अन्य लड़ाकू विमानों से मिग-35 क्यों बेहतर है
रूस के सँयुक्त विमान निर्माण निगम के प्रमुख यूरी स्ल्यूसर ने रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन को यह जानकारी दी कि मस्क्वा ज़िले में चार प्लस-प्लस पीढ़ी के नवीनतम मिग पैंतीस रूसी लड़ाकू विमान के उड़ान सम्बन्धी परीक्षण शुरू हो गए हैं।
थलसेना द्वारा की जा रही कार्रवाइयों के समय यह विमान थलसेना की सहायता करेगा और दुश्मन के सैन्य ठिकानों को नष्ट करने में मुख्य भूमिका निभाएगा। विमान निर्माण कारख़ाने ’सुखोई’ द्वारा उत्पादित एसयू-34 भी ऐसा ही एक बमवर्षक विमान है, जिसका उपयोग रूस की वायुसेना ने सीरिया में आतंकवादी गिरोह ’इस्लामी राज्य’ (आईएस) के विरुद्ध बड़ी सक्रियता से किया है।
सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस नवीनतम लड़ाकू मिग-35 विमान के निर्यात की भी काफ़ी सम्भावनाएँ हैं। भारत और पश्चिमी एशिया के देश इस लड़ाकू विमान को ख़रीदने में भारी दिलचस्पी दिखाएँगे।
मिग-35 लड़ाकू विमान कैसा है
यह मिग-29 विमान का ही नया संस्करण है, लेकिन इसमें बहुत से बदलाव और सुधार किए गए हैं।
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रूस के सूचना तकनीक विश्वविद्यालय के ’यांत्रिकी व ऊर्जा प्रणाली’ अन्तरराष्ट्रीय प्रयोगशाला के प्रमुख पाविल बुलात ने रूस-भारत संवाद को बताया — मिग-35 विमानों को लेजर हथियारों सहित आजकल इस्तेमाल किए जाने वाले या भविष्य में बनाए जाने वाले सभी तरह के हथियारों से लैस किया जा सकता है। यह विमान इस तरह से बनाया गया है कि गहन् युद्ध की परिस्थितियों में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। मिग-35 का इस्तेमाल न सिर्फ़ शत्रु के लड़ाकू विमानों के ख़िलाफ़ किया जा सकता है, बल्कि वह दुश्मन की हवाई सुरक्षा प्रणालियों को भेदने की भी क्षमता रखता है।
भारत के आकाश में रूसी ’मिग’ विमानों का राज है
विमान में लगे नवीनतम उपकरणों, नई क़िस्म के राडार और आलोपन-तकनीक की बदौलत मिग-35 विमान एक अनूठा विमान बन गया है।
मिग-35 विमान में साढ़े छह टन हथियार और गोला-बारूद लादा जा सकता है। यह विमान इतना सक्षम है कि 10 से लेकर 30 ठिकानों पर एक साथ नज़र रख सकता है और उनमें से छह ठिकानों पर एक साथ हमला कर सकता है। ये ठिकाने 130 किलोमीटर दूर बने ज़मीनी ठिकाने भी हो सकते हैं या हवा में उड़ते हवाई निशाने भी।
निर्यात की सम्भावना
रूस-भारत संवाद से बात करते हुए ’जन्मभूमि के शस्त्रागार’ नामक रूसी पत्रिका के प्रमुख सम्पादक वीक्तर मुराख़ोव्स्की ने कहा — नए विमान को इस तरह से बनाया गया है कि उसका आसानी से निर्यात किया जा सके तथा उसमें हर देश की माँगों के अनुसार बदलाव करके उसे हर देश की सेना के अनुकूल ढाला जा सके। ख़ासकर जो देश आजकल चौथी पीढ़ी के हलके मिग-29 विमान का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनके लिए यह विमान बेहद उपयोगी सिद्ध होगा।
उन्होंने बताया — सबसे पहले तो पश्चिमी एशिया के देश इस नए लड़ाकू विमान को ख़रीदना चाहेंगे। इसके अलावा हम भारत के सामने भी इस विमान को ख़रीदने का प्रस्ताव रखेंगे। 2011 में भारत मिग-35 ख़रीदने में दिलचस्पी दिखा रहा था। लेकिन तब 10 अरब डॉलर का वह अनुबन्ध हमारी जगह फ़्राँस को मिल गया था और भारत ने फ़्राँस के रफ़ाल विमान को प्राथमिकता दी थी।
मिग-35 इन्फ़ोग्राफ़िक
तब भारत ने जो टेण्डर निकाला था, उसके अनुसार भारतीय वायुसेना 10 अरब डॉलर में 126 विमान ख़रीदना चाहती थी। फिर 2016 में फ़्राँस से हुए अनुबन्ध के अनुसार, उन्हीं 10 अरब डॉलर में भारत को सिर्फ़ 36 रफ़ाल विमान मिलेंगे।
यूरोपीय और अमरीकी विमानों से तुलना
नए अभिनव मिग विमान की क़ीमत क़रीब एक अरब रूबल या 1 करोड़ 68 लाख डॉलर है। रूसी विशेषज्ञों का कहना है कि फ़्राँसीसी रफ़ाल जैसे विदेशी प्रतिस्पर्धी लड़ाकू विमानों के मुक़ाबले रूसी विमान की क़ीमत क़रीब-क़रीब आधी है और यही उसकी ख़ासियत है।
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पाविल बुलात ने रूस-भारत संवाद को बताया — रूसी मिग-35 विमान अमरीकी नौसेना के प्रमुख लड़ाकू और बमवर्षक विमान एफ़-18 से एकदम मिलता-जुलता है। दोनों ही विमानों की वायुगतिकी और पैंतरे बदलने की क्षमता यानी चपलता एक जैसी है। लेकिन मिग-35 विमान का इंजन थोड़ा कमज़ोर है और उसकी भारवहन क्षमता रफ़ाल और यूरोफ़ाइटर विमानों से ज़रा-सी कम है।
लेकिन पाविल बुलात का मानना है कि रूसी मिग-35 विमान अमरीका के पाँचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान को आकाश में होने वाली रेस में पछाड़ सकता है।
भारत-रूस पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान में 4-4 अरब डॉलर लगाएँगे
पाविल बुलात ने कहा — पर हाथी जैसे भारी अमरीकी लड़ाकू विमान एफ -35 लाइटनिंग द्वितीय के सामने पैंतरेबाज़ी और चपलता में रूसी विमान अमरीकी विमान से कहीं श्रेष्ठ होगा। लेकिन अमरीकी एफ-22 रैप्टर विमान के सामने मिग-35 विमान कमज़ोर साबित होगा। यहाँ मिग-35 को जीतने के लिए कम से कम तीन गुनी ताक़त की ज़रूरत होगी।
मिग-35 विमान और रूसी सेना की ज़रूरत
रूस के सूचना तकनीक विश्वविद्यालय के ’यांत्रिकी व ऊर्जा प्रणाली’ अन्तरराष्ट्रीय प्रयोगशाला के प्रमुख पाविल बुलात ने रूस-भारत संवाद से कहा — रूसी सेना में सभी मिग-29 विमानों की जगह मिग-35 विमान ले लेंगे। मेरे हिसाब से रूसी सेना को 80 से 100 तक मिग-35 लड़ाकू और बमवर्षक विमानों की ज़रूरत होगी और 120 से 150 तक सिर्फ़ लड़ाकू विमानों की आवश्यकता होगी।
लेकिन इस नए विमान के सिलसिले में सभी विश्लेषकों ने ऐसा आशापूर्ण विश्लेषण नहीं किया है। समाचार समिति तास के सैन्य विश्लेषक और पूर्व कर्नल वीक्तर लितोफ़किन का कहना है कि रूसी वायुयान निर्माताओं ने यह विमान कई साल देर से पेश किया है।
रूस-भारत संवाद से बात करते हुए उन्होंने कहा — मुझे लगता है कि रूस के राष्ट्रपति को जानकारी देने का यह खेल या यह प्रदर्शन सिर्फ़ इसलिए किया गया है ताकि रूस और दुनिया को यह बताया जा सके कि विमान निर्माण कम्पनी ’मिग’ भी अभी ज़िन्दा है और वह विमान निर्माण कम्पनी ’सुख़ोई’ से प्रतिस्पर्धा में पीछे नहीं छूटी है। लोगों को यह बताना ज़रूरी था कि मस्क्वा अंचल में बना लुख़ोवित्सी विमान निर्माण कारख़ाना अभी भी काम कर रहा है और उसके पास आर्डरों की कमी नहीं है।
उन्होंने इस बारे में भी सन्देह व्यक्त किया कि रूसी सेना के सभी मिग-29 विमानों को मिग-35 नामक हलके विमानों से बदल दिया जाएगा।
वीक्तर लितोफ़किन ने कहा — विमान निर्माण कम्पनी ’मिग’ के पास मस्क्वा ज़िले में एक छोटा-सा विमान निर्माण कारख़ाना है, जो अकेले ही इतने ज़्यादा विमानों का निर्माण नहीं कर सकता कि रूसी सेना के सब विमानों को बदला जा सके। इसके लिए बड़ी मात्रा में रूस की सरकार को और विदेशी ग्राहकों को पूंजी निवेश करना होगा कि इस कारख़ाने को फिर से कार्य-सक्षम बनाया जा सके और उसमें जान फूँकी जा सके।
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