भारत के नए बजट से रूस को क्या फ़ायदा होगा?
विगत 1 फ़रवरी को भारत का 2017 का बजट पेश करते हुए भारत के वित्तमन्त्री अरुण जेटली ने देश में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष क़दम उठाने की घोषणा की। इनमें से विनिर्माण, बुनियादी ढाँचा और डिजिटल लेन-देन वे प्रमुख क्षेत्र हैं, जिन दिशाओं में रूस भी भारत के साथ सहयोग कर सकता है।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद के बारे में बोलते हुए जेटली ने एक आशावादी टिप्पणी की कि अगले वित्त वर्ष में भारत की विकास-दर बढ़कर 6.75 प्रतिशत से 7.5 के बीच रहने की उम्मीद है। भारत का बजट पेश किए जाने से एक दिन पहले ही 2016-17 के लिए भारत के आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें बताया गया था कि चालू साल में भारत की विकास दर 7.1 फ़ीसदी रहने का अनुमान है, जो पिछले साल की 7.6 फ़ीसदी से कम होगी और इसका कारण विमुद्रीकरण और ऐसे ही कुछ दूसरे कारक रहे हैं।
रूस और भारत के बीच सैन्य-तकनीकी सहयोग के विकास की सम्भावनाएँ
सर्वेक्षण में यह स्वीकार किया गया है कि विमुद्रीकरण (नोटबन्दी) के फलस्वरूप भारत का आर्थिक विकास बहुत कम समय के लिए धीमा हुआ और विमुद्रीकरण (नोटबन्दी) के कारण हुए इस नुक़सान की भरपाई करने के लिए सरकार की नीतियों का समर्थन करने की ज़रूरत है। जेटली का भाषण सरकार द्वारा भ्रष्टाचार को कम करने और अर्थव्यवस्था का अधिक से अधिक डिजिटलीकरण करने के लिए उठाए गए कदमों के सकारात्मक परिणामों पर केन्द्रित था। उनका कहना था कि नोटबन्दी के फलस्वरूप जनता की वित्तीय बचत के प्रवाह में वृद्धि हुई और अर्थव्यवस्था को इससे काफ़ी समर्थन और बल मिला। जेटली ने कहा कि अगले साल तक नोटबन्दी का असर ख़त्म हो जाएगा। नोटबन्दी की वजह से बैंकों के पास अतिरिक्त नक़दी आ गई है। अब ऋण लागत कम हो जाएगी और देश में आर्थिक गतिविधियों के विकास के लिए ऋण सुविधाओं के उपयोग में वृद्धि होगी।
नए बजट में विदेशी निवेशकों से नए दिलचस्प वायदे किए गए हैं। भारत की आज की सरकार विदेशी निवेशकों के लिए अर्थव्यवस्था के दरवाज़े और अधिक खोल रही है तथा अर्थव्यवस्था को उनके लिए और अधिक संभावनापूर्ण बना रही है। भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे से जुड़ी परियोजनाओं में और अभिनव परियोजनाओं में विदेशी निवेश के लिए और ज़्यादा नए अवसर उपलब्ध कराकर सरकार भारत के आर्थिक विकास की ओर बड़ा ध्यान दे रही है।
ये अवसर रूस के लिए रूस-भारत सहयोग के पारम्परिक क्षेत्रों से हटकर आगे सहयोग करने का रास्ता खोलते हैं। इलेक्ट्रॉनिक भुगतान की सुदृढ़ बुनियादी व्यवस्था के निर्माण और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में अपने अग्रिम तकनीकी ज्ञान की बदौलत रूस बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के विकास में भारत की सहायता कर सकता है और भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया में और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनने की दिशा में सहायक हो सकता है।
रूस-भारत संवाद से बात करते हुए एक रूसी विश्लेषक बग्दान ज़्वारिच ने कहा — आने वाले सालों में रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र ही रूस और भारत के बीच सहयोग की मुख्य दिशाएँ बने रहेंगे, हालाँकि रूसी पूँजी निवेशक भारत में सूचना तकनीक, जैव प्रौद्योगिकी और कृषि क्षेत्रों में निवेश करने की ओर भी ध्यान दे सकते हैं। निकट भविष्य में भारत में इन क्षेत्रों के विकास की भी काफ़ी अच्छी सम्भावनाएँ हैं।
भारत और रूस के बीच मतभेदों से किसे फ़ायदा होगा?
सड़क, बन्दरगाह और ब्रॉडबैण्ड
जेटली ने कहा कि आर्थिक विकास को और तेज़ करने के लिए भारत में आर्थिक सुधार जारी रखे जाएँगे और सरकार दृढ़ता के साथ अपनी नीतियों को लागू करेगी। उन्होंने कहा कि बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और विकास परियोजनाओं में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि होगी। बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में सरकारी पहलों की घोषणा करते हुए जेटली ने कहा कि भारत अगले वित्त वर्ष में बुनियादी ढाँचा क्षेत्र के विकास के लिए 59.5 अरब डॉलर (3,96,135 करोड़ रुपए) खर्च करेगी। देश में सड़कों का विकास करने की ओर बड़ा ध्यान दिया जाएगा, जिस क्षेत्र में हम काफ़ी पिछड़े हुए हैं।
बजट में रेलों के विकास के लिए बड़े स्तर पर निवेश करने का प्रस्ताव रखा गया है। 2017-18 में भारत में 3,500 किलोमीटर लम्बी नई रेल लाइनें बिछाई जाएँगी और रेल सुविधाओं को और आधुनिक बनाया जाएगा। इन रेल परियोजना में भागीदारी भारत के साथ सहयोग के नए क्षेत्रों में से एक क्षेत्र हो सकता है।
रूसी रेलवे पहले से ही भारत सरकार के साथ बातचीत कर रही है। दो देशों की सरकारों के बीच यह समझौता हुआ है कि नागपुर-सिकन्दराबाद रेलमार्ग पर रेलों की गति बढ़ाने में रूस भारत की सहायता करेगा।
तेल और ऊर्जा सम्बन्धी सहयोग
बजट पेश करते हुए एक प्रमुख घोषणा यह भी की गई कि सरकारी स्वामित्व वाली मौजूदा तेल और गैस कम्पनियों को सार्वजनिक क्षेत्र की एक प्रमुख तेल कम्पनी या एक निगम में बदल दिया जाए, ताकि वह निगम अन्तरराष्ट्रीय और घरेलू निजी तेल और गैस कम्पनियों की तरह काम कर सके। तेल और गैस उद्योग के विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा करने से सरकारी तेल कम्पनियों के काम में सुधार होगा और उच्च जोखिम उठाने की उनकी क्षमता बढ़ जाएगी। हालाँकि, इस कदम का तत्काल कोई असर दिखाई नहीं देगा और इस तरह के एक निगम की स्थापना में भी कई साल लगेंगे।
रूस का भारत के नागर विमानन बाज़ार में प्रवेश
ऊर्जा के क्षेत्र में एक और घोषणा ओडिशा और राजस्थान में रणनीतिक तेल भण्डारण सुविधाओं के निर्माण से सम्बन्धित है। भारत पहले ही विशाखापट्टनम, मंगलौर और पडूर में कुल 53 लाख टन कच्चे तेल के भूमिगत भण्डारण की व्यवस्था कर चुका है।
गेटवे हाउस के ऊर्जा और पर्यावरण अध्ययन केन्द्र के विशेषज्ञ अमित भण्डारी ने रूस-भारत संवाद से बात करते हुए कहा — बजट में प्रस्तावित तेल भण्डारण की सुविधाओं का रूस और भारत मिलकर इस्तेमाल कर सकते हैं। दोनों देश पहले ही तेल और गैस के क्षेत्र में सहयोग कर रहे हैं। रूसी कम्पनी रोसनेफ्त ने पिछले साल ही एस्सार ऑयल को ख़रीद लिया है और अब वह पश्चिमी भारत में एक तेलशोधन कारख़ाने की मालिक बन गई है। इसलिए तेल भण्डारण की प्रस्तावित सुविधा दोनों देशों के लिए पारस्परिक रूप से लाभप्रद होगी।
भारत द्वारा उठाया गया एक और क़दम रूस के लिए हितकारी है। बजट में यह प्रस्ताव रखा गया है कि तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) पर बुनियादी सीमाकर को 5 प्रतिशत से घटाकर ढाई प्रतिशत कर दिया जाए। यह क़दम भारत को एक गैस आधारित अर्थव्यवस्था बनाने में सहायक सिद्ध होगा।
अमित भण्डारी ने कहा कि भारत और रूस के लिए यह एक सही समय हो सकता है, जब दोनों देश तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की आपूर्ति बढ़ाने के सवाल पर बातचीत कर सकते हैं। आने वाले सालों में भारत तरल प्राकृतिक गैस का एक बड़ा ख़रीददार बन जाएगा। भावी पाँच सालों में भारत में गैस का आयात बढ़कर दुगुना हो जाने की उम्मीद है। इस तरह तरल प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में भी रूस-भारत सहयोग बड़ी तेज़ी से विकसित होगा।
क्सेनिया कन्द्रतियेवा - व्यवसायिक गतिविधियों, आर्थिक सुधारों, आर्थिक विकास और अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध जैसे विषयों पर लिखने वाली मुम्बई की एक स्वतन्त्र पत्रकार हैं।
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