रूसी संगीतमण्डली ’समहेय’ किसी भी संगीत रचना को भारतीय रंग में ढाल सकती है
’समहेय’ संगीतमण्डली के गठन का इतिहास सन् 2003 से शुरू होता है, जब रूसी संगीतज्ञ दिनीस कूचिरफ़ अपने दोस्त प्रवीण के साथ भारतीय वाद्य यन्त्रों का वादन सीखने के लिए भारत गए थे। वहाँ दिनीस ने तबला और अन्य ढोल वाद्यों को बजाना सीखा और प्रवीण बाँसुरी बजाने लगे। उन दोनों ने भारत में क़रीब तीन साल बिताए।
इसके बाद रूस लौटकर उन्होंने सोचा कि तबला और बाँसुरी वादन की अपनी इस कला को दूसरे लोगों के साथ भी बाँटा जाए। लेकिन ऐसे लोगों को ढूँढ़ पाना कोई आसान काम नहीं था, जिनकी तबलावादन और बाँसुरीवादन में दिलचस्पी हो। कुछ समय बीतने के बाद दिनीस कूचिरफ़ की मुलाक़ात मक्सीम अनूख़िन से हुई, जो रूसी लोक वाद्य यन्त्र गूसली बजाते हैं।
रूस-भारत संवाद से बात करते हुए दिनीस कूचिरफ़ ने कहा — मैंने उन्हें तबला बजाकर दिखाया और वे गूसली पर मेरे साथ संगत करने लगे। हमारी जोड़ी बहुत सफल रही। कुछ समय बाद मैंने नताशा कुलेश को भी अपने साथ जोड़ लिया, जो मन्दालिन नामक संगीत वाद्य बजाती हैं। इसके बाद सितारवादक अलिक्सान्दर कनानचूक भी हमारे संग आ जुड़े।
साँक्त पितेरबुर्ग में रूसी लोक वाद्य-यन्त्रों पर संगीत पेश करने वाली एक संगीत मण्डली है, जिसका नाम है — तेरिम-क्वरतेत। अन्द्रेय स्मिरनोफ़ इस संगीत मण्डली के सदस्य हैं। एक बार उन्होंने हमारे ग्रुप का वादन सुना और हमें 2011 में ’तेरिम क्रॉसओवर’ अन्तरराष्ट्रीय संगीत प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए निमन्त्रित किया।
दिनीस कूचिरफ़ ने बताया — तब हमें अपने संगीत-दल के लिए कोई नाम चुनने की ज़रूरत महसूस हुई। मैंने सोचा कि नाम ऐसा होना चाहिए, जिससे किसी को भी कोई सूचना या जानकारी न मिलती हो, क्योंकि हम यह दिखाना चाहते थे कि भारतीय वाद्ययन्त्रों पर किसी भी तरह का संगीत बजाया जा सकता है। इस तरह हमारी संगीत मण्डली ’समहेय’ का नाम सामने आया। हिन्दी में ’सम’ का मतलब है — समान या एक जैसी ताल। इस ताल में ही संगीत का आरोह और अवरोह शामिल होता है। इसमें हमने ’हेय’ और जोड़ दिया, जो कण्ठ संगीत का प्रतीक है।
भारतीय नृत्य करने वाली रूसी नृत्य मण्डली ’मयूरी’
सन् 2007 में हमारे संगीत दल ने ’जातीय –लोक – संलयन’ संगीत प्रस्तुत करने की बात सोची थी, जिसमें लोक-संगीत, जाज़, डब, ब्लूज़ और भारतीय आशु संगीत की अन्य दिशाओं और शैलियों का सम्मिश्रण था। हमारी संगीत मण्डली के सदस्य न सिर्फ़ अपनी संगीत धुनों की रचना करते हैं, बल्कि वे प्रसिद्ध संगीत रचनाओं को नए ढंग से प्रस्तुत करने की भी कोशिश करते हैं।
सन् 2014 में हमारी संगीत मण्डली के सदस्यों ने रूसी लोकगीतों को भारतीय धुनों से सजाना शुरू किया। इसके एक वर्ष बाद ही नास्त्या सरस्वती नाम की हमारी गायिका ने भारत के प्राचीन मन्त्रों को येकतिरीना दल्मतोवा के साथ अपने ही अनूठे ढंग से प्रस्तुत करना शुरू किया। तब भारतीय दूतावास की नज़रें भी हम पर पड़ीं और दूतावास ने अपने विभिन्न कार्यक्रमों में हमें आमन्त्रित करना शुरू कर दिया।
हमारी हर प्रस्तुति श्रोता को भारतीय परम्पराओं के निकट ले जाती है और उसे भारतीय संस्कृति से जोड़ देती है। भारत के श्रेष्ठ वादक-यन्त्र निर्माता हमारे वाद्यों का निर्माण करते हैं। अपनी संगीत प्रस्तुतियों के दौरान हमें कौनसे कपड़े पहनने हैं, यह पहनावा हम ख़ुद तय करते हैं।
— भारतीय और रूसी पोशाकों में इतना ज़्यादा फर्क है कि हम दोनों तरह की पोशाकें मिलाकर नहीं पहन सकते हैं — दिनीस कूचिरफ़ ने बताया — मैं अक्सर नास्त्या सरस्वती से यह अनुरोध करता हूँ कि वह ऐसी पोशाकें पहनें, जो हमारे श्रोताओं को याद रह जाएँ और वे यह समझें कि हम रूसी संगीतकार हैं।
रूस में कथक नृत्य कितना लोकप्रिय है?
कठिनाइयाँ बहुत-सी हैं। सबसे पहली दिक़्क़त तो यही आती है कि हमारे श्रोता अक्सर यह नहीं समझ पाते कि कैसे दो विभिन्न संस्कृतियों के बीच संगम हो सकता है और दोनों के संगीत को कैसे एक-दूसरे में ढालकर पेश किया जा सकता है। विदेशी संगीत मण्डलियाँ साँक्त पितेरबुर्ग की यात्रा बहुत कम करती हैं, इसलिए लोगों को दूसरी संस्कृतियों का संगीत सुनने का मौक़ा भी बहुत कम मिलता है।
रूस-भारत संवाद से बात करते हुए दिनीस कूचिरफ़ ने कहा — हमें अक्सर व्यावसायिक निमन्त्रण भी मिलते हैं। लेकिन अगर हम अपने इस प्रिय काम को व्यावसायिक बना देंगे, तो हमें पैसे कमाने के लिए वह संगीत पेश करना पड़ेगा, जिसकी श्रोताओं के बीच माँग होगी। इसलिए फ़िलहाल हम व्यावसायिकता से बचने की कोशिश करते हैं।
आज हमारी संगीत मण्डली ’समहेय’ को न सिर्फ़ रूस की संगीतप्रेमी जनता अच्छी तरह से जानती है, बल्कि फ़्राँस, हालैण्ड, भारत और दूसरे देशों में भी लोग हमारे संगीत से परिचित हैं।
इस साल ’समहेय’ संगीत मण्डली अपनी संगीत प्रस्तुतियों का पहला एलबम प्रस्तुत करने जा रही है, जिसमें भारतीय संगीतकार भी शामिल होंगे। इस एलबम में रूसी गीतों के अलावा सूफ़ी संगीत और यूरोपीय शास्त्रीय संगीत रचनाएँ भी शामिल होंगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह सारा संगीत भारतीय रस में सराबोर होगा।
कुमाऊँ की लोककथाओं और शुक्शिन की कहानियों का हिन्दी में अनुवाद
जल्दी ही इस संगीतमण्डली के सदस्य उस कार्टून-फ़िल्म के लिए संगीत रचना करेंगे, जो बालीवुड और फ़िनलैण्ड की कम्पनियाँ मिलकर बना रही हैं।
समय बीतने के साथ-साथ इस संगीतमण्डली के सदस्य भी बदल गए हैं। आज इस संगीतमण्डली में दिनीस कूचिरफ़ (तबला) येव्गेनी क्रसीलनिकफ़ (सरोद और गिटार), नास्त्या सरस्वती (वायलिन और गायन), येकतिरीना दल्मतोवा (गायन), प्रवीण (बाँसुरी) और सिर्गेय पलातफ़ (बास) शामिल हैं। कभी-कभी संगीत प्रस्तुतियों के दौरान कुछ अन्य संगीतकारों को भी अतिथि के रूप में बुलाया जाता है।
फ़िलहाल संगीत मण्डली की सदस्य नास्त्या सरस्वती भारत में हैं, जहाँ वे ’दिल है हिन्दुस्तानी’ नामक एक संगीत प्रतियोगिता में भाग ले रही हैं।
इस प्रतियोगिता के बारे में उन्हें अचानक ही जानकारी हुई थी। शुरू में उन्होंने इसे गम्भीरता से नहीं लिया। लेकिन जब उनके एक दोस्त इस प्रतियोगिता में जाने लगे तो वे भी उनके साथ प्रतियोगिता में शामिल हो गईं। प्रतियोगिता के पहले दौर में उन्होंने सारे रूस के सौ से ज़्यादा प्रतियोगियों को पीछे छोड़ दिया। इनमें से बहुत से लोग अच्छी ख़ासी हिन्दी जानते और बोलते थे। इसके बाद प्रतियोगिता के दूसरे दौर में उन्होंने अनेक विदेशी प्रतियोगियों से भी बाज़ी मार ली। आख़िर में उन्हें अजय और अमृतांश नाम के दो भारतीय संगीतकारों के साथ जोड़ दिया गया। अब यह तिकड़ी प्रतियोगिता में भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत करेगी।