यालयों को चुनने वाले भारतीय छात्रों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। रूस के शिक्षा मन्त्रालय के जन सर्वेक्षण केन्द्र के अनुसार हर साल 4000 भारतीय छात्र रूस के विश्वविद्यालयों में दाखिला लेते हैं। रूस और भारत के बीच जो आपसी मैत्रीपूर्ण रिश्ते हैं, सिर्फ़ वे रिश्ते ही इसका कारण नहीं हैं, बल्कि रूस की सरकार द्वारा 15000 विदेशी छात्रों को निःशुल्क शिक्षा के लिए रूस आमन्त्रित करने का जो कोटा तय किया गया है, उस कोटे की भी इसमें बड़ी भूमिका है। भारतीय छात्र ज़्यादातर तकनीकी विषयों की पढ़ाई करने या चिकित्सा विज्ञान यानी मेडिकल की पढ़ाई करने में दिलचस्पी रखते हैं।
रूस आने के बाद उनके जीवन में क्या बदलाव आए हैं? रूस में उन्हें क्या-क्या नई चीज़ें देखने को मिलीं? रूस उन्हें कैसा लगा? रूस-भारत संवाद की संवाददाता ने तीन भारतीय छात्रों से मुलाक़ात करके रूस में उनकी पढ़ाई और रूस में उनके जीवन-अनुभवों के बारे में जानकारी ली।
दिल्ली के दलजीत डागर ढाई साल से रूस में हैं
दलजीत डागर मस्क्वा (मास्को) के रूसी राजकीय मानविकी विश्वविद्यालय की टूरिज्म फ़ैकेल्टी में सैकेण्ड ईयर के छात्र हैं।
मुझसे अक्सर भारत में लोग यह सवाल पूछते हैं कि मैंने अपनी उच्चशिक्षा के लिए रूस को ही क्यों चुना, जबकि अक्सर भारत से लोग आगे पढ़ाई करने के लिए अमरीका, आस्ट्रेलिया या ब्रिटेन जाते हैं। रूस आने से पहले मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान का छात्र था, जहाँ एक सेमेस्टर में हमें रूस और भारत की राजनीति के बारे में पढ़ाया गया। वहीं मुझे रूस में आगे पढ़ाई जारी रखने के लिए सरकारी स्कॉलरशिप मिल गई। तब तक मेरी दिलचस्पी पर्यटन में हो चुकी थी। इसलिए मैंने तय किया कि ग्रैजुएशन की अगली डिग्री मैं ’पर्यटन व्यवसाय’ विषय में ही लूंगा।
रूसी विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के लिए पाँच क़दम
रूसी राजकीय मानविकी विश्वविद्यालय में पढ़ना मुझे इसलिए भी बहुत अच्छा लगता है कि वहाँ छात्रों के ग्रुप बहुत छोटे-छोटे हैं। अध्यापक एक बार में सिर्फ़ दस छात्रों की कक्षा लेते हैं, जबकि भारत में तो अक्सर ऐसा होता है कि प्रोफ़ेसर अपने छात्रों का नाम तक नहीं जानते। वैसे सच-सच कहूँ तो रूस में पढ़ना बेहद आसान है। यहाँ परीक्षाएँ भी भारत की तरह मुश्किल नहीं होतीं।
यदि रूसी लोगों और भारतीय लोगों के स्वभाव की बात की जाए तो रूसी लोग इतने खुले दिल के होते हैं कि वे अपना महीने भर का वेतन एक ही दिन में उड़ा सकते हैं, जबकि भारतीय लोग बचत करना पसन्द करते हैं। लेकिन भारत के लोग आपको हमेशा हँसते-मुस्कुराते दिखाई देंगे, जबकि रूसी लोगों के चेहरों पर गम्भीरता ज़्यादा दिखाई पड़ती है। पर इसके बावजूद यहाँ रूस में मेरी रूसी दोस्तों की संख्या मेरे भारतीय दोस्तों से बहुत ज़्यादा है।
यहाँ मुझे यह देखकर बेहद आश्चर्य हुआ कि रूसी लोग छुट्टी वाले दिन अपना जन्मदिन मनाते हैं और जन्मदिन मनाते हुए ख़ूब पीते-पिलाते हैं। एक रूसी दोस्त का जन्मदिन था और उसने मुझे शराब पीने के लिए मजबूर कर दिया। वह मुझसे कहने लगा — अगर तुम कम से कम एक जाम नहीं पिओगे तो मैं यह समझूंगा कि तुम मेरी इज़्ज़त नहीं करते, तुम मुझे प्यार नहीं करते।
अपनी पढ़ाई ख़त्म करने के बाद मैं रूस में ही रहना चाहता हूँ और रूस से मैटल का (धातुओं का) भारत को निर्यात करना चाहता हूँ। मेरा ख़याल है कि इस दिशा में हमारे दो देशों के बीच रिश्ते बड़ी तेज़ी से विकसित हो रहे हैं। वैसे ही जैसे दिल्ली, मुम्बई और भारत के दूसरे बड़े शहरों के पर्यटक अब बड़ी संख्या में रूस आने लगे हैं।
दिल्ली की संभावना बिस्वास का रूस में अभी पहला ही साल है
वे मस्क्वा (मास्को) के हायर स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स में जनराजनीति विषय में एम०ए० कर रही हैं।
संभावना बिस्वास। स्रोत : Personal archive
मेरे एक मित्र ने मुझे यह जानकारी दी थी कि मैं मास्को के हायर स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स में एम०ए० कर सकती हूँ और मैंने यहाँ दाखिला लेने के लिए अपने कागज़ात भेज दिए थे। मुझे स्कॉलरशिप मिल गई। इसलिए मेरे सामने इस तरह की कोई दुविधा नहीं थी कि मैं रूस में पढ़ने के लिए जाऊँ या न जाऊँ। तो इस तरह मैं रूस में पढ़ने के लिए आ गई।
मुझे लगता है कि रूसी लोग अपने मन की बात मन में ही नहीं रखते, बल्कि उसे सीधे-सीधे कह देते हैं। अगर उन्हें कोई चीज़ पसन्द नहीं आती तो वे उसके बारे में तुरन्त बता देते हैं। यह बहुत अच्छा गुण है। हमारी क्लास में भी अगर छात्रों को कोर्स में कुछ पसन्द नहीं आता तो वे तुरन्त प्रोफ़ेसर को वह बात बता देते हैं। वैसे अपने इंस्टीट्यूट में मैं बहुत कम भारतीय छात्रों को जानती हूँ। मेरे ज़्यादातर दोस्त या तो रूसी हैं या दूसरे देशों से रूस में पढ़ने के लिए आए विदेशी छात्र।
यूरोपीय रूस के सबसे ठण्डे इलाके के लोगों का जीवन
मास्को में कॉफ़ीहाउसों और चायख़ानों की भरमार है। हम अक्सर वहाँ जाकर बैठते हैं। हमेशा कहीं न कहीं कोई न कोई दिलचस्प प्रोग्राम होता रहता है। छुट्टी वाले दिन मैं अपने दोस्तों के साथ घूमने निकल जाती हूँ। मास्को के अलावा रूस के किसी दूसरे शहर में मैं अभी तक नहीं गई हूँ। इसलिए मेरे लिए यह बताना मुश्किल है कि दूसरे शहरों में रूसी लोग अपना मनोरंजन कैसे करते हैं।
इसके अलावा रूसियों में मुझे यह बात भी बहुत अच्छी लगती है कि वे किसी भी दूसरे कल्चर का बड़ा सम्मान करते हैं। दुनिया में लोग रूसियों की यह ख़ासियत नहीं जानते हैं। रूस में विदेशी आप्रवासी बड़ी संख्या में रहते हैं। इसलिए मुझे रूस में ज़रा भी अजनबीपन महसूस नहीं होता। रूसी लोग बड़े सहज और सरल होते हैं। उन्हें रूसी भाषा के अलावा आम तौर पर कोई दूसरी भाषा नहीं आती, लेकिन फिर भी वे सहायता करने के लिए हमेशा तैयार दिखाई देते हैं। आधी रात को भी मैं मास्को के केन्द्र में ख़ुद को पूरी तरह से सुरक्षित महसूस करती हूँ।
मास्को का मौसम मुझे ज़्यादा पसन्द नहीं आया। यहाँ अक्सर ठण्ड पड़ती है। बदली छाई रहती है। सूरज के दर्शन नहीं होते। मुझे हालाँकि बर्फ़बारी बहुत पसन्द है, लेकिन जब कई-कई दिन तक सूरज नहीं निकलता तो मुझे परेशानी होने लगती है।
फ़िलहाल तो मैं जल्दी से जल्दी रूसी भाषा सीख लेना चाहती हूँ। मेरे जीवन में यह एक बेहद ज़रूरी काम है।
कोलकाता के तमोघना दास पिछले चार साल से रूस में हैं
वे पिछले चार साल से त्वेर के मेडिकल इंस्टीट्यूट में पढ़ रहे हैं और फ़ोर्थ ईयर के छात्र हैं।
तमोघना दास। स्रोत : Personal archive
वे कहते हैं — आपने पूछा है कि मैं पढ़ने के लिए रूस ही क्यों आया? रूस में ऐसे बहुत से छात्र हैं, जो मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। तो पहला कारण तो यही है कि मैं अपने हमवतनों के बीच ही रहना चाहता था। इसके अलावा भारत में मेडिकल की पढ़ाई बहुत महंगी है।
भारत की तरह यहाँ भी पढ़ाई के दौरान सिर्फ़ ख़ुद पर ही भरोसा रखना पड़ता है। यहाँ की परीक्षा प्रणाली और यहाँ का कोर्स भारत से एकदम अलग है। सबसे बड़ा फ़र्क यह है कि भारत के मेडिकल इंस्टीट्यूट में सिर्फ़ साढ़े चार साल पढ़ना होता है, जबकि यहाँ छह साल तक पढ़ाई होती है।
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मेरे लिए रूस में सबसे बड़ी दिक़्क़त रही भाषा। हालाँकि हमारे कई अध्यापक अँग्रेज़ी जानते हैं, पर हमारा सारा कोर्स रूसी भाषा में ही है। जब मैं रूस में पढ़ने के लिए आया था तब मुझे रूसी भाषा का एक शब्द भी नहीं आता था। इसलिए पहले दो साल तो मुझे बहुत परेशानी हुई, लेकिन फिर आदत पड़ गई। मेरे रूसी दोस्तों ने रूसी भाषा सीखने में मेरी बड़ी सहायता की। छुट्टियों में मैंने मस्क्वा और साँक्त पितेरबुर्ग की यात्रा की। इसके अलावा मैं अपने सहपाठियों के साथ कज़ान गया। मेरा समय यहाँ ख़ूब मज़े में बीत रहा है।
रूस – सचमुच बड़ा अच्छा देश है। अगर यहाँ का मौसम थोड़ा बेहतर होता तो मज़ा ही आ जाता। इन सर्दियों में त्वेर में तापमान शून्य से 33 डिग्री नीचे तक चला गया था। बहुत ठण्ड पड़ने लगी थी।
अपनी पढ़ाई ख़त्म करके मैं भारत लौट जाना चाहता हूँ। लेकिन छुट्टियों में मैं अक्सर रूस आया करूँगा। रूस मुझे बेहद पसन्द है।
रूस में मेडिकल की शिक्षा कैसी है?