रूसी और भारतीय पायलटों को एक-दूसरे के अनुभवों से लाभ उठाना चाहिए
दिल्ली स्थित सेण्टर फ़ॉर एयर पॉवर स्टडीज के माननीय फ़ैलो और भारत के पूर्व एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर का मानना है कि रूस और भारत की वायुसेनाओं को नियमित रूप से सँयुक्त सैन्याभ्यास करने चाहिए।
विवेकानन्द इण्टरनेशनल फाउण्डेशन और रूसी इण्टरनेशनल अफेयर्स काउंसिल द्वारा विगत 30 मार्च को मिलकर आयोजित किए गए सम्मेलन के दौरान रूस-भारत संवाद से बात करते हुए पूर्व एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर ने कहा — रूस और भारत की थलसेनाएँ और नौसेनाएँ नियमित रूप से सँयुक्त सैन्याभ्यास करती हैं, लेकिन दो देशों की वायुसेनाएँ इस तरह के अभ्यास बहुत कम करती हैं। हालाँकि भारत की वायुसेना में ज़्यादातर रूस में निर्मित मिग-21, मिग-23, मिग-27 और एसयू-30 जैसे लड़ाकू विमान हैं, लेकिन फिर भी ऐसा नहीं किया जाता। यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि हमारे दोनों देशों के विमान चालक आपसी अनुभवों का आदान-प्रदान नहीं करते हैं।
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इसका सम्भावित कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि शायद एक-दूसरे की भाषा की जानकारी न होने से इसमें बाधा पड़ती होगी। उन्होंने कहा — आकाश में एक-दूसरे के साथ सम्पर्क रखना महत्वपूर्ण होगा, इसलिए इस समस्या को दूर किया जाना चाहिए। हमें एक-दूसरे से सीखने के लिए सँयुक्त रूप से वायुसैनिक अभ्यास ज़रूर करने चाहिए।
भारतीय पायलट दूसरे देशों के पायलटों के मुकाबले रूसी सैन्य उपकरणों और रूसी तकनीक से अच्छी तरह परिचित हैं और आने वाले कम से कम चार दशकों तक उन्हें रूसी तकनीक का ही इस्तेमाल करना होगा।
रूस और भारत की वायुसेनाओं ने पिछला सँयुक्त सैन्याभ्यास 2014 में किया था।
आविया इन्द्र - 2014 सँयुक्त सैन्याभ्यास दो दौरों में किया गया था।
इस सैन्याभ्यास का पहला दौर वरोनिझ के पगोनवा परीक्षण मैदान और आस्त्रख़न के अशुलूक प्रशिक्षण मैदान में हुआ था। सैन्याभ्यास के दौरान आकाश में आईएल-78 टैंकर वायुयान ने एसयू-30एसएम लड़ाकू विमान को ईंधन की आपूर्ति भी की थी।
सैन्याभ्यास का दूसरा दौर पंजाब में हुआ था, जिसमें एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमानों के अलावा एमआई-17 और एमआई-35 हैलिकॉप्टरों ने भी भाग लिया था।
भारत-रूसी सँयुक्त सैन्याभ्यास — इन्द्र 2016