रूसी सेना में प्रलयंकारी हथियार : रोबोट और कृत्रिम बुद्धि
हालाँकि रूसी चालक रहित ड्रोन विमान अभी सिर्फ़ दुश्मनों पर हमला करना सीख ही रहे हैं, लेकिन रूसी क्रूज मिसाइल बहुत पहले से ही इस काम में दक्ष हो चुके हैं। ’ग्रनीत’ (ग्रेनाइट) और ’ओनिक्स’ जैसे रूस के आधुनिकतम मिसाइल अपनी समझदारी और कौशल से दुश्मन को धूल चटा देते हैं।
झुण्ड का हमला किस पर
ड्रोन डिजाइनर और उत्पादक कम्पनी ’सितिसेन्त्रिचिस्की प्लतफ़ोर्मी’ के संचालक अलिक्सान्दर मचालकिन ने रूस-भारत संवाद से बातचीत करते हुए कहा — हमने ऐसा साफ़्टवेयर बना लिया है, जो एक साथ छह ड्रोन विमानों को संचालित कर सकता है।
इस प्रोग्राम का परीक्षण करते हुए हमने देखा कि इन विमानों को टोह लेने से जो जानकारियाँ मिलती हैं, उन्हें विभिन्न केन्द्रों से एक ही जगह पर संग्रहित किया सकता है। इसकी बदौलत उस जगह का त्रिआयामी मॉडल बनाया जा सकता है। डिजाइनरों ने बताया कि भविष्य में ड्रोन विमानों का यह झुण्ड दुश्मन के विमानों, हैलिकॉप्टरों और क्रूज मिसाइलों पर भी हमले कर सकेगा।
रूस को तत्काल नया परमाणु मिसाइल बनाने की क्या ज़रूरत है?
यह साफ़्टवेयर बहुत ही सामान्य-से सिद्धान्त पर आधारित है। चालक रहित ड्रोन विमान में एक ऐसा विशेष प्रोग्राम लोड कर दिया जाता है, जो झुण्ड में शामिल दूसरे ड्रोनों के साथ-साथ उस ड्रोन की गतिविधियों पर भी नज़र रखता है। इसके अलावा ड्रोन पर कुछ संवेदक (सेंसर) लगे होते हैं, जो उसकी दिशा और स्थिति को संचालित करते रहते हैं।
लेकिन फ़िलहाल ये ड्रोन ख़ुद युद्ध नहीं कर सकते हैं, इसलिए ऑपरेटर रिमोट कण्ट्रोल लेकर इन ड्रोनों को संचालित करते हैं। इस स्थिति में बदलाव कब होगा, इस बारे में अलिक्सान्दर मचालकिन ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा — ये रोबोट ख़ुद को कण्ट्रोल कर सकते हैं, लेकिन बदलती हुई स्थिति में ये ख़ुद कोई भी ठीक-ठीक फ़ैसला अभी नहीं ले पाते हैं। इसका मतलब यह है कि ये मशीनें रोबोट तो हैं, लेकिन ये मशीनें बिना ऑपरेटर के नहीं चलाई जा सकती हैं।
स्मार्ट मिसाइल
रूसी सामरिक परमाणु सेना और नौसैनिक हथियारों के उत्पादन के अनूठे क्षेत्र में रूसी वैज्ञानिकों ने पिछली सदी के आठवें दशक में ही ऐसे मिसाइल बना लिए थे, जो कृत्रिम बुद्धि का उपयोग किया करते थे।
रूस ने दो आधुनिकतम टोही विमानों को सीरिया क्यों भेजा
इन मिसाइलों के बीच रूसी नौसेना द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला सबसे गुप्त पोतनाशक क्रूज मिसाइल ’ग्रनीत’ (ग्रेनाइट) भी है, जिसे नाटो ’एसएस-एन-19 शिपरैक मिसाइल’ के नाम से पहचानता है। यह पहला मिसाइल था, जो मनुष्य-बुद्धि के समान कृत्रिम-बुद्धि से लैस था। इसकी त्वरित गति, अप्रत्याशित हमले और इसकी भारी ताक़त के कारण इसे ’पोतनाशक हत्यारा’ भी कहा जाता है। यह मिसाइल परियोजना 1144 के ’अरलान’ नामक एटमी रॉकेट क्रूजर युद्धपोतों पर और परियोजना 949 की ’अन्तेय’ नामक हमलावर पनडुब्बियों पर तैनात है।
रूस के ’रक्षा उद्योग संग्रहालय’ के सहकर्मी व्लदीमिर पलिचेन्का ने बताया — इस मिसाइल की मार्गदर्शन प्रणाली की ख़ासियत यह है कि इसमें लगे कम्प्यूटर में विदेशी नौसेनाओं के पास उपस्थित युद्धपोतों के इलैक्ट्रोनिक चित्र और उनसे सम्बन्धित जानकारियाँ भरी हुई हैं।
कम्प्यूटर में न केवल युद्धपोतों के आकार-प्रकार के बारे में सारी जानकारियाँ शामिल हैं, बल्कि उसमें उनके उन विभिन्न इलेक्ट्रो-चुम्बकीय आयामों से जुड़ी वे दुर्लभ सूचनाएँ भी हैं, जो हर युद्धपोत की अलग-अलग होती है।
उन्होंने बताया — इसके अलावा इस मिसाइल में लगे कम्प्यूटर में हर युद्धपोत के बारे में कुछ विशेष ऐसी जानकारियाँ भी भरी हुई हैं, जो यह पता लगाने में मिसाइल की सहायता करती हैं कि उसे कौनसे युद्धपोत पर हमला करना है। वह युद्धपोत विमानवाहक युद्धपोत है, सामान्य युद्धपोत है या किसी नौसैनिक बेड़े में शामिल काफ़िला-युद्धपोत है।
रूस दुनिया का सबसे बड़ा विमानवाहक युद्धपोत क्यों बना रहा है
एक रूसी पनडुब्बी पर ’ग्रनीत’ (ग्रेनाइट) नामक ऐसे 24 मिसाइल तैनात हैं और इन्हें एक साथ ही छोड़ा जाता है। पहला मिसाइल पनडुब्बी से रवाना होने के बाद तब तक उसी जगह पर चक्कर काटता रहता है, जब तक कि सभी 24 मिसाइल पनडुब्बी छोड़कर रवाना नहीं हो जाते।
व्लदीमिर पलिचेन्का ने बताया — जब सभी मिसाइल पनडुब्बी छोड़कर हवा में इकट्ठे हो जाते हैं तो वे एक झुण्ड के रूप में लक्ष्य पर हमला शुरू करते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि मिसाइलों के इस झुण्ड में वह लक्ष्य, जिस पर हमला करना है, सिर्फ़ एक ही मिसाइल को दिखाई दे रहा हो। वह एक मिसाइल बाक़ी सभी मिसाइलों को यह बता देता है कि लक्ष्य कहाँ पर है। वही मिसाइल हमले की रणनीति तय करके बाक़ी मिसाइलों को उनकी भूमिकाएँ भी सौंप देता है कि कौन-से मिसाइल युद्धपोत पर हमला करेंगे और कौन-कौनसे मिसाइल दुश्मन के उस युद्धपोत पर तैनात हवाई सुरक्षा प्रणाली को आकर्षित करके अपनी बलि देंगे। इसके बाद ही ये मिसाइल अपना हमला शुरू करते हैं।
मुख्य लक्ष्य की पहचान करके ये मिसाइल तुरन्त अपनी भूमिकाएँ और अपने उद्देश्य तय कर लेते हैं और एक के बाद एक उस लक्ष्य के विभिन्न महत्वपूर्ण हिस्सों को नष्ट करना शुरू कर देते हैं।
इन ’ग्रनीत’ (ग्रेनाइट) मिसाइलों की मार से बचना असम्भव होता है। ये मिसाइल आवाज़ की गति से भी तेज़ सुपरसोनिक गति से उड़ान भरते हैं और बड़ी जल्दी-जल्दी पैंतरे बदलते रहते हैं। इस वजह से आधुनिकतम राडारों से भी इनको ढूँढ़ पाना मुश्किल होता है। इनके हमले को सिर्फ़ नंगी आँखों से ही देखा जा सकता है। और इस तरह के हमले को देखने के बाद इतना समय ही नहीं बचता की आत्मरक्षा के लिए कोई क़दम उठाया जा सके।
’ग्रनीत’ की जगह कौनसे मिसाइल लेंगे
आजकल रूसी नौसैनिक बेड़े को नवीनतम पी-800 ’ओनिक्स’ मिसाइल मिलने शुरू हो गए हैं, जो ’ग्रनीत’ की जगह ले रहे हैं। नाटो इन मिसाइलों को ’एसएस-एन-26 स्ट्रोबाइल’ के नाम से पहचानता है। यह नया मिसाइल आकार में ’ग्रनीत’ से छोटा है, लेकिन उसी की तरह कृत्रिम बुद्धि से लैस है।
रूस के रक्षा उपमन्त्री यूरी बरीसफ़ ने बताया कि रक्षा मन्त्रालय ने यह फ़ैसला कर लिया है कि वह अपनी परियोजना 949 की ’अन्तेय’ नामक पनडुब्बियों और परियोजना 1144 की ’अरलान’ नामक युद्धपोतों का आधुनिकीकरण करेगा और इन पनडुब्बियों व युद्धपोतों में तैनात 24 ’ग्रनीत’ मिसाइलों की जगह ’ओनिक्स’ मिसाइलों के तीन-तीन कण्टेनर लगाएगा।
इस तरह इन पनडुब्बियों और युद्धपोतों पर 24 की जगह 72 नवीनतम सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल तैनात होंगे और ये पनडुब्बियाँ व युद्धपोत वास्तव में समुद्र में तैरते हुए अजेय गढ़ों (किलों) में बदल जाएँगे। परियोजना 1144 का ’एडमिरल नख़ीमफ़’ नामक पहला युद्धपोत इन दिनों सिविरादोनस्क की गोदी में खड़ा हुआ है ताकि उसमें पुराने मिसाइलों को हटाकर नए मिसाइल तैनात किए जा सकें। सुदूर पूर्व के बन्दरगाह में भी परियोजना 949 की एक पनडुब्बी इसी उद्देश्य से गोदी में आकर खड़ी हो चुकी है।
टैंक बैथलॉन में भारत पहली बार अपने 'अर्जुन' और 'भीष्म' टैंकों के साथ भाग लेगा