उत्तरी कोरिया के मिसाइल प्रक्षेपण से रूस क्यों चिन्तित?
12 फ़रवरी को उत्तरी कोरिया ने मध्यम दूरी तक मार करने वाले अपने मिसाइल का प्रक्षेपण किया। यह मिसाइल 500 किलोमीटर की दूरी पार करके जापान सागर में गिर गया। अमरीका ने घोषणा की कि उत्तरी कोरिया का यह मिसाइल परीक्षण असफल रहा है, लेकिन इसके बावजूद उसने इस परीक्षण की निन्दा की और सँयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने की माँग की। वाशिंगटन के अलावा उत्तरी कोरिया के इस क़दम की रूस सहित दुनिया के अन्य बहुत से देशों ने भी निन्दा की।
रूस के विदेश मन्त्रालय ने उत्तरी कोरिया की इस हरकत को सँयुक्त राष्ट्र के उन प्रस्तावों की ’चुनौती भरी उपेक्षा’ बताया, जिनमें उत्तरी कोरिया पर मिसाइलों का प्रक्षेपण करने पर रोक लगाई गई है। लेकिन सँयुक्त राष्ट्र की इन रोकों और फ़ैसलों को अनदेखा करके उत्तरी कोरिया अपने परमाणु और मिसाइल परीक्षण जारी रखे हुए है। रूस ने उत्तरी कोरिया के इस मिसाइल कार्यक्रम से परेशान सभी देशों से शान्त रहने की अपील की और ज़ोर दिया कि इस समस्या का समाधान सिर्फ़ राजनैतिक और कूटनीतिक तरीकों से ही किया जा सकता है।
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रूस-उत्तरी कोरिया की सीमा मिलती है
रूस इस बात को लेकर चिन्तित है कि कहीं तनाव बहुत ज़्यादा न बढ़ जाए, क्योंकि रूस और उत्तरी कोरिया की सीमाएँ मिलती हैं। रूस के सुदूर-पूर्व अध्ययन संस्थान के विशेषज्ञ यूरी मरोज़फ़ ने रूस-भारत संवाद से कहा — हालाँकि दो देशों के बीच आपसी सीमा सिर्फ़ 40 किलोमीटर ही है, जिसे बहुत बड़ी नहीं कहा जा सकता है। लेकिन अगर परमाणु युद्ध शुरू हो जाता है, तो उत्तरी कोरिया से परमाणु विकिरण का बादल हवा में उड़कर बहुत आसानी से रूस के इलाके में भी पहुँच सकता है।
इसके अलावा रूस यह भी नहीं चाहता है कि दुनिया के परमाणु क्लब का विकास हो और उसमें नए सदस्य देश शामिल हों। लेकिन उत्तरी कोरिया किसी भी तरह अपना परमाणु बम बनाने और उसके वाहक साधन के रूप में मिसाइल बनाने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि ऐसा करके ही उसे अपनी सुरक्षा की गारण्टी मिल सकती है।
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उत्तरी कोरिया चाहता है कि उसके पास ऐसे मिसाइल हों, जिन्हें एटम बमों से लैस किया जा सके और जो अमरीका में तय किए गए लक्ष्यों को निशाना बना सकें। यहाँ तक कि उत्तरी कोरिया इस सिलसिले में चीन की बात भी नहीं सुनना चाहता, जो उसकी बड़ी आर्थिक सहायता करता है और उसे अपना राजनीतिक समर्थन भी देता है। मरोज़फ़ ने कहा — उत्तरी कोरिया का मानना है कि अपनी परमाणु छतरी ही उसे विदेशी हस्तक्षेप से बचा सकती है।
मास्को के अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध संस्थान के विशेषज्ञ लिआनीद गुसेफ़ का कहना है — हालाँकि यह बात भी सच है कि उत्तरी कोरिया इसे भली-भाँति समझता है कि चीन अमरीका और इस इलाके में अमरीका के सहयोगी देशों पर दबाव डालने के लिए उसका इस्तेमाल करता है। लेकिन फिर भी यह नहीं कहा जा सकता है कि चीन और उत्तरी कोरिया के बीच किसी तरह का अमरीका विरोधी कोई गठबन्धन है क्योंकि चीन और अमरीका आर्थिक स्तर पर एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं।
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क्या अमरीका अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाएगा?
यह रूस के हित में नहीं होगा कि इस इलाके में तनाव बढ़ने का परिणाम यह हो कि अमरीका इस इलाके में अपनी फ़ौजी उपस्थिति बढ़ाए। इस इलाके में पहले ही अमरीका के दो बड़े सहयोगी देश हैं — जापान और उत्तरी कोरिया।
गुसेफ़ के अनुसार, आजकल इस इलाके की स्थिति ऐसी है कि अमरीका यहाँ अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा सकता है। यही नहीं, इस इलाके में हथियारबन्दी की दौड़ भी शुरू हो सकती है। वैसे भी, अमरीका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अक्सर यह बात कहते हैं कि चीन की बढ़त को रोकने और उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की ज़रूरत है। इस पृष्ठभूमि में इस इलाके में अमरीका की सैन्य उपस्थिति बढ़ाने की कार्रवाई अमरीका के राष्ट्रपति की इच्छा के अनुकूल ही होगी, जो अमरीकी फ़ौजी ताक़त का इस्तेमाल करके चीन को रोकना चाहते हैं।
लेकिन मरोजफ़ ने याद दिलाया कि पहले ट्रम्प दक्षिणी कोरिया में अमरीका की सैन्य उपस्थिति को कम करने की बात सोच रहे थे ताकि अमरीका की फ़ौजी खर्चे कम किए जा सकें। अब यदि उत्तरी कोरिया से अमरीका को चुनौती मिलनी शुरू होगी तो अमरीका अपनी सैन्य उपस्थिति को कम नहीं करेगा, लेकिन वह अपनी फ़ौजी उपस्थिति को बढ़ाएगा भी नहीं। जापान और दक्षिणी कोरिया में काफ़ी बड़ी संख्या में अमरीकी हथियार और अमरीकी सेना तैनात है।
मरोज़फ़ का मानना है कि अमरीका उत्तरी कोरिया की चुनौती का जवाब देने के लिए इस इलाके में अपनी मिसाइलरोधी रक्षा व्यवस्था को और ज़्यादा मज़बूत बना सकता है। अमरीका पहले ही यह जानकारी दे चुका है कि 2017 में वह दक्षिणी कोरिया में थाड नामक अपनी मिसाइलरोधी व्यवस्था के मिसाइल तैनात करेगा।
विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि यदि उत्तरी कोरिया के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को लेकर इस इलाके में तनाव बढ़ना शुरू होता है तो रूस बहुत ज़्यादा सावधानी बरतेगा और यह कोशिश करेगा कि इस समस्या से जुड़े सभी देशों के साथ उसके सम्बन्ध सामान्य बने रहें। इस दिशा में रूस अपनी परम्परागत नीति पर ही कायम रहेगा और सँयुक्त राष्ट्र के सहयोग से इस तनाव से जुड़े पक्षों के बीच वार्ता के माध्यम से समस्या का समाधान करने की कोशिश करेगा।
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