रूसी लोग इतनी ज़्यादा क्यों पीते हैं?
सन 2011 में इण्टरनेट पर रूस के बारे में मज़ेदार तथ्यों की एक पोस्ट बहुत लोकप्रिय हुई थी, जो मस्क्वा (मास्को) में अँग्रेज़ी पढ़ाने वाले कनाडा के एक नागरिक ने लिखी थी। उस पोस्ट में बताई गई कुछ बातों से (जैसे रूसी लोगों को आम तौर पर आभार या धन्यवाद कहने की आदत नहीं होती) रूसी लोग सहमत नहीं हुए थे। लेकिन उस सूची के 17 नम्बर के प्वाइण्ट पर किसी रूसी ने ज़रा भी आपत्ति प्रकट नहीं की थी, जिसमें बताया गया था — रूसी लोग वोद्का बहुत पीते हैं और यह पूरी तरह से सच है।
रूसी लोग शराब पीना पसन्द करते हैं, यह बात तो तब भी कही जाती थी, जब वर्तमान रूस का अस्तित्व ही नहीं था। 12 वीं सदी के पुरालेखों में बताया गया है कि रूस के एक पुराने राजा व्लदीमिर को प्रकृति-पूजक रूसियों के लिए धर्म का चुनाव करते हुए जब यह पता लगा कि इस्लाम में शराब पीने की मनाही है, तो उसने तुरन्त ही यह तय कर लिया कि रूस की जनता को इस्लाम में दीक्षित नहीं किया जाएगा। राजा ने कहा — रूस में पीने का रिवाज, इसमें किसी को न कोई लिहाज़।
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यह बात और है कि तब वोद्का नहीं होती थी, तब रूसी लोग शहद की बड़ी तेज़ शराब पिया करते थे। इतिहासकारों का मानना है कि रूस में वोद्का का आगमन 16वीं सदी में हुआ। लेकिन वह जल्दी ही भालुओं और ’मात्र्योश्का’ गुड़िया की तरह रूस की पहचान बन गई। सोवियत लेखक विनेदिक्त येराफ़ेइफ़ ने अपनी लम्बी कविता ’मस्क्वा-पितूश्की’ में व्यंग्यपूर्वक यह बात कही है कि रूस और यूरोप के बीच इसी सवाल पर एक सीमा-रेखा खींच देनी चाहिए कि रूसी लोग शराब बहुत पीते हैं। अपनी कविता में उन्होंने लिखा है — सीमा के इस तरफ़ लोग रूसी बोलते हैं और शराब बहुत पीते हैं, सीमा के उस तरफ़ लोग रूसी नहीं बोलते और बहुत कम पीते हैं...।
आनुवंशिकी और इतिहास
रूसी लोग इतने पियक्कड़ क्यों हैं? जीव-वैज्ञानिक स्वितलाना बोरिन्स्कया का कहना है कि इसका एक कारण तो रूसी लोगों की आनुवंशिकी में छिपा हुआ है। रूसी जाति के लोगों और अन्य यूरोपीय जाति के लोगों के शरीर पर अल्कोहल में छिपा विषाक्त एसीटैल्डिहाइड रसायन धीरे-धीरे और बहुत कम असर करता है। यह एसीटैल्डिहाइड रसायन ही खुमार या नशा पैदा करता है। जबकि एशियाई लोगों में जैसे जापानी या चीनी जाति के लोगों के शरीर पर यह एसीटैल्डिहाइड रसायन बहुत तेज़ी से असर करता है, इसीलिए वे ज़्यादा शराब नहीं पी सकते हैं। स्वितलाना बोरिन्स्कया ने कहा — इसका मतलब यह है कि रूसी जीन रूसियों को पीने के लिए मजबूर नहीं करते बल्कि उन्हें ज़्यादा शराब पीने की इजाज़त देते हैं।
इसके दूसरे कारण उन नियमों से जुड़े हुए हैं, जो रूस की सरकारें शराब पीने के बारे में अब तक बनाती रही हैं। रूसी इतिहासकार अलिक्सान्दर पिझाकफ़ लिखते हैं — 16वीं-17वीं सदी में रूसी ज़ारों ने शराबघरों पर राजकीय नियन्त्रण स्थापित कर रखा था। इन शराबघरों को एक तयशुदा रक़म सरकारी खज़ाने में जमा करवानी पड़ती थी, चाहे उनकी शराब बिके या नहीं बिके। इसलिए शराबघरों के मालिक ज़्यादा से ज़्यादा शराब और वोद्का बेचने की कोशिश करते हुए लोगों को पीने के लिए बढ़ावा देते थे। इस तरह सरकार को ज़्यादा राजस्व मिलता था, लेकिन रूसी लोगों को धीरे-धीरे पीने की आदत पड़ गई। अलिक्सान्दर पिझाकफ़ ने कहा — कहना चाहिए कि सरकार ने अपने फ़ायदे के लिए धीरे-धीरे जनता को पियक्कड़ बना दिया।
लेकिन जब तक सरकार को यह होश आया कि जनता के पियक्कड़ होने से देश को नुक़सान होगा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 19वीं सदी के अन्त में और 20वीं सदी के शुरू में रूस में शराबबन्दी आन्दोलन शुरू हो गया। पहले विश्व-युद्ध के शुरूआती दौर में ज़ार निकलाय द्वितीय ने रूस में पूरी तरह से शराबबन्दी लागू कर दी। 1917 में जब बोल्शेविक सरकार सत्ता में आई तो उसने भी शराबबन्दी को जारी रखा। लेकिन 1923 में शराबबन्दी उठा ली गई। इस तरह सोवियत सरकार ने कई बार शराबबन्दी लागू की। सब से बड़ा शराबबन्दी अभियान 1985 से 1990 के सालों में मिख़ाइल गर्बाचोफ़ ने चलाया था। तब दिन में सिर्फ़ पाँच घण्टे के लिए शराब की दुकानें खुलती थीं। शराब की क़ीमतें बहुत बढ़ा दी गई थीं। और यहाँ तक हुआ था कि अँगूरों के बहुत से बग़ीचे ही बरबाद कर दिए गए थे।
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लोग कम पीते हैं, लेकिन फिर भी बहुत ज़्यादा
यदि इतिहास की जगह हम आज की बात करें तो कहना चाहिए आज भी रूसी लोग बहुत ज़्यादा शराब पीते हैं, लेकिन पिछले पाँच सालों में रूस में शराब का उपभोग घटा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सन् 2010 में रूस में शराब का प्रतिव्यक्ति वार्षिक उपभोग 15.1 लीटर था। रूस तब दुनिया में चौथे नम्बर पर आता था। पहला नम्बर बेलारूस (17.5 लीटर) का था, दूसरा मल्दाविया (16.8 लीटर) का और तीसरे नम्बर पर तब लिथुआनिया (15.4 लीटर) आता था। लेकिन सन् 2016 में रूसी उपभोग विभाग के अनुसार, रूस में शराब का प्रतिव्यक्ति वार्षिक उपभोग 10 लीटर से ज़्यादा है, लेकिन 15 लीटर से कम है।
रूसी पत्रिका ’अफ़ीशा’ के लिए एक लेख में पेय पदार्थ विशेषज्ञ अन्तोन अबरेज़चिकफ़ ने 2016 के अन्त में लिखा था — आँकड़ों को देखकर तो यही लगता है कि रूसी लोगों ने पीना कम कर दिया है। रूसी उपभोग विभाग भी उनकी बात से पूरी तरह सहमत है — 2009 के मुक़ाबले अब शराब का उपभोग कम हो गया है। वहीं दूसरी तरह रूसी उपभोग विभाग विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस कथन की भी याद दिलाता है — यदि किसी देश में शराब का प्रतिव्यक्ति वार्षिक उपभोग 8 लीटर से कम होता है, तो यह जनता के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। रूस के सरकारी अधिकारियों का कहना है, इस तरह हमें अभी आगे भी पियक्कड़ी को रोकने की कोशिश करनी होगी।
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