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क्या रूस प्रतिबन्ध हटाने के बदले अपने परमाणु बमों के ज़खीरे को कम करेगा?

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन के साथ यह बातचीत करना चाहते हैं कि रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबन्धों को पूरी तरह से समाप्त करने या उन प्रतिबन्धों के एक हिस्से को समाप्त करने के बदले रूस अपने परमाणु हथियारों के भण्डार में भारी कटौती करने के लिए तैयार हो जाए।

डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा — पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबन्ध लगा रखे हैं। आइए, ज़रा देखें कि उन्हें लेकर क्या हम रूस के साथ कोई अच्छी सौदेबाज़ी कर सकते हैं। मेरा ख़याल है कि हमें शुरूआत इस तरह से करनी चाहिए कि परमाणविक हथियारों का ज़खीरा घटकर बहुत कम रह जाए। 

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डोनाल्ड ट्रम्प की यह घोषणा सन् 2016 के आख़िर में कही गई बातों के एकदम उलट है। एक महीने पहले राष्ट्रपति बनने की होड़ में खड़े ट्रम्प  यह कह रहे थे कि अमरीका को अपनी परमाणु क्षमता को काफ़ी ज़्यादा मज़बूत बनाने की ज़रूरत है।

क्रेमलिन का नज़रिया 

रूस ने फ़िलहाल अमरीका के नए राष्ट्रपति की इन घोषणाओं पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है। रूस के राष्ट्रपति के प्रेस सचिव दिमित्री पिस्कोफ़ ने पत्रकारों से कहा कि उन्हें कुछ सब्र रखना चाहिए।

दिमित्री पिस्कोफ़ ने कहा — हमें अभी कुछ देर के लिए सब्र रखना चाहिए और डोनाल्ड ट्रम्प को राष्ट्रपति पद ग्रहण करने देना चाहिए। उसके बाद ही हम उनकी पहलों और प्रस्तावों का मूल्यांकन करके उनपर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे। 

समर्थन में तर्क 

रूस की विज्ञान अकादमी के विश्व अर्थव्यवस्था और अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध संस्थान के प्रमुख विशेषज्ञ और भूतपूर्व मेजर-जनरल व्लदीमिर द्वोरकिन ने रूस-भारत संवाद से बात करते हुए कहा — यह प्रस्ताव रूस के पक्ष में है। अगर यह प्रस्ताव रूस के सामने रखा जाता है तो रूस को इससे सहमत हो जाना चाहिए। लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प की बातें बड़ी ढुलमुल होती हैं। वे आज एक बात कहते हैं और कल एकदम दूसरी बात करने लगते हैं। इसलिए पहले पूतिन के सामने औपचारिक प्रस्ताव आने दीजिए या अमरीका के विदेश मन्त्री को रूस के विदेशमन्त्री सिर्गेय लवरोफ़ से इस सिलसिले में बात करने दीजिए।

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व्लदीमिर द्वोरकिन ने कहा कि परमाणु हथियारों के ज़खीरे में कमी करने की बात कहकर उन्होंने कोई नई बात नहीं की है। बराक ओबामा ने तो सन् 2013 में ही यह कहा था कि तैनात किए गए परमाणु मिसाइलों की संख्या घटाने की ज़रूरत है।

सन् 2010 के पेरिस समझौते के अनुसार, अमरीका और रूस ने  तय कर लिया था कि सभी तरह के मिसाइलों पर अधिकतम 1550 परमाणविक बम तैनात किए जा सकेंगे। 

व्लदीमिर द्वोरकिन ने कहा — सन् 2013 से ही हम परमाणविक हथियारों में नई कटौती का पूरी ताक़त से विरोध करते रहे हैं। यूरोप में अमरीकी मिसाइल रक्षा व्यवस्था (अमिरव) का तर्क देकर हम कटौती के पक्ष में नहीं थे। हमारी यह मान्यता रही है कि परमाणु ज़खीरे में कटौती करने से रूस की परमाणु सुरक्षा क्षमता और शत्रु को रोकने की क्षमता कम हो जाएगी। जबकि हमारे विशेषज्ञ शोध और अनुसन्धान करके इसके एकदम विपरीत तर्क देते रहे हैं।

विरोध में तर्क 

रूस-भारत संवाद से बात करते हुए ’तास’ समाचार समिति के सैन्य-विश्लेषक वीक्तर लितोफ़किन ने कहा — अमरीका ने प्रस्ताव रखा है कि तैनात परमाणु हथियारों की संख्या अधिकतम 1000 तक सीमित कर दी जाए और सभी तरह के वाहक मिसाइलों की संख्या को घटाकर 500 तक सीमित कर दिया जाए। लेकिन यह समझा जाना चाहिए कि रूस और अमरीका के लिए परमाणु हथियार होने का मतलब अलग-अलग है। रूस इसे शत्रु के हमलों को रोकने वाला हथियार मानता है, जबकि अमरीका इन हथियारों को एक ऐसा बोझ समझता है, जिनका युद्ध के मैदान में भी कोई इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, लेकिन जिनकी देखरेख करने के लिए बड़ी धनराशि खर्च होती है। 

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उन्होंने कहा  — परमाणु बमों की जगह अमरीका सामान्य बमों से लैस ऐसे क्रूज मिसाइल बनाकर तैनात कर रहा है, जो उतने ही ताक़तवर हैं, जितने की एटम बम।

वीक्तर लितोफ़किन ने कहा — आज लड़ाई में 300 किलोटन की विस्फोटक शक्ति वाले बमों की कोई ज़रूरत नहीं है। ऐसे मिसाइल भी नहीं चाहिए जो तयशुदा निशाने से दस-बीस किलोमीटर भटककर मार करें। पचास साल पहले के मुक़ाबले आज सभी हथियार एकदम सटीक मार करते हैं, इसलिए आज 100 किलोटन विस्फोटक शक्ति वाले हथियार ही काफ़ी होंगे, जिनमें धमाका होने के बाद न तो रेडियमधर्मियता फैलेगी और न ही दुनिया के लोगों पर कोई मनोवैज्ञानिक कुप्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि परमाणु निःशस्त्रीकरण के सवाल पर रूस के साथ होने वाली बातचीत को सफल बनाने के लिए सिर्फ़ रूस पर लगे प्रतिबन्धों को ही हटाना ज़रूरी नहीं है, बल्कि यूरोप में और सारी दुनिया में भूराजनीतिक स्थिति को भी सहज बनाया जाना चाहिए।

वीक्तर लितोफ़किन ने कहा — जब बाल्टिक देशों में नाटो अपने नए से नए सैन्य-दस्तों को तैनात कर रहा है, पोलैण्ड और रोमानिया में अमरीकी मिसाइल रक्षा व्यवस्था (अमिरव) तैनात की जा रही है, ऐसी स्थिति में रूस के साथ परमाणु हथियारों में कटौती करने के सवाल पर बातचीत करना बहुत मुश्किल और जटिल होगा। अमरीकी मिसाइल रक्षा व्यवस्था (अमिरव) तो बस कहने के लिए ही रक्षा व्यवस्था है, उसे कभी भी बहुत थोड़े से समय के भीतर हमलावर व्यवस्था में वदला जा सकता है।

1972 में सोवियत संघ और अमरीका के बीच परमाणु रणनीतिक हथियारों को सीमित करने के बारे में पहली दुपक्षीय साल्ट-1 सन्धि हुई थी। इस सन्धि के अनुसार दोनों पक्षों ने यह दायित्व लिया था कि वे अपने एटमी हथियारों के भण्डार में आगे वृद्धि नहीं करेंगे और उनकी संख्या वर्तमान स्तर पर बनाए रखेंगे। 1991 में रूस और अमरीका ने रणनीतिक हमलावर हथियारों में कटौती करने के बारे में स्टार्ट-1 सन्धि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें दोनों ही देशों के लिए अधिकतम परमाणु हथियार रखने की सीमा छह-छह हज़ार तय कर दी गई थी। 1993 में रूस और अमरीका ने स्टार्ट-2 सन्धि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार मिसाइलों के अलग होने वाले मुखाग्रों पर परमाणु हथियार तैनात करने पर रोक लगा दी गई थी। इस सन्धि की पुष्टि भी हो गई थी, लेकिन यह सन्धि लागू न हो सकी। 2002 में रणनीतिक हमलावर क्षमता में कटौती की सन्धि करके यह तय किया गया कि दोनों देश वर्ष 2013 तक मिसाइलों पर तैनात किए जा सकने वाले अपने-अपने परमाणु बम 2200 तक घटा लेंगे। फिर 2011 में रूस और अमरीका के बीच यह तय हुआ कि वे अपने परमाणु बमों की संख्या घटाकर 1550 तक सीमित कर लेंगे और मिसाइलों पर तैनात परमाणु बमों की संख्या को घटाकर 700 तक सीमित कर लेंगे।

रूस और चीन कोरिया में अमरीकी मिसाइल रक्षा व्यवस्था का प्रतिरोध कैसे करेंगे

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