भारत-रूस रेलमार्ग पर जल्दी ही रेलगाड़ियाँ चलनी शुरू हो जाएँगी
भारत-रूस रेलमार्ग को औपचारिक तौर पर अन्तरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा भी कहा जा रहा है। यह ग़लियारा क़रीब-क़रीब पूरी तरह से बनाकर तैयार हो चुका है। समाचार-पत्र ’इकोनोमिक टाइम्स’ में 3 अप्रैल को प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार, आने वाले पखवाड़े में इस रेलनार्ग पर ख़ाली डिब्बों और ख़ाली कण्टेनरों वाली एक मालगाड़ी चलाई जाएगी।
समाचार-पत्र ने रेलमार्ग की तैयारी से जुड़े सूत्रों के हवाले से लिखा है कि रेलमार्ग में शामिल हिस्सेदारों की बैठक में इस रेलमार्ग पर रेलों का आवागमन चालू करने से जुड़े सवालों पर चर्चा हुई।
जल्दी ही इस रेलमार्ग पर भारत से रूस तक ख़ाली डिब्बों और ख़ाली कण्टेनरों वाली एक मालगाड़ी चलाई जाएगी ताकि रूस और भारत के बीच राजनयिक सम्बन्धों की स्थापना की 70 वीं जयन्ती को रेखांकित किया जा सके।
तमिलनाडु में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में रूस का पहला निवेश
इस अन्तरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे का निर्माण इसलिए किया गया है ताकि भारत और दक्षिणी एशिया को रूस और उत्तरी यूरोप से सीधे जोड़ा जा सके। इस नए रेलमार्ग की बदौलत ईरान, अज़रबैजान और रूस की रेलवे लाइनें भी एक-दूसरे से जुड़ जाएँगी और इन देशों के बीच भी आवागमन सुगम हो जाएगा।
पूरी तरह से विकसित होने के बाद यह रेलमार्ग भारत को ईरान और अज़रबैजान के रास्ते सीधे रूस से जोड़ देगा। इस रेलमार्ग की लम्बाई 7 हज़ार किलोमीटर होगी।
नई सहस्त्राब्दी की शुरूआत में रूस, ईरान और भारत ने मिलकर यह नया रेलमार्ग शुरू करने की परियोजना बनाई थी और प्राचीन परिवहन मार्ग को फिर से शुरू करने का प्रस्ताव रखा था। मुम्बई में शुरू होकर रेल समुद्री जहाज़ से ईरान के चाबहार और बन्दर अब्बास बन्दरगाहों तक पहुँचेगी। उसके बाद रेल कास्पियाई समुद्र के बन्दरगाह तक रेल लाईनों पर चलेगी। वहाँ से फिर जहाज़ पर रूस के आस्त्रख़न बन्दरगाह तक पहुँचेगी या कास्पियाई सागर के रास्ते मध्य एशिया, रूस के कोहकाफ़ के इलाके और उत्तरी यूरोप तक जाएगी।
इस परियोजना पर काम करने के बारे में सितम्बर 2000 में तीनों देशों ने एक अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किए थे। फिर उसकी पुष्टि के बाद 16 मई 2002 से यह अनुबन्ध लागू हो गया। बाद में 11 अन्य देश भी इस परियोजना से जुड़ गए। ये देश हैं — अरमेनिया, अज़रबैजान, बेलारूस, बल्गारिया (पर्यवेक्षक), कज़ाख़स्तान, किर्गिज़ीस्तान, ओमान, सीरिया, ताजिकिस्तान, तुर्की और उक्रईना।
भारत रूसी रक्षा तकनीक का पूरी तरह से अपने यहाँ उत्पादन करने में विफल क्यों?