पूर्वी उक्रईना में क्या हो रहा है?
1. क्या हो रहा है?
7 अप्रैल 2014 से पूर्वी उक्रईना में गृहयुद्ध जारी है। यह गृहयुद्ध दनेत्स्क और लुगान्स्क नामक दो प्रदेशों की सेनाओं और उक्रईना की सरकारी सेना के बीच हो रहा है। दनेत्स्क और लुगान्स्क ने उक्रईना से अलग होकर आज़ाद रहने का ऐलान कर दिया है। 12 फ़रवरी 2015 तक उक्रईना के इन दोनों पूर्व प्रदेशों और उक्रईना के बीच भारी युद्ध हो रहा था, लेकिन 12 फ़रवरी को बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में इन तीनों पक्षों के बीच एक समझौता हुआ। इसके बाद लड़ाई बन्द हो गई। लेकिन यह लड़ाई बीच-बीच में फिर से भड़क उठती है और आज तक चल रही है।
समय-समय पर स्थिति बेहद तनावपूर्ण हो जाती है। जनवरी, 2017 के आख़िर में एक बार फिर नए सिरे से लड़ाई शुरू हुई और फिर उस लड़ाई में दर्जनों व्यक्ति मारे गए। सँयुक्त राष्ट्र के अनुसार, पूर्वी उक्रईना में चल रही इस लड़ाई में अभी तक कम से कम 9800 आदमी अपनी जान गँवा चुके हैं। इस संख्या में दोनों पक्षों की तरफ़ से लड़ाई में भाग लेने वाले सैनिक, आम नागरिक और उस बोइंग-777 के 298 यात्री भी शामिल हैं, जिसे दनेत्स्क प्रदेश में मार गिराया गया था और जिसमें सिर्फ़ विदेशी यात्री ही सवार थे। विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद दोनों ही पक्षों का यह कहना है कि इस विमान के गिरने में उनका हाथ नहीं है।
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2. आख़िर झगड़ा क्या है?
उक्रईना के पूर्वी इलाके रूस की सीमा से जुड़े हुए हैं। इन इलाकों में रहनेवाले लोग भी रूसी मूल के हैं और रूसी भाषा बोलते हैं। इस इलाके को दनबास भी कहा जाता है। यहाँ पर कोयले के सबसे बड़े भण्डार बने हुए हैं और कोयले की कई खदाने हैं। यह इलाका आर्थिक रूप से उक्रईना का सबसे विकसित और समृद्ध इलाका माना जाता है। अब इन खदानों पर उक्रईना से अलग हुए दनेत्स्क प्रदेश का नियन्त्रण है।
2014 में उक्रईना में घटी घटनाओं के बाद और राष्ट्रपति वीक्तर यनुकोविच को उक्रईना के राष्ट्रवादी विपक्ष द्वारा ज़बरदस्ती सत्ता से हटाकर सत्ता पर कब्ज़ा करने के बाद उक्रईना के पूर्वी इलाके के लोगों के बीच भय का माहौल पैदा हो गया। लोग डरे हुए थे कि उक्रईना की सत्ता पर कब्ज़ा जमाने वाली नई राष्ट्रवादी सरकार राष्ट्रवादी नीतियाँ लागू करेगी और रूसी भाषा बोलने पर प्रतिबन्ध लगा देगी।
नई राष्ट्रवादी सरकार ने ऐसा ही किया भी। न केवल रूसी भाषा बोलने पर रोक लगा दी गई, बल्कि रूसी टेलीविजन चैनल बन्द कर दिए गए, रूसी भाषा में निकलने वाली पत्रिकाओं और अख़बारों पर रोक लगा दी गई, स्कूलों में रूसी भाषा का पठन-पाठन भी रोक दिया गया। इसके अलावा तनाव इसलिए भी और ज़्यादा बढ गया क्योंकि क्रीमिया प्रदेश के प्रशासन ने उक्रईना में सत्ता पलट होते ही 16 मार्च 2014 को अपने यहाँ जनमतसंग्रह कराया और यह तय कर लिया कि क्रीमिया उक्रईना से निकलकर रूस में शामिल हो रहा है।
जबकि दनेत्स्क और लुगान्स्क प्रदेश के निवासियों ने अपनी-अपनी प्रादेशिक सरकारों की प्रशासनिक इमारतों पर कब्ज़ा कर लिया और 7 अप्रैल 2014 को उक्रईना से बाहर निकलने और आज़ाद होने की घोषणा कर दी। इसके जवाब में उक्रईना की सेना ने इन दोनों प्रदेशों के ख़िलाफ़ आतंकवाद विरोधी सैन्य-अभियान शुरू कर दिया, जो आज तक चल रहा है। इन दोनों प्रदेशों के विरुद्ध अपनी सैन्य कार्रवाई को उक्रईना ’आतंकवाद विरोधी सैन्य-अभियान’ कहकर पुकारता है। उक्रईना की सरकारी सेना का यह सैन्य अभियान दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ने लगा। 2014 की गर्मियों में उक्रईना की सेना हवाई जहाज़ों, तोपों और टैंकों से इन दोनों प्रदेशों पर बमबारी कर रही थी।
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3. इस संकट के बारे में उक्रईना और अलगाववादियों का नज़रिया
एक तरफ़ तो दोनों पक्ष एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लगातार बयानबाज़ी कर रहे हैं। उक्रईना दनेत्स्क और लुगान्स्क को आतंकवादी बता रहा है और दनेत्स्क और लुगान्स्क प्रदेश उक्रईना की सरकार पर रूसी भाषी जनता का नरसंहार करने और फ़ासीवादी नज़रिया अपनाने का आरोप लगा रहे हैं।
दूसरी तरफ़ इन दोनों प्रदेशों और उक्रईना के बीच गहरे आर्थिक रिश्ते बने हुए हैं। दनबास के इस इलाके से उक्रईना को लगातार कोयले की सप्लाई की जाती है और इन दोनों प्रदेशों के सारे उद्योग-धन्धे अभी तक उक्रईना की सरकार को ही टैक्स दे रहे हैं। उक्रईना की ख़ुफ़िया एजेन्सी एसबीयू (सिक्योरिटी ब्यूरो ऑफ़ उक्रईना) ने बताया कि 2016 में दनेत्स्क और लुगान्स्क प्रदेशों के उद्योग-धन्धों से उक्रईना की सरकार को 31 अरब 64 करोड़ 78 लाख 1 हज़ार ग्रिवेन (यानी 1 अरब 17 करोड़, 25 लाख 32 हज़ार 634 डॉलर) टैक्स के रूप में मिले।
पत्रकार वीक्तर लशाक ने कहा — इस युद्ध का विरोधाभास यह है कि दोनों पक्षों के बीच चाहे किसी भी स्तर पर युद्ध क्यों न चल रहा हो, उक्रईना और अलगाववादी प्रदेशों के बीच आर्थिक रिश्ते हमेशा बने रहे। दोनों पक्षों की तरफ़ से भारी संख्या में लोगों के मारे जाने के बावजूद दोनों की अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से गहरे जुड़ी हुई है। दोनों पक्ष एक-दूसरे पर बुरी तरह से निर्भर करते हैं। उक्रईना का काम दनेत्स्क और लुगान्स्क के बिना नहीं चल सकता है और दनेत्स्क व लुगान्स्क उक्रईना के बिना नहीं रह सकते हैं।
4. क्या रूस और पश्चिमी देश भी इस लड़ाई में हिस्सा ले रहे हैं?
दिसम्बर, 2014 में रूस के प्रधानमन्त्री दिमित्री मिदवेदफ़ ने उक्रईना संकट के सिलसिले में रूस के औपचारिक नज़रिए का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था – क्रीमिया रूस का है और दनबास उक्रईना का। जो रूसी लोग इन दोनों प्रदेशों की तरफ़ से दनबास में लड़ रहे हैं, उन्होंने ख़ुद यह तय किया है कि वे स्वयंसेवक के रूप में लड़ेंगे। रूस का विदेश मन्त्रालय और क्रेमलिन भी कई बार इस बात का ऐलान कर चुके हैं। रूस की सरकार ने दनेत्स्क और लुगान्स्क की आज़ादी को मान्यता नहीं दी है।
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उसी समय रूस इन दोनों प्रदेशों को लगातार मानवीय सहायता भेज रहा है और उक्रईना की सरकार की कड़ी आलोचना भी कर रहा है। विगत जनवरी में जब तनाव बढ़ा था और उक्रईना ने दनेत्स्क और लुगान्स्क पर भारी बमबारी की थी तो व्लदीमिर पूतिन ने उक्रईना पर यह आरोप लगाया था कि उक्रईना जानबूझकर युद्ध भड़का रहा है ताकि ख़ुद को ’बलि का बकरा’ सिद्ध करके अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से धन खींच सके।
पश्चिमी देश रूस पर युद्ध भड़काने का आरोप लगाते हैं और उक्रईना की सरकार का समर्थन करते हैं। यूरोप और एशिया की सेनाएँ पूर्वी उक्रईना में चल रही इस लड़ाई में भाग नहीं ले रहीं, लेकिन जब भी दोनों पक्षों के बीच लड़ाई भड़कती है तो दोनों तरफ़ से सैकड़ों विदेशी स्वयंसेवक लड़ने के लिए पहुँच जाते हैं।
5. दोनों पक्षों के बीच समझौता कराने की कोशिशें
2014 के शरदकाल में और 2015 के शीतकाल में दोनों पक्षों के बीच बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में ’मिन्स्क समझौता’ हुआ था, जिसमें इस संकट का शान्तिपूर्ण समाधान करने की शर्तें तय की गई थीं। रूस, उक्रईना, फ़्राँस और जर्मनी ने इन समझौतों की गारण्ती की थी।
’मिन्स्क समझौते’ की शर्तों के अनुसार, दोनों पक्षों द्वारा मोर्चे से अपनी-अपनी सेना को पीछे हटाए जाने के बाद और युद्ध बन्द करने के बाद उक्रईना को अपने संविधान में संशोधन करना था और अलगाववादियों के लिए आम क्षमादान का ऐलान करना था। इसके बाद दनेत्स्क और लुगान्स्क प्रदेशों के इलाके उक्रईना को वापिस मिल जाते। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। युद्ध बन्द होने के बाद उक्रईना ने आगे समझौते की कोई शर्त पूरी नहीं की और मिन्स्क समझौता बीच में ही अटक गया।
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6. दुनिया के लिए इस संकट का महत्व
रूस के स्वाधीन राज्य मण्डल अध्ययन संस्थान के उपनिदेशक व्लदीमिर येव्सियेफ़ ने कहा – उक्रईना में हो रही यह लड़ाई आजकल यूरोप की सबसे बड़ी लड़ाई है। अगर यह संकट हल नहीं हुआ तो यूरोप भी इसमें ज़रूर फँस जाएगा। यूरोप से हथियारों की तस्करी होने लगेगी, उक्रईना के बेरोज़गार कामगार यूरोप पहुँचने लगेंगे तथा कट्टरपन्थी समूह यूरोप में घुसने की कोशिश करेंगे।
अगर यह शान्ति प्रक्रिया जारी नहीं रही तो इसके भयानक कुपरिणाम निकलेंगे। व्लदीमिर येव्सियेफ़ ने कहा – पश्चिमी देश उक्रईना को भूल जाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उक्रईना वहाँ हर नई लड़ाई भड़कने पर अपनी याद दिलाता है और हर लड़ाई में फिर लोग मरने लगते हैं। इसके अलावा व्लदीमिर येव्सियेफ़ ने याद दिलाया कि रूस-अमरीकी रिश्तों के विकास में भी दनबास (और क्रीमिया) का सवाल ही मुख्य बाधा बना हुआ है। अगर उक्रईना का संकट नहीं सुलझेगा तो रूस और अमरीका के बीच रचनात्मक बातचीत भी नहीं होगी – जिसका सारी दुनिया पर असर पड़ेगा।
7. यह लड़ाई कब और कैसे बन्द हो सकती है?
रूस के हायर स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स के विश्व अर्थव्यवस्था और विश्व राजनीति संकाय के अध्यक्ष सिर्गेय करगानफ़ ने कहा – मिन्स्क समझौते का कोई ऐसा विकल्प नहीं है, जिस पर अमल करके इस झगड़े को निपटाया जा सकता है। रूस और अमरीका को इस झगड़े में फँसे दोनों पक्षों पर यह दबाव डालना चाहिए कि वे समझौते के अनुसार अपने-अपने ऊपर ली गई ज़िम्मेदारियों को पूरा करें। यूरोप के देश तो फ़िलहाल अपनी ही दिक्कतों में फँसे हुए हैं। उक्रईना के ऊपर यूरोप की बातों का कोई ख़ास असर भी नहीं होता। पश्चिमी देशों की तरफ़ से मुख्य भूमिका सिर्फ़ अमरीका ही निभा सकता है।
व्लदीमिर येव्सियेफ़ भी इस नज़रिए से सहमत हैं। लेकिन उनका मानना है कि उक्रईना के मामले में रूस और अमरीका किसी सहमति पर पहुँच जाएँगे, यह कहना बेहद मुश्किल है। व्लदीमिर येव्सियेफ़ ने कहा – आज तक कोई यह नहीं जानता है कि उक्रईना के सिलसिले में डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार क्या रवैया अपनाएगी। रूस का रवैया तो आज भी साफ़ है। अब सब कुछ अमरीका की सरकार पर निर्भर करता है।
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