कुमाऊँ की लोककथाओं और शुक्शिन की कहानियों का हिन्दी में अनुवाद
27 मार्च 2017 को नई दिल्ली स्थित रूसी दूतावास में रूसी लेखकों की दो किताबों का विमोचन किया गया। इन दोनों किताबों का अनुवाद भारत स्थित रूसी भाषा और साहित्य के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर हेमचन्द्र पाँडे और गिरीश मुँजाल ने किया है। प्रोफ़ेसर पाँडे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रूसी भाषा शोध संस्थान में रूसी भाषा और साहित्य के प्रोफ़ेसर रह चुके हैं। भारतविज्ञ इवान मिनायेव ने उन्नीसवीं सदी में कुमाऊँ की यात्रा की थी। अपनी उस यात्रा के दौरान उन्होंने कुमाऊँ की लोककथाओं और दन्तकथाओं का संग्रह भी किया था। प्रोफ़ेसर पाँडे कुमाऊँ के ही रहने वाले हैं। इसलिए इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि उन्होंने कुमाऊँ की लोककथाओं और दन्तकथाओं के इस संग्रह का रूसी भाषा से हिन्दी में अनुवाद किया है।
डॉक्टर गिरीश मुँजाल दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं और उन्होंने विश्व प्रसिद्ध समकालीन रूसी लेखक वासीली शुक्शिन (या शुक्शीन) की 9 कहानियों का हिन्दी में अनुवाद प्रस्तुत किया है। इन दोनों पुस्तकों का प्रकाशन रूस और भारत के बीच राजनयिक रिश्तों की स्थापना की 70 वीं जयन्ती के अवसर पर किया गया है। दोनों पुस्तकों के विमोचन समारोह में काफ़ी भीड़-भाड़ और हलचल थी। न सिर्फ़ रूसी भाषा के प्राध्यापक और छात्र इस समारोह में उपस्थित थे, बल्कि रूसी-भारतीय मैत्री क्लबों के प्रतिनिधि, हिन्दी भाषाशास्त्री, पत्रकार, लेखक, राजनयिक और रूसी साहित्य के प्रेमी पाठक भी समारोह में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में आए हुए थे।
इवान मिनायेव को रूस में भारत अध्ययन शास्त्र का एक प्रमुख संस्थापक माना जाता है। उन्होंने 1875 में कुमाऊँ में इन लोककथाओं और दन्तकथाओं को इकट्ठा किया था। प्रोफ़ेसर हेमचन्द्र पाँडे ने कहा — कुमाऊँ की लोककथाओं को पहली बार किसी ने संकलित किया था। उन्होंने कुमाऊँ के बारे में जो जानकारी छोड़ी है, वह हमारे लिए बेहद मूल्यवान है। 1876 में इन कथाओं का पहली बार रूसी भाषा में प्रकाशन हुआ था। हमारे लिए यह किताब अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें कुमाऊँ के तात्कालिक सांस्कृतिक और धार्मिक रस्मों का बड़ी बारीकी से चित्रण किया गया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसमें कुमाऊँनी बोली का रस ज्यों का त्यों दिखाई देता है।
प्रसिद्ध रूसी बाल-कहानियों के हिन्दी अनुवादों की क़िताब का भारत में विमोचन
— मिनाइफ़ ने अपनी पुस्तक में बताया है कि तब उन्हें नैनीताल से अल्मोड़ा जाने में दो दिन का समय लगा था। पुस्तक में ऐसे बहुत से चित्र भी शामिल हैं, जो क़रीब 150 साल पहले के तत्कालीन कुमाऊँ की विभिन्न जीवन-छवियों का परिचय देते हैं। मिनाइफ़ ने अपनी किताब में यह भी बताया है कि तब ब्रिटिश सरकार ने कुमाऊँ के तत्कालीन शासक गोरखों को कैसे हराया था।
प्रोफ़ेसर हेमचन्द्र पाँडे ने कहा — इस किताब की एक ख़ासियत यह है कि इवान मिनायेव ने लोककथाओं और दन्तकथाओं की भाषा को ज्यों का त्यों छोड़ दिया था। इसलिए उनमें कथाओं को कहने वाले की भाषा और उसका कहने का ढंग सुरक्षित रह गया। मिनायेव का यह संकलन इस बात का भी उदाहरण है कि अनुवादक को कैसे अनुवाद करते हुए वैज्ञानिक नज़रिया अपनाना चाहिए और भाषा की सहजता में कोई बदलाव किए बिना बेहद करीने से अनुवाद करना चाहिए। अब हमारे हिन्दी के पाठक भी कुमाऊँ की उन पुरानी लोककथाओं और दन्तकथाओं को पढ़ सकेंगे।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि हिन्दी में इस किताब के आने से पहली बार कुमाऊँ के लोग अपनी उन दन्तकथाओं, नीतिकथाओं और लोककथाओं से परिचित हो सकेंगे, जो डेढ़ सौ साल पहले उनके पुरखे सुनाया करते थे।
स्रोत : Press photo
रूसी साहित्य के भारतीय विशेषज्ञ गिरीश मुँजाल ने प्रसिद्ध रूसी लेखक और मानवतावादी, अभिनेता, निर्देशक और पटकथा लेखक वासीली शुक्शिन की कहानियों का हिन्दी में अनुवाद किया है। उन्होंने बताया कि शुक्शिन की सभी रचनाओं में आम आदमी के मन का दर्द और गहरी पीड़ा दिखाई देती है। शुक्शिन ग्रामीण पृष्ठभूमि से आए थे, इसलिए उनकी कहानियाँ भी आम ग्रामीण जनता के बारे में ही हैं। रूसी गाँवों का चित्रण करते हुए शुक्शिन की कहानियों में लोक हास्य और लोक जीवन अपनी पूरी शिद्दत के साथ उभरकर आया है। इसीलिए भारत के आम पाठक को भी ये कहानियाँ बेहद पसन्द आएँगी। इनमें आम रूसी आदमी की ख़ुशी, उसका दर्द, उसकी सहजता, दयालुता उसकी चिन्ताएँ, परेशानियाँ, उसका हास्य और व्यंग्य सब कुछ साफ़-साफ़ दिखाई देता है।
डॉक्टर गिरीश मुँजाल ने बताया कि जब वे रूसी भाषा सीख रहे थे, तभी वे वासीली शुक्शिन की कहानियों पर फ़िदा हो गए थे। उन्होंने कहा — आज मेरा सपना सच हो गया, इसलिए आज का दिन मेरे लिए एक ख़ास दिन है। ’साधारण में असाधारण की खोज’ नाम से रूसी भाषा में शुक्शिन की कहानियों का कोई संग्रह नहीं है। मैंने इस संग्रह में अपनी प्रिय कहानियों ’अजूबा’ और ’अपमान’ के साथ-साथ दूसरी कई कहानियों का भी अनुवाद किया है। इन कहानियों का अनुवाद करके मैं यह दिखाना चाहता था कि दुनिया में तरह-तरह के लोग रहते हैं। मेरा ख़याल है कि हिन्दी के पाठकों को मेरी यह किताब पसन्द आएगी, क्योंकि हमारे भारत का जीवन भी रूसी जीवन की तरह ही है। संग्रह में एक कहानी है — बूढ़े का परलोक सिधारना। मुझे लगता है कि यह घटना बिल्कुल इसी तरह भारत में भी घट सकती है, जैसे इस कहानी में दिखाया गया है।
अब डॉक्टर मुँजाल शुक्शिन की कहानियों का एक आडियो-संग्रह जारी करने की योजना बना रहे हैं ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग शुक्शिन की कहानियों से परिचित हो सकें। इसके अलावा वे प्रसिद्ध रूसी कवि सिर्गेय येसेनिन की कविताओं के अनुवादों का एक संग्रह भी छपवाना चाहते हैं।
वासीली शुक्शिन की कहानियाँ हिन्दी के पाठकों को पहले भी पढ़ने के लिए मिल चुकी हैं। 1987 में वेदकुमार शर्मा ने और फिर इक्कीसवीं सदी में कुँवरकान्त ने उनकी कुछ कहानियों का हिन्दी में अनुवाद किया था।
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