आइए, आज आपको रूसी हैकरों के बारे में बताएँ
अमरीका में हुए राष्ट्रपति चुनावों के बाद दुनिया भर के पत्र-पत्रिकाओं में सिर्फ़ ’रूसी हैकरों’ की ही चर्चा हो रही है। लेकिन रूस-भारत संवाद ने इस सिलसिले में जब विशेषज्ञों से बातचीत की तो उनका कहना था कि ’रूसी हैकर’ जैसे कोई हैकर हैं ही नहीं। उनका कहना है कि हैकर तो हैं, लेकिन वे पूरी तरह से रूसी नहीं हैं।
कपोल-कल्पना या वास्तविकता?
’सिस्को सिस्टम्स’ के सुरक्षा सम्बन्धी व्यावसायिक सलाहकार अलिक्सेय लुकात्स्की का मानना है कि रूसी हैकर, बस एक कपोल-कल्पना ही है। उन्होंने बताया कि पश्चिमी सुरक्षा सेवाएँ न केवल रूस के निवासियों को ’रूसी’ कहती हैं, बल्कि रूस के पड़ोसी उन देशों के निवासियों को भी रूसी ही मानती हैं, जो सोवियत संघ में शामिल थे, जैसे उक्रईना, बेलारूस, कज़ाख़स्तान आदि। यहाँ तक कि लातविया, लिथुआनिया और एस्तोनिया जैसे बाल्टिक देशों के निवासियों को भी पश्चिमी सुरक्षा विशेषज्ञ ’रूसी’ बताते हैं।
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’इन्फ़ोवॉच’ के उपाध्यक्ष रुस्तम हैरतदीनफ़ का मानना है कि अमरीका के निवासी भी ’रूसी हैकरों’ के श्रेणी में आ सकते हैं। उन्होंने कहा – जिन लोगों ने सोवियत संघ में या रूस में गणितीय शिक्षा पाई है, उन सभी लोगों को आम तौर पर ’रूसी हैकर’ कहा जाता है। ये लोग अमरीका सहित दुनिया के किसी भी देश के नागरिक और निवासी हो सकते हैं।
दूसरे लोगों से ये लोग कैसे अलग हैं?
विशेषज्ञों का कहना है कि रूसी गणितीय प्रणाली के आधार पर शिक्षा पाने वाले लोगों का कम्प्यूटरों में सेंध लगाने का अपना विशिष्ट तरीका है। यह तरीका ही उन्हें दूसरे हैकरों से अलग करता है। ये हैकर एकदम खुले ढंग से सोचते-विचारते हैं। परम्परागत समस्याओं का भी ये लोग अपना विशेष रचनात्मक समाधान ढूँढ़ निकालते हैं – अलिक्सेय लुकात्स्की ने कहा – सोवियत शिक्षा पद्धति की खुले ढंग से सोचने-विचारने की यह ख़ासियत ही रूसी हैकरों को दूसरे हैकरों से अलग करती है, जो हमेशा एक ही पैटर्न पर, एक ही तरीके से सोचते हैं।
लेकिन रुस्तम हैरतदीनफ़ का कहना है कि कोरियाई, इज़रायली और चीनी हैकर भी रूसी हैकरों की तरह ही बेहतरीन गणितीय शिक्षा से लैस हैं और वे भी रूसी स्तर के हैकर बन गए हैं। सेंध लगाने की रूसी शैली संसाधनों की कमी की वजह से एक सघन या चुस्त शैली होती थी क्योंकि रूस में पढ़ने वाले छात्रों के पास हमेशा कम्प्यूटरी संसाधनों की कमी रहती थी, इसलिए वे सेंध लगाने का कोई ऐसा नया तरीका सोचते थे, जिससे कम साधनों से ही काम चल जाए। लेकिन अब यह चुस्त शैली या सघन शैली ग़ायब होती जा रही है।
कितने हैकर हैं?
’इन्फ़ोवॉच’ की सूचनाओं के अनुसार, दुनिया में आज दसियों हज़ार हैकर सक्रिय हैं, जिनमें से पचास-साठ हैकरों के बारे में ही विश्वसनीय ढंग से यह जानकारी है कि वे कम्प्यूटरों में सेंध लगाते हैं। यह जानकारी भी इसलिए उपलब्ध है क्योंकि उन्हें पकड़ा जा चुका है। ’काले हैकर’ कम्प्यूटरों में सेंध लगाकर अपराध करते हैं और यह कोशिश करते हैं कि एक ही जगह पर ज़्यादा दिन तक न टिकें। रूस्तम हैरतदीनफ़ ने कहा – ये हैकर पुरुष हैं या स्त्री, इनकी उम्र क्या है, इनकी शिक्षा कहाँ पर हुई है, इस बारे में तब तक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती, जब तक कि इन्हें पकड़ नहीं लिया जाता। पकड़े गए हैकरों को अदालत में ले जाकर सज़ा दिलवाना भी बहुत मुश्किल होता है। ऐसे बस, दस-बीस मामले ही अब तक सामने आए हैं।
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विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरे कम्प्यूटरों में सेंध लगाने का हर हैकर का उद्देश्य अलग-अलग होता है। अलिक्सेय लुकात्स्की ने कहा – ऐसे भी हैकर हैं, जो दूसरों के बैंक खातों से पैसे चुराते हैं और ऐसे भी हैकर हैं, जो दूसरे के कम्प्यूटरों से जानकारियाँ चुराकर उन्हें आगे बेचकर पैसे कमाते हैं। फिर ऐसे हैकरों की भी कमी नहीं है, जिन्हें कोई नहीं जानता, जो पूरी विश्व-व्यवस्था के लिए ही ख़तरा पैदा करते हैं। मेरा मतलब उन हैकरों से है, जो सरकारी स्तर पर किसी देश के लिए काम कर रहे होते हैं। अमरीकी मीडिया का कहना है कि ये हैकर हर उस सर्वर में सेंध लगाते हैं, जिस सर्वर को तोड़ने का आदेश उन्हें क्रेमलिन से मिलता है।
हैकर कहाँ रहते हैं?
ये हैकर कहीं भी किसी भी देश में, किसी भी देश के किसी भी शहर या गाँव में बसे हो सकते हैं। हो सकता है कि साइबेरिया के किसी छोटे से शहर में किसी वैज्ञानिक केन्द्र के पास कोई हैकर रह रहा हो। यह भी हो सकता है कि रूस के दक्षिण में बनी किसी वैज्ञानिक बस्ती में कोई हैकर अपना काम कर रहा हो। आम तौर पर हैकर वियतनाम, थाइलैण्ड या इण्डोनेशिया जैसे किसी सस्ते और गर्म देश में रहना पसन्द करते हैं, जो आम तौर पर इन अपराधियों को प्रत्यार्पित करने के लिए तैयार नहीं होते।
रुस्तम हैरतदीनफ़ को विश्वास है कि यह दुनिया अब बहुत छोटी हो गई है। एक देश में रहकर आप किसी दूसरे देश में काम कर सकते हैं। ऐसी कोई जगह नहीं है, जहाँ हैकर इकट्ठे होकर रहते हों। वे तो इस आभासी दुनिया में ही एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं। मिलकर काम करने के लिए उन्हें एक-दूसरे से परिचित होने या आपस में मुलाक़ात करने की कोई ज़रूरत नहीं है। सभी हैकर एक-दूसरे को उसके उपनाम (निक नेम) से ही जानते हैं।
आम तौर पर हैकरों के रूप में रूसी नागरिकों को विदेशों में ही पकड़ा जाता है। अक्तूबर 2016 में लिंकेदिन सोशल वेबसाइट में सेंध लगाने के लिए एफ़बीआई के अनुरोध पर येव्गेनी निकूलिन को गिरफ़्तार कर लिया गया था। अमरीका येव्गेनी का प्रत्यार्पण करने की कोशिश कर रहा है, जबकि रूस येव्गेनी निकूलिन को वापिस स्वदेश लाना चाहता है।
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