अमरीकी सेना रूसी हथियारों का इस्तेमाल क्यों और कैसे करती है
एक स्थानीय प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से समाचारपत्र ’डेली मेल’ ने यह ख़बर दी है कि नेवाडा राज्य में रूसी लड़ाकू विमान एसयू-27 अमरीकी लड़ाकू विमान के साथ हवाई-युद्ध का अभ्यास कर रहा था।
पिछले साल 8 नवम्बर को एक शौकीन फ़ोटोग्राफ़र ने इस हवाई-युद्ध की कुछ तस्वीरें खींची थीं। उन्होंने बताया कि तस्वीरों में दिखाई देने वाला विमान रूस का एक सीट वाला लड़ाकू-विमान ही है। डेली मेल में प्रकाशित लेख के लेखक ने बताया कि यह रूसी एसयू-27 विमान उन कुछ विमानों में से एक है, जिन्हें अमरीका ने सोवियत संघ के पतन के बाद दूसरे देशों से ख़रीद लिया था।
कुत्तों की लड़ाई
लड़ाकू विमानों के बीच यह हवाई युद्ध, जिसे अमरीकी अँग्रेज़ी में ’डॉग फ़ाइटिंग’ या कुत्तों की लड़ाई कहा जाता है, 6 हज़ार मीटर की ऊँचाई पर खुले आकाश में हो रहा था।
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रूसी समाचारपत्र इज़्वेस्तिया के सैन्य-विश्लेषक दिमित्री सफ़ोनफ़ ने रूस-भारत संवाद से कहा — आजकल यह माना जाता है कि जब से सटीक निशाना लगाने वाले मिसाइल आ गए हैं, तब से आमने-सामने के हवाई-युद्ध की कोई ज़रूरत ही नहीं रह गई है। दुश्मन को बहुत दूर से ही मिसाइल का निशाना बनाया जा सकता है। लेकिन आमने-सामने का हवाई-युद्ध करके पायलट अपने युद्ध-कौशल को सुधारता है और अपने विमान की युद्ध करने की क्षमता की जाँच करता है।
उन्होंने बताया — सोवियत संघ के पतन के बाद अमरीका ने वास्तव में कुछ सोवियत युद्ध तकनीक ख़रीदी थी। वाशिंगटन को डर था कि सोवियत विमान कहीं ईरान न ख़रीद ले, इसलिए उसने रूस से 21 मिग-29 लड़ाकू विमान ख़रीदे थे। फिर पिछली सदी के आख़िर में और इस सदी के शुरू में अमरीका ने अमरीकी पायलटों को हवाई-युद्ध का अभ्यास कराने के लिए बेलारूस और उक्रईना से कुछ एसयू-27 लड़ाकू विमान भी ख़रीदे थे।
दिमित्री सफ़ोनफ़ ने कहा — इन सभी विमानों की ख़रीद अमरीकी नागरिकों ने अनौपचारिक रूप से निजी तौर पर की थी ताकि अमरीकी विशेषज्ञ इन विमानों का अध्ययन व अनुसन्धान कर सकें। इसका कारण यह भी था कि सारी दुनिया के विभिन्न देशों की सेनाओं ने बड़ी संख्या में रूसी लड़ाकू विमान एसयू-27 ख़रीदे थे और अमरीकी चाहते थे कि वे अपने सम्भावित दुश्मन की ताक़त और सभी कमज़ोरियों से पूरी तरह परिचित हों।
रूसी समाचारपत्र इज़्वेस्तिया के सैन्य-विश्लेषक दिमित्री सफ़ोनफ़ ने रूस-भारत संवाद को बताया कि आज एसयू-27 लड़ाकू विमान न केवल रूस की सेना में बल्कि भारत, मलेशिया, वेनेजुएला, अल्जीरिया और बहुत से दूसरे देशों की वायुसेनाओं में भी काम कर रहे हैं। लेकिन अमरीका ने इस तरह के जो विमान ख़रीदे थे, वे न तो लड़ाई के काबिल थे और न ही सैन्याभ्यास करने के। वे तो ऐसे बेकार हो चुके लड़ाकू विमान थे, जिन पर कोई हथियार ही तैनात करना नामुमकिन था।
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अमरीकी वायुसेना के रंग बदलने वाले गिरगिट
पिछले साल शरद्काल में अमरीकी वायुसेना की ओर तब एक बार फिर अन्तरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान गया, जब कनाडा के एक पत्रकार क्रिस्चियन बोरिस ने ट्वीटर में अमरीकी लड़ाकू विमान एफ़/ए-18 की एक तस्वीर डाली, जिसमें अमरीकी विमान को रूसी विमान एसयू-34 की तरह रंगा गया था।
रूसी सैन्य विज्ञान अकादेमी के प्रोफ़ेसर वदीम कज़्यूलिन ने रूस-भारत संवाद को बताया — दोनों विमानों में बस, इतना ही फ़र्क दिखाई देता है कि एफ़/ए-18 विमान के पंख फ़ोल्डिंग हैं और वे तह होकर सिमट जाते हैं। इसके अलावा अमरीकी विमान की पूँछ का एक किनारा एक तरफ़ को झुका हुआ है, जबकि एसयू-34 विमान ऐसा नहीं है। ज़मीन से अगर कोई उड़ते हुए विमान की शौकिया कैमरे से तस्वीर ले तो रूसी विमान और अमरीकी विमान में कोई फ़र्क दिखाई नहीं देता। नवम्बर-2016 में नेवाडा में फ़ोटोग्राफ़र ने जो तस्वीरें ली हैं, वे भी भ्रामक हो सकती हैं।
वदीम कज़्यूलिन ने कहा — दूसरे देशों के विमानों के रंग में अपने विमान को रंग लेना एक आम बात है ताकि युद्धाभ्यास के दौरान हवा में उड़ते विमान को देखकर यह मालूम हो सके कि विमान अपना है या शत्रु का। अमरीकी पायलट अक्सर इस तरह विमानों को रंगकर हवाई युद्ध का अभ्यास करते हैं।
लेकिन रूसी पत्रिका ’राष्ट्रीय सुरक्षा’ के प्रमुख सम्पादक ईगर करातचेन्का वदीम कज़्यूलिन की इस बात से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि इस तरह की ’साज़िश’ के बारे में सोचने की कोई ज़रूरत ही नहीं होती क्योंकि वास्तविक लड़ाई में विमान का रंग बदलकर कोई मुखौटा नहीं चढ़ाया जा सकता है। रूसी लड़ाकू विमानों में लगे राडार दुश्मन के विमान को उसके रंग से नहीं, बल्कि राडार पर दिखाई देने वाले उन संकेतों से पहचानते हैं, जो दुश्मन के विमान राडार पर छोड़ते हैं।
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अमरीका में सोवियत टैंक
पहले अमरीका की निजी हथियार कम्पनियाँ सोवियत और रूसी आग्नेयास्त्र ही बेचा करती थीं। लेकिन अब वे रूसी टैंक भी बेचने लगी हैं।
’राष्ट्रीय हित’ नामक पत्रिका के अनुसार, पूरी तरह से सुसज्जित और सभी उपकरणों से लैस रूसी टी-72 टैंक सिर्फ़ 50 हज़ार डॉलर में मिल जाता है। लेकिन ग्राहक को अपने फ़ार्महाउस में सजाने के लिए यह टैंक ख़रीदने से पहले हर तरह की काग़ज़ी कार्यवाही पूरी करनी पड़ती है और अमरीकी सरकार से टैंक ख़रीदने के लिए इजाज़त और प्रमाणपत्र लेना पड़ता है।
लाल सितारे से सजे ये ज़्यादातर रूसी हथियार शीत-युद्ध के समय में वार्सा सन्धि में शामिल देशों से अमरीका पहुँचे हैं। वार्सा सन्धि में शामिल देशों के पास सोवियत हथियार और बख़्तरबन्द टैंक भारी संख्या में हैं।
पत्रिका के अनुसार, निजी हथियार कम्पनियाँ बहुत कम मूल्य पर ये रद्दी हो चुके पुराने हथियार ख़रीद लेती हैं और उन्हें अमरीका ले जाती हैं। बाद ये कम्पनियाँ इन पुराने रूसी टैंकों पर लगी तोपों की नली को काटकर हर ग्राहक की माँग के अनुरूप उनमें बदलाव कर देती हैं। ग्राहक से इस तरह के किसी हथियार का आर्डर मिलने के बाद उसकी पूर्ति में दो महीने से ज़्यादा समय नहीं लगता।
’रेडफ़िश’ और ’सेन्चुरी आर्म्स’ पुराने हथियारों के बाज़ार में काम करने वाली बड़ी कम्पनियाँ मानी जाती हैं, जो आग्नेयास्त्रों और टैंकों के अलावा विभिन्न प्रकार की सोवियत बख़्तरबन्द गाड़ियाँ और जीपें भी बेचती हैं।
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