सर्जिकल स्ट्राइक के लिए ब्रह्मोस मिसाइल बेहद उपयोगी : जीत भारत की ही होगी
मिसाइल-वैज्ञानिक सिवाथानु पिल्लई ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल को ’भारतीय सेना का ब्रह्मास्त्र’ कहते हैं। हालाँकि सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल भगवान ब्रह्मा का हथियार नहीं है, लेकिन यह हमारी पृथ्वी का एक सबसे विनाशकारी क्रूज मिसाइल है।
’इण्डो-रशिया ब्रह्मोस एयरोस्पेस’ कम्पनी ने ब्रह्मोस का निर्माण और उत्पादन करके क्रूज मिसाइलों के विकास के क्षेत्र में न सिर्फ़ एक नया मानक स्थापित किया है, बल्कि उससे भी एक क़दम आगे जाकर एकदम नया, उन्नत और अभिनव क़िस्म का मिसाइल बना दिया है, जिसमें लगातार बदलाव किए जा रहे हैं, और जिसका इस्तेमाल सेना के सभी अंग कर सकते हैं।
20 साल पहले पाकिस्तान को दहलाने वाला मिग-25 टोही विमान
फ़िलहाल भारत की नौसेना और थलसेना को बड़ी संख्या में ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस किया जा रहा है। ब्रह्मोस एयरोस्पेस कम्पनी के संस्थापक मिसाइल-वैज्ञानिक सिवाथानु पिल्लई का कहना है कि जब भारतीय वायुसेना को भी ब्रह्मोस ’ए’ (यानी एयरफ़ोर्स के लिए) मिसाइल मिल जाएगा तो ब्रह्मोस मिसाइल को एक ’युद्ध विजेता’ के रूप में ही याद किया जाएगा। उनकी बात का मतलब यह है कि जब सेना के तीनों अंगों के पास ऐसे मिसाइल होंगे, जो दुश्मन को नष्ट करने के लिए तैयार खड़े होंगे तो दुश्मन को तुरन्त जीत पाना आसान हो जाएगा।
बड़ी दूरी तक मार करने वाले ब्रह्मोस
शुरू में ब्रह्मोस मिसाइल की मारक-दूरी सिर्फ़ 290 किलोमीटर रखी गई थी क्योंकि रूस मिसाइल प्रौद्योगिकी नियन्त्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का सदस्य है और उसे उसके नियम मानने पड़ते हैं। मिसाइल प्रौद्योगिकी नियन्त्रण व्यवस्था पश्चिमी देशों द्वारा बनाई गई है ताकि कोई भी देश किसी दूसरे देश को मिसाइल निर्माण की ऐसी प्रणाली न दे सके, जिसमें मिसाइल 300 किलोमीटर से ज़्यादा मार कर पाएँ और 500 किलो से ज़्यादा वज़न ले जाने में सक्षम हों।
इस बाधा को दूर करने के लिए यह तय किया गया कि भारत भी मिसाइल प्रौद्योगिकी नियन्त्रण व्यवस्था का सदस्य बन जाए। अब इस व्यवस्था का सदस्य बनने के बाद ब्रह्मोस एयरोस्पेस ऐसे मिसाइल बना सकता है, जो 300 किलोमीटर से भी ज़्यादा लम्बी दूरी तक मार कर सकेंगे।
अब ब्रह्मोस मिसाइल की मारक-दूरी क्षमता बढ़ाने के लिए भारत के सामने कोई बाधा नहीं है। 11 मार्च 2017 को भारत ने यह तय कर लिया है कि ब्रह्मोस मिसाइल की मारक-दूरी क्षमता बढ़ाकर 600 किलोमीटर कर दी जाएगी। इतनी दूरी से भी ब्रह्मोस अपने लक्ष्य पर एकदम अचूक वार करेगा। अब भारतीय युद्धपोत अधिक दूरी पर रहकर ब्रह्मोस मिसाइल से शत्रु पर निशाना साध सकेंगे।
रूस के विशाल कारख़ाने : जहाँ रूस का नया भारी हमलावर विमान बनाया जाता है
जैसे अक्तूबर 2015 में रूसी नौसैनिक बेड़े की पनडुब्बियों ने कास्पियन सागर में बने रहकर भी 1500 किलोमीटर दूर स्थित आतंकवादी गिरोह ’इस्लामी राज्य’ (आईएस) के सीरियाई अड्डों को अपने मिसाइलों से नष्ट कर दिया था, ठीक वैसे ही ब्रह्मोस मिसाइल भी कच्छ की खाड़ी से या पोरबन्दर बन्दरगाह के पास से पाकिस्तान के कराची और हैदराबाद जैसे शहरों को बड़ी आसानी से अपना निशाना बना सकते हैं।
ब्रह्मोस-दो
हाइपरसोनिक गति से यानी आवाज़ की गति से भी 7 गुना तेज़ या इससे भी ज़्यादा गति से उड़ने वाले ’ब्रह्मोस-दो’ मिसाइलों पर लगे हुए बम जहाँ पर भी गिरेंगे, वहाँ सबकुछ नष्ट कर देंगे। ये मिसाइल इस तरह के होंगे कि बम गिराकर फिर से वापिस लौट आया करेंगे और दोबारा बम ले जाने के लिए तैयार रहेंगे। ये नए मिसाइल भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की तरह होंगे — धातु के उस पहिए की तरह जो अपने लक्ष्य को नष्ट करके वापिस अपने मालिक के पास लौट आता है।
मिसाइल वैज्ञानिक सिवाथानु पिल्लई ने कहा — हमारा सपना है कि हम दुनिया के इस सर्वश्रेष्ठ हथियार को बना सकें। हमारी पौराणिक कथाओं ने हमें इस तरह के हथियारों का निर्माण करने के लिए हमें बहुत-सी जानकारियाँ उपलब्ध कराई हैं। दुनिया में अभी तक केवल एक हथियार ही ऐसा है, जो दुश्मन का सफ़ाया करके वापस लौट आता है, और उस हथियार का नाम है — सुदर्शन चक्र।
आजकल हम इस नई तरह के मिसाइल का विकास करने की कोशिश कर रहे हैं और हमें आशा है कि इस नई सदी के तीसरे दशक के शुरू में हम इस तरह का मिसाइल बनाने में कामयाब हो जाएँगे।
ब्रह्मोस एनजी
यह हलका ब्रह्मोस मिसाइल है, जिसका वज़न 1 टन और 400 किलो से भी कम है। यह मिसाइल लगभग 120 किलोमीटर तक मार कर सकता है। यह इतना हलका होगा कि स्वदेशी तेजस विमानों में इसे तैनात किया जा सकेगा। इस नए मिसाइल का हम अभी सिर्फ़ नक़्शा ही बना रहे है। लेकिन ब्रह्मोस एयरोस्पेस कम्पनी ने इस मिसाइल का इस्तेमाल कर सकने वाले विभिन्न उपयोगकर्ताओं से उसके बारे में बात करनी शुरू कर दी है। ब्रह्मोस एयरोस्पेस के प्रबन्ध निदेशक सुधीर कुमार मिश्रा के अनुसार — हमारा विचार इस मिसाइल का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने का है ताकि हम विभिन्न मंचों पर इसका इस्तेमाल कर सकें। यह एक नई व्यापारिक पहल है और हमें मालूम है कि भारत में और विदेशों में हमारे इस हलके मिसाइल की बड़ी भारी मांग होगी।
क्या भारत रूसी हथियारों से पाकिस्तान पर झटपट हमला कर सकता है?
हालाँकि भारतीय वायुसेना इस तरह के कम दूरी के मिसाइल सुखोई एसयू-30 विमान पर तैनात नहीं करना चाहती है, लेकिन ’ब्रह्मोस एनजी’ नामक हमारे इस हलके मिसाइल को जगुआर और मिग-27 जैसे विमानों पर तैनात किया जा सकता है, जो भारतीय बख्तरबन्द सेना की सहायता और सुरक्षा करते हैं। इसके अलावा इन मिसाइलों से सेना के हिरावल दस्तों को लैस किया जा सकता है। युद्ध के मैदान में फ़ील्ड कमाण्ड केन्द्रों और संचार केन्द्रों को भी इन मिसाइलों से लैस किया जा सकता है और ये मिसाइल सुरक्षा-कवच के रूप में उनके काम आ सकते हैं।
’एविएशन वीक’ नामक पत्रिका का सुझाव है कि छोटे आकार के इन मिसाइलों को उन विमानों पर भी तैनात किया जा सकता है, जो विमानवाहक युद्धपोत पर काम करते हैं। हलके मिसाइलों के साथ वे आसानी से युद्धपोत के डेक से उड़ान भर सकेंगे और डेक पर वापिस उतर सकेंगे। युद्धपोतों पर तैनात एक मिग-29 विमान को ऐसे तीन मिसाइलों से लैस किया जा सकता है।
निर्यात
हालाँकि भारत का रक्षा उद्योग काफ़ी विशाल है, लेकिन इसके बावजूद भारत का नाम दुनिया के 20 प्रमुख हथियार निर्यातक देशों के बीच शामिल नहीं है। अपने ब्रह्मोस मिसाइल के साथ हथियारों के बाज़ार में उतरकर भारत अपनी एक विशेष पहचान बना सकता है। यह देखते हुए कि ब्रह्मोस मिसाइल दुनिया का एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, दुनिया भर में उसके ख़रीदारों की कोई कमी नहीं होगी। हालाँकि, यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह मिसाइल गलत हाथों में नहीं पड़े और इसके लिए ख़रीदारों का चुनाव बहुत सोच-समझकर करना होगा।
ब्रह्मोस मिसाइल चीन के खिलाफ़ या चीन से सौदेबाज़ी का एक उपयोगी उपकरण भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, वियतनाम को ब्रह्मोस मिसाइल की सप्लाई करके भारत पेइचिंग को यह जतला सकता हैं कि वह भी चीन की तरह दोहरा खेल खेल सकता है। अगर चीन पाकिस्तान को उच्च किस्म के बढ़िया हथियार देता है, तो भारत भी वियतनाम को उन्नत क़िस्म के ब्रह्मोस मिसाइल दे सकता हैं। इस तरह भारत पाकिस्तान को अच्छे हथियारों की ख़रीद करने से भी रोक सकता है।
न्यूज़ीलैण्ड में रहने वाले राकेश कृष्णन सिंह पत्रकार व विदेशी मामलों के विश्लेषक हैं।
इस लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं।
संस्कृत और रूसी भाषाओं के बीच सास - बहू का रिश्ता