क्या प्राचीन भारत के लोग रूस के कोहकाफ क्षेत्र में आकर बस गए थे?
इस बात को सभी मानते हैं कि भारत और रूस के बीच एक बड़ा ही गहरा और मज़बूत आध्यात्मिक सम्बन्ध रहा है, लेकिन इन दोनों संस्कृतियों का आपस में सीधा सम्पर्क कब स्थापित हुआ, इसको लेकर अनेक तरह की अवधारणाएँ पेश की जाती रही हैं।
इण्टरनेट पर सरसरी तौर पर खोजने पर आपको ऐसे दावे देखने को मिलेंगे कि रूस ऋषियों की प्राचीन भूमि रही है। 2007 में रूस के उल्यानवस्क शहर के एक पुरातत्ववेत्ता को एक छोटे-से गाँव में दसवीं शताब्दी की विष्णु की एक मूर्ति मिली थी। तब भारतीय मीडिया इस खबर को लेकर उत्साह के मारे जैसे पागल ही हो गया था। यह बात ठीक-ठीक किसी को नहीं मालूम है कि यह मूर्ति उल्यानवस्क अंचल के इस गाँव तक कैसे पहुँची, लेकिन निजी तौर पर मेरा ऐसा मानना है कि कोई भारतीय व्यापारी ही इस मूर्ति को लेकर मध्य वोल्गा के इस इलाके में आया होगा।
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अनादिकाल से ही मानव जाति उत्तर से दक्षिण और दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवास करती रही है। इसलिए इस बात की काफी सम्भावना है कि अफ़नासी निकीतिन के महाराष्ट्र आने से कई सौ साल पहले ही भारतीय लोग भी रूस में आकर बस गए हों।
कुछ समय पहले मैंने दक्षिणी रूस और कोहकाफ पर आधारित एक वृत्तचित्र देखा था। इस वृत्तचित्र से मुझे एक रोचक बात पता लगी। रूस का अदिगेया प्रदेश चारों तरफ़ से क्रस्नदार अंचल से घिरा हुआ है। अदिगेया प्रदेश के पास में ही इन्द्यूक नामक एक छोटा-सा गाँव है। इस गाँव का नाम पास में ही स्थित एक पहाड़ के नाम पर पड़ा है, जिसकी समुद्र तल से ऊँचाई 8 सौ 60 मीटर है। भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार यह पहाड़ एक जलमग्न ज्वालामुखी था, जो दस करोड़ साल से भी अधिक पहले सुषुप्त हो गया था।
भारतीय समुदाय
अधिकांश विद्वानों के अनुसार, एक हज़ार साल से भी अधिक समय पहले भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों से एक जनजाति ने अदिगेया प्रदेश में प्रवास किया था और इसी जनजाति के लोगों ने इस पहाड़ को इन्द्यूक नाम दिया था।
रूसी इतिहासकार इवान ग्रीका ने बताया — वैज्ञानिक अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि अदिगेया में रहने वाले काफी लोग आनुवंशिक रूप से पश्चिमोत्तर भारत के निवासियों से सम्बन्ध रखते हैं। ये लोग शायद भारत से आकर आज के क्रस्नदार अंचल के आसपास के इलाकों में बस गए थे और उन्होंने हिन्दूकुश पर्वत शृंखला के नाम पर इस पर्वत का नामकरण किया था। उल्लेखनीय है कि हिन्दूकुश पर्वत शृंखला आजकल पाक-अफ़ग़ान सीमा पर स्थित है।
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इवान ग्रीका का कहना है कि हिन्दूकुश शब्द का मूल अर्थ “भारत के पर्वत” हुआ करता था, ’हिन्दूहन्ता नहीं’। उल्लेखनीय है कि ईरानी विद्वान हिन्दूकुश का अर्थ हिन्दूहन्ता ही लगाते आए हैं। इवान ग्रीका के अनुसार, कोहकाफ क्षेत्र की सबसे मनोहर और अनुपम छटाओं वाले इस सुन्दर पहाड़ का अदिगेया में आकर रहने वाले भारतवंशियों के लिए शायद कुछ आध्यात्मिक महत्व रहा होगा।
रूसी भाषा में फीलमुर्ग पक्षी को भी इन्द्यूक ही कहते हैं। रोचक बात यह है कि रूसी भाषा में यह शब्द तुर्की भाषा से आया है और तुर्क भारत को ‘हिन्दिस्तान’ मतलब फीलमुर्ग की भूमि कहकर पुकारते थे!
इवान ग्रीका ने आगे बताया — सबसे अधिक सम्भावना इसी बात की लगती है कि हिन्दूकुश शब्द को शायद छोटा करके रूसीकृत किया गया, जिससे इस पहाड़ का नाम इन्द्यूक हो गया।
वैदिक विश्वास व योग
यह भी सम्भव है कि भारत से आने वाले लोग अपने साथ ही वैदिक साधना पद्धति भी लेकर आए हों। योर्क ख़ाब्ज़े नामक इस साधना पद्धति में योग जैसी ही शारीरिक क्रियाएँ और ध्यान-विधियाँ होती हैं। कोहकाफ के इलाके में इस्लाम के आगमन से काफी पहले से ही यह साधना पद्धति प्रचलित रही है।
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योर्क ख़ाब्ज़े का शाब्दिक अर्थ होता है - चयनित व्यक्तियों का पथ या चुने हुए लोगों का रास्ता। अदिगेया प्रदेश में आजकल इस साधना पद्धति का ज़ोर फिर से देखा जा रहा है। इस पद्धति से उन्हीं लोगों को शिक्षित किया जाता था, जिनमें उत्कृष्ट मनुष्य होने की सम्भावना दिखाई देती थी। हालाँकि यह साधना पद्धति ज़्यादातर अभिजात्य या कुलीन वर्ग तक ही सीमित थी। शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य प्रदान करने वाली अदिगेया की इस साधना पद्धति में भी योग की तरह ही प्रकृति-अनुकूल आहार पर बड़ा ज़ोर रहता है।
कादिर ई० नाथो के उत्कृष्ट ग्रन्थ ‘अदिगे ख़ब्ज़े’ पर सरसरी निगाह डालते ही यह बात समझ में आ जाती है कि अदिगेया प्रदेश की परम्पराएँ और संस्कृति काफी-कुछ भारतीय संस्कृति और परम्पराओं से मिलती-जुलती है।
चीर्का ने बताया — अदिगेया में प्रचलित साधना पद्धति तथा योग के बीच इतना अधिक साम्य होना संयोग मात्र नहीं हो सकता। अदिगेया की साधना पद्धति के अन्तर्गत ध्यान के साथ-साथ विभिन्न आध्यात्मिक व मानसिक क्रियाएँ की जाती हैं। उन्होंने आगे कहा कि अज़रबैजान और अरमेनिया जैसे देशों में हिन्दू समुदाय के आने के साथ-साथ कोहकाफ क्षेत्र में भारतीय प्रभाव भी फैलता चला गया था। बाद में इब्राहिमी पन्थों के प्रसार के कारण इन देशों में हिन्दू मत का अवसान हो गया। केवल अदिगेया के निवासियों ने ही इनमें से अनेक परम्पराओं को संरक्षित रखा है।
हालाँकि रूस के कोहकाफ क्षेत्र में भारतीयों के आकर बसने का कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता, किन्तु इन दोनों जगहों के बीच मानवनिर्मित सीमाओं से परे व्यक्तियों व विचारों के मुक्त प्रवाह की जो कड़ियाँ बिल्कुल साफ तौर पर दिखाई देती हैं, उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती है।
अजय कमलाकरन ’रूस-भारत संवाद’ के एशिया सम्बन्धी सलाहकार सम्पादक हैं।
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