तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो... रूसी लोग मुस्कुराते क्यों नहीं हैं?
रूसी लोगों के बारे में दुनिया में अक्सर लोग यह सोचते हैं कि वे बहुत कम मुस्कुराते हैं और मनहूस-सी सूरत बनाए घूमते रहते हैं। ख़ुद बहुत से रूसी लोगों को भी ऐसा ही लगता है। पत्रकार और लेखक गिओर्गी बोफ़्त ने एक बार लिखा था — हमारे यहाँ नए साल पर जब देश के राष्ट्रपति टीवी पर देशवासियों को शुभकामनाएँ दे रहे होते हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे वे उन्हें कोई शोक-समाचार सुना रहे हों और उनसे अपनी संवेदनाएँ व्यक्त कर रहे हों।
मुस्कुराते हैं – लेकिन सबके सामने नहीं
सिर्फ़ अकेले गिओर्गी बोफ़्त ने ही रूसियों की इस ख़ासियत का ज़िक्र नहीं किया है। रूस के वरोनेझ विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर इओसिफ़ स्तेरनिन ने भी लिखा है — रूसियों की यूरोप के लोगों से तुलना करें तो रूसी लोग उदास और निराश दिखाई देते है, जिनके चेहरे पर हँसी बहुत कम फूटती है। जर्मनी की रूसी भाषा विशेषज्ञ कतारिना वेन्त्सल 1990 से रूस में रह रही हैं। उन्हें याद है कि एक बार उनकी माँ उनसे मिलने रूस आई थीं तो उन्होंने कहा था — तुम इतना मुस्कुराती हो कि तुम्हें देखते ही रूसी लोग यह समझ जाते होंगे कि यह कोई विदेशी लड़की है। सवाल तो यह है कि रूसी लोग अपने घर से बाहर निकलते हैं तो अपनी शक़्ल पर मनहूसियत क्यों ओढ़ लेते हैं?
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मनोवैज्ञानिक पाविल पनमर्योफ़ ने रूस-भारत संवाद से बात करते हुए कहा कि बात सिर्फ़ सड़क पर घूमते हुए आम लोगों के बीच मुस्कुराने की हो रही है। अनजान आदमी को देखकर मुस्कुराना रूसियों की आदत में शामिल नहीं है। अपने दोस्तों और परिचितों से तो रूसी लोग हमेशा मुस्कुराकर ही बातचीत करते हैं। जब उनका मूड ठीक होता है तो वे अपने आप भी मुस्कुराते हैं। हाँ, अनजान लोगों से सड़क पर नज़रें मिलने पर मुस्कुराना रूसियों के स्वभाव में नहीं होता।
इओसिफ़ स्तेरनिन का मानना है — रूसियों के लिए मुस्कान का एक विशेष महत्व होता है। उनका मानना है कि मुस्कान आदमी के मूड को और उसके रिश्ते को अभिव्यक्त करती है। इसलिए मुस्कराहट हमेशा सच्ची होनी चाहिए। रूसी लोग नकली मुस्कान में विश्वास नहीं रखते।
सतर्क और सावधान रूसी
पाविल पनमर्योफ़ का कहना है कि पश्चिमी यूरोप और पूर्वी यूरोप के कुछ देशों के मुक़ाबले रूसी लोगों का सांस्कृतिक विकास कुछ अलग तरह से होता है। उन्होंने कहा — हमारे यहाँ मुस्कान का मतलब ही दूसरा होता है। यूरोप में मुस्कुराने का मतलब है कि मुस्कुराने वाला आदमी सामने वाले नए आदमी से बातचीत करने के लिए तैयार है और वह मुस्कुराकर यह संकेत दे रहा है। जबकि हमारे यहाँ किसी भी अजनबी को देखकर सबसे पहले लोगों के मन में सतर्कता और सावधानी की भावना उभरती है। हम रूसी लोग जैसे उस अजनबी से यह पूछते हैं — भई, हम तो तुम्हें जानते नहीं, कुछ अपने बारे में बताओ। और बातचीत करते-करते अगर हम एक-दूसरे को पसन्द करने लगेंगे तो फिर एक-दूसरे से मुस्कुरा कर भी बात करेंगे।
मनोवैज्ञानिक पनमर्योफ़ का कहना है कि इस सतर्कता और सावधानी का कारण हमारे देश के इतिहास में और रूस में घटी घटनाओं में छिपा हुआ है। रूस को अक्सर विदेशी हमलों का सामना करना पड़ा है। न सिर्फ़ दूसरी जातियों के लोगों ने इस तरह के हमले किए हैं, बल्कि ख़ुद रूसी राजे-रजवाड़े भी प्राचीन काल में एक-दूसरे पर हमले करते रहते थे। इसी वजह से रूसियों को शायद यह आदत पड़ गई है कि अजनबियों से सावधानी बरतनी चाहिए और उनके सामने अपनी आत्मा खोलकर नहीं रख देनी चाहिए तथा उनसे बहुत जल्दी अन्तरंगता नहीं बढ़ानी चाहिए।
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लगभग यही बात पोलैण्ड के एक अध्ययनकर्ता कूबा क्रिस ने भी 2016 में अपनी किताब में लिखी है। उन्होंने लिखा है — मुस्कुराते हुए हमेशा सावधान रहें। आपकी मुस्कान देखकर ही लोग आपकी ईमानदारी, बुद्धिमता और सांस्कृतिक सभ्यता का फ़ैसला कर लेते हैं। कूबा क्रिस ने लिखा है कि जिन समाजों में अस्थिरता होती है, जहाँ लोग कभी भी किसी भी अनहोनी से टकराने का खतरा और तनाव महसूस करते हैं, वहाँ लोग अजनबियों को देखकर मुस्कुराते नहीं।
मूर्ख लोग ही मुस्कुराते हैं या मुस्कान नकली होती है
रूसी संस्कृति में यह बात रच-बस गई है कि अजनबियों को देखकर बेबात मुस्कुराने वाले लोगों की मुस्कान कृत्रिम या नकली होती है। रूसी लोग इस तरह की मुस्कान को चापलूसी या मूर्खता का दर्जा देते हैं। रूसी भाषा में रूसियों के बीच इस तरह का एक मुहावरा भी प्रसिद्ध है — बिना कारण मुस्कान, मूर्खता की पहचान।
मुस्कान को लेकर यह बात सिर्फ़ रूस में ही नहीं मानी जाती, बल्कि कई दूसरे देशों में भी मुस्कान के बारे में ऐसा ही रवैया अपनाया जाता है। अजनबियों को देखकर मुस्कुराने की प्रथा हर देश में अलग-अलग है। जैसे कूबा क्रिस ने अपनी किताब में लिखा है — पोलैण्ड के बारे में ब्रिटेन में प्रकाशित एक गाइड के लेखकों ने भी पोलैण्ड जाने वाले पर्यटकों को यह चेतावनी दी है कि पोलैण्ड में अजनबियों को देखकर मुस्कुराना मूर्खता और बेवकूफ़ी की निशानी मानी जाती है।
पाविल पनमर्योफ़ को विश्वास है कि मुस्कराहट के बारे में अलग-अलग समाजों में अलग-अलग संस्कृति का होना एक सामान्य बात है। रूस-भारत संवाद से बात करते हुए उन्होंने कहा — पश्चिमी देशों के मुकाबले हमारे देश के लोग कम मुस्कुराते हैं और सच्ची मुस्कान को ही विनम्रता से ज़्यादा महत्व देते है। इसका मतलब यह नहीं है कि वे ख़राब लोग हैं और हम ज़्यादा सच्चे, ज़्यादा अच्छे हैं। सवाल संस्कृति का है और अलग-अलग संस्कृतियों में लोगों की आदतें और प्रथाएँ अलग-अलग होती हैं।
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