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2017 में भारत और रूस भूराजनीतिक और आर्थिक सहयोग बढ़ाएँगे

17 जनवरी 2017 को नई दिल्ली में आयोजित द्वितीय रायसीना वार्तालाप में भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने कहा — रूस के साथ हमारी मैत्री हमेशा बनी रहेगी। दुनिया के सामने आज जो चुनौतियाँ मुँह बाए खड़ी हैं, उनके बारे में राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन के साथ मेरी लम्बी बातचीत हुई है। हमारे दोनों देशों के बीच भरोसेमन्द और रणनीतिक सहयोग, विशेषकर रक्षा के क्षेत्र में आपसी सहयोग पहले से कहीं अधिक गहरा हुआ है…शान्ति, प्रगति और समृद्धि हेतु क्षेत्रीय स्तर पर आपसी जुड़ाव की अनिवार्य जरूरत को हम अच्छी तरह से समझते हैं। पश्चिम व मध्य एशिया तक और पूर्व में एशिया-प्रशान्त क्षेत्र तक पहुँचने में हमारे सामने जो बाधाएँ आ रही हैं, उन्हें दूर करने के लिए हमने अनेक उपयुक्त विकल्पों पर काम किया है। ईरान तथा अफ़गानिस्तान के साथ चाहबहार सम्बन्धी त्रिपक्षीय समझौते और अन्तरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (यानी भारत को रूस से जोड़ने वाले रेलमार्ग)  को सक्रिय करने की हमारी प्रतिबद्धता इस बात के दो स्पष्ट व सफल उदाहरण हैं।

प्रधानमन्त्री मोदी के इस वक्तव्य से यह अन्दाजा लगाया जा सकता है कि आगामी वर्षों में और निकट भविष्य में भारत-रूस सम्बन्ध किस तरह के होंगे। अब भारत-रूस रिश्ते पहले से अधिक बहुआयामी होते जा रहे हैं। यही नहीं, उनके आपसी रिश्तों का  पूरी दुनिया पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा।

भारत और रूस के बीच मतभेदों से किसे फ़ायदा होगा? 18 जनवरी 2017 विनय शुक्ला

आज की दुनिया के सामने युद्ध, आतंकवाद और प्रवासन की भारी चुनौतियाँ मुँह बाए सामने खड़ी हैं, जिनका विश्व की भूराजनीतिक स्थिति पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। यही नहीं, जलवायु परिवर्तन की समस्या पर केन्द्रित ‘पेरिस समझौते’ के क्रियान्वयन का मामला भी अभी अधर में ही लटका हुआ है। उधर आर्थिक मोर्चे पर, वैश्विक आर्थिक विकास में सुधार, व्यापारिक मन्दी, तेल की नीची क़ीमतों, संरक्षणवाद की बढ़ती प्रवृत्ति और सबसे बढ़कर, विकसित व विकासशील देशों में मौजूद बेरोज़गारी विश्व की प्रमुख आर्थिक समस्याओं के रूप में सामने दिख रही हैं।

आशा है कि इन भारी-भरकम चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत और रूस मिलकर कुछ अभिनव विकल्पों पर काम करेंगे। इसके लिए नए विचारों और अभिनव तरीकों को अपनाने की ज़रूरत पड़ेगी। इसके लिए जहाँ एक ओर वैश्विक स्तर पर वार्ताएँ करनी होंगी तथा अमरीका, यूरोसंघ, जापान व दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ यानी आसियान के साथ आर्थिक गठजोड़ बनाने की प्रक्रिया को तेज़ करना होगा, वहीं दूसरी ओर ब्रिक्स, विश्व व्यापार संगठन तथा जी-20 समूह को भी अधिक परिणामोन्मुख बनाना होगा।

भारत और यूरेशियाई आर्थिक संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता

भारत और रूस द्विपक्षीय स्तर पर ऊँची छलांग लगाने के लिए पूरी तरह से तैयार दिख रहे हैं। परस्पर लाभकारी दुतरफा आर्थिक सहयोग के मामले में यह बात विशेष तौर पर लागू होती है, जिससे दोनों ही पक्षों को एक समान आर्थिक लाभ मिलेगा। भारत और यूरेशियाई आर्थिक संघ के बीच 2017 में मुक्त व्यापार समझौते के बारे में बातचीत शुरू हो जाने की आशा है, जिसमें जिन्स व्यापार, सेवा व्यापार के साथ-साथ निवेश भी शामिल होगा। रूस और भारत के बीच आर्थिक सहयोग के मामले में यह काफी बड़ा क़दम होगा। इस मुक्त व्यापार समझौते के भीतर ऊर्जा सहयोग पर ज़ोर और ‘हरित गलियारे’ का इस सम्पूर्ण क्षेत्र में विस्तार करने जैसे काम काफ़ी महत्वपूर्ण होंगे। एक ओर अरमेनिया, बेलारूस, कज़ाख़स्तान, किरगिज़िस्तान तथा रूस और दूसरी ओर भारत के इससे जुड़ने के कारण ऐसी आशा है कि व्यापार व निवेश से जुड़ी गतिविधियों में भारी तेज़ी आएगी और इन सभी देशों को अत्यधिक लाभ होगा।

इस पृष्ठभूमि में यह बात बिल्कुल साफ़ है कि चाहबहार बन्दरगाह को विकसित करने और अन्तरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (रूस और भारत के बीच रेलमार्ग) को सक्रिय करने पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे आपसी व्यापार में लगने वाले समय के साथ-साथ परिवहन लागत में भी भारी कमी आएगी, जिसके कारण व्यापार व निवेश सम्बन्धी गतिविधियों में अभूतपूर्व तेज़ी आने की सम्भावना है। हाल ही में भारत ने अन्तरराष्ट्रीय सड़क परिवहन यानी अन्तरराष्ट्रीय माल परिवहन सीमाशुल्क समझौते पर हस्ताक्षर करने की इच्छा व्यक्त की है। भारत द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर किया जाना काफ़ी महत्वपूर्ण बात होगी। सामंजस्य बिठाने वाले इस प्रकार के विनियामक प्रयासों से व्यापारिक सुगमता लाने में काफ़ी आसानी रहती है। इसके कारण दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में रूस को व्यापारिक अवसर मिलने की भी सम्भावना बनती है।

2016 में रूस-भारत सम्बन्ध : एक समीक्षा

मेक इन इण्डिया यानी भारत में निर्माण

भारत-रूस राजनयिक सम्बन्ध स्थापित होने की 70वीं जयन्ती पर ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जिनमें दोनों देशों के बीच पारस्परिक सहयोग की आगे काफ़ी सम्भावना दिखती है। इंजीनियरी एक ऐसा ही क्षेत्र है, जिसमें व्यापार व निवेश सहयोग की काफ़ी गुंजाइश है। 2017 में भारत में ‘अन्तरराष्ट्रीय इंजीनियरी प्रदर्शनी’ आयोजित होने जा रही है। इस प्रदर्शनी में रूस की सहभागिता से भारत और रूस के बीच इंजीनियरी व्यापार व निवेश सहयोग को काफ़ी मज़बूती मिल सकती है। इसी तरह रूस और भारत के बीच ‘लघु तथा मध्यम उद्यम मंच’ के द्वारा इस रोज़गारपरक क्षेत्र में आपसी औद्योगिक सहयोग के नए अवसर सृजित होने की आशा है। और आख़िर क्यों नहीं, इस समय भारत और रूस, दोनों ही देश विनिर्माण कौशल व कारख़ाने विकसित करने और अन्य देशों को अपना निर्यात बढ़ाने को लेकर बड़े उत्सुक हैं।

भारत में इंजीनियरी क्षेत्र पर ज़ोर और लघु व मध्यम उद्यमों पर विशेष ध्यान दिए जाने से रूस के लिए विद्युत तथा गैर-विद्युत सामानों सम्बन्धी पूँजीगत सामानों के निर्यात और निवेश के अवसर सृजित होंगे। वहीं दूसरी ओर, भारत को रोज़गार निर्माण, कौशल सृजन और प्रतिस्पर्धी दरों पर विनिर्माण के मामले में फ़ायदा मिलने की आशा है। भारत के ‘मेक इन इण्डिया’ और ‘कौशल विकास’ जैसे अग्रणी कार्यक्रमों के लिए यह कुल मिलाकर काफ़ी शुभ संकेत है।

परस्पर सहयोग के अन्य क्षेत्र

रसायन, औषधियाँ, उर्वरक और कृषि उत्पादन सहित अनेक ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें दोनों देशों के लिए जिन्स व्यापार तथा निवेश की अपार सम्भावनाएँ तो हैं ही, साथ ही रोज़गार उत्पन्न होने की भी भरपूर आशा है। भारत और रूस के बीच जिन सेवाओं के क्षेत्र में व्यापारिक सहयोग की सम्भावना है, वे हैं—  सूचना प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, जैव-प्रौद्योगिकी, जीव विज्ञान तथा रोबोट शास्त्र आदि के क्षेत्र में अनुसंधान व विकास सेवाएँ, कृषि विस्तार सेवाएँ इत्यादि।

भारत में विमुद्रीकरण यानी नोटबन्दी के पश्चात ‘डिजिटल इण्डिया’ कार्यक्रम और डिजिटल सेवाओं का महत्व अभूतपूर्व रूप से बढ़ा है। इसके कारण उच्चस्तरीय डिजिटल ढाँचे और साइबर सुरक्षा व्यवस्थाओं को स्थापित करने की ज़रूरत पड़ेगी।

दोनों देशों के बीच पर्यटकों की आवाजाही के क्षेत्र में अपार सम्भावना दिखती है। हालाँकि रूसी और भारतीय पर्यटकों के बीच एक-दूसरे देश के बारे में सूचनाओं का नितान्त अभाव है। इस खाई को पाटने के लिए दोनों देशों को तत्काल मिलकर प्रयास करना चाहिए। साथ ही यात्रा व पर्यटन ढाँचे को भी मज़बूत करना चाहिए। इससे दोनों ही देशों को आमदनी भी होगी और भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होगी। यही नहीं, इससे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव बढ़ेगा, जिसके भविष्य में बड़े महत्वपूर्ण प्रभाव सामने आएँगे।

हम आशा करते हैं कि भारत-रूस राजनयिक सम्बन्धों की 70वीं जयन्ती का यह अवसर दोनों देशों के लिए ऐसा पड़ाव सिद्ध हो कि इन दोनों उभरती अर्थव्यवस्थाओं और समृद्ध संस्कृतियों के बीच ‘भरोसेमन्द व रणनीतिक’ सहयोग के पुनरुत्थान की प्रक्रिया शुरू हो। पिछले कुछ वर्षों में रूस और भारत के बीच जो अनेक सकारात्मक गतिविधियाँ और परिणाम देखने को मिले हैं, आगामी वर्षों में भी उनके लगातार चलते रहने तथा और भी गति पकड़ने की आशा है। इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक व आर्थिक सम्बन्ध तो मजबूत होंगे ही, साथ ही उनके बीच रक्षा तथा सामरिक सहयोग भी और गहरा होगा।

राम उपेन्द्र दास नई दिल्ली स्थित ‘विकासशील देशों हेतु अनुसंधान व सूचना प्रणाली’ यानी आरआईएस में प्रोफ़ेसर हैं। अनूप कुमार झा दिल्ली विश्वविद्यालय में अनुसंधान अध्येता व अतिथि शिक्षक हैं। इस लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं।

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