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’लूनाख़ोद’ नामक नई चन्द्रगाड़ी बना रहा है रूस

चन्द्रमा पर रूसी अनुसन्धान केन्द्र की स्थापना करने में रूस की सहायता करने वाली इस चन्द्रगाड़ी के निर्माण में रूस के वही संगठन भाग ले रहे हैं, जिन्होंने सोवियत सत्ता काल में भी चन्द्रगाड़ी बनाई थी। ये संगठन हैं – रूस की विज्ञान अकादमी का अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन, रूसी अन्तरिक्ष संगठन का मुख्य विज्ञान संस्थान यानी केन्द्रीय इंजीनियरिंग अनुसन्धान संस्थान और लावचकिन वैज्ञानिक उत्पादन संगठन आदि।

सोवियत अनुसन्धान ही आगे जारी रखे जाएँगे

केन्द्रीय रोबट व साइबर तकनीक वैज्ञानिक शोध एवं डिजाइन संस्थान  के इंजीनियर और डिजाइनर अलिक्सान्दर ख़खलोफ़ ने कहा –  इन चन्द्रगाड़ियों के निर्माण के काम को रूसी वैज्ञानिक सन् 2026 से 2035 तक के लिए बनाए गए संघीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम में शामिल करना चाहते हैं। अगर ऐसा हो गया और रूस की सरकार वित्तीय अनुदान उपलब्ध कराती रही तो 2031 के आसपास रूस चन्द्रमा पर अनुसन्धान केन्द्र बनाकर तैयार कर देगा। 

B. Borisov/ RIA Novosti

लूनाख़ोद-1 – 17 नवम्बर 1970 को यह चन्द्रगाड़ी चाँद पर पहुँची थी और इसने वहाँ शीतकाल के दौरान दस महीने से ज़्यादा काम किया। 

RIA Novosti

लूनाख़ोद-2  – यह चन्द्रगाड़ी 15 जनवरी 1973 को चाँद पर पहुँची थी। इसने साढ़े चार महीने तक काम किया, लेकिन बाद में चन्द्रमा की धूल इसके सौर पैनलों में घुस गई और चन्द्रगाड़ी की बैटरी ने काम करना बन्द कर दिया।   

Dzis-voynarovskiy/wikipedia.org

लूनाख़ोद-3 – 1977 में इसे चन्द्रमा पर भेजे जाने की योजना र्थी। लेकिन बाद में वह अभियान स्थगित कर दिया गया। आजकल यह चन्द्रगाड़ी  लावचकिन वैज्ञानिक उत्पादन संगठन के संग्रहालय में रखी हुई है। ये सभी चन्द्रगाड़ियाँ चन्द्रमा पर अनुसन्धान केन्द्र की स्थापना में योग देंगी। नई चन्द्रगाड़ी का निर्माण किया जा रहा, जिसकी अनुमानित लागत 3 लाख डॉलर या करीब दो करोड़ रुपए होगी।

सोवियत संघ ने पहली चन्द्रगाड़ी 1969 में चाँद पर भेजी थी। कुल मिलाकर सोवियत संघ ने चन्द्रमा के अनुसन्धान के तीन अभियान चलाए थे और उन तीनों अभियानों के दौरान चाँद की सतह का अध्ययन और चाँद पर सूर्य किरणों के विकिरण का अध्ययन किया गया था, चाँद की तस्वीरें खींची गई थीं और चन्द्रमा की मिट्टी का रसायनिक विश्लेषण करने के अलावा अन्य बहुत-सा काम पूरा किया गया था।

रूसी अन्तरिक्ष यात्री 2031 में पहली बार चाँद पर उतरेंगे

इन अभियानों के फलस्वरूप चन्द्रमा के समुद्रों और महाद्वीपों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के साथ-साथ उसका भौगोलिक नक़्शा भी बना लिया गया था। अब वैज्ञानिक चन्द्रमा का भूवैज्ञानिक नक़्शा बनाना चाहते हैं तथा यह जानना चाहते हैं कि चन्द्रमा की भूमि में कौन-कौन से खनिज-पदार्थ छिपे हुए हैं। वे उसकी खनिज संरचना के बारे में विस्तार से जानकारी पाना चाहते हैं। 

अन्तरिक्ष नीति संस्थान के संचालक इवान मोइसियिफ़ ने कहा – नई चन्द्रगाड़ियाँ तकनीकी रूप से अधिक सक्षम और हलकी होंगी। वे सोवियत काल में शुरू किए गए अनुसन्धानों को और आगे बढ़ाएँगी और विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराएँगी।

 चन्द्रमा पर अनुसन्धान केन्द्र बनाकर चन्द्रमा का अध्ययन

चन्द्रमा का अध्ययन करने के लिए ’लूना ग्लोब’ और ’लूना रिसूर्स’ नाम की स्वचालित चन्द्रगाड़ियाँ बनाई जाएँगी। और फिर 1931 में चन्द्रयात्रियों को चाँद पर भेजा जाएगा। बाद में चन्द्रमा पर ऐसा अनुसन्धान केन्द्र बनाया जाएगा, जहाँ पर रहकर वैज्ञानिक चन्द्रमा का अध्ययन और अनुसन्धान कर सकेंगे। 

लूना ग्लोब।

सन् 2019 में चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में  स्थित बगूस्लफ़स्कया क्रेटर में ’लूना-25’ या ’लूना ग्लोब’ नामक टोही चन्द्रगाड़ी उतारी जाएगी। यह चन्द्रगाड़ी चन्द्रमा पर पानी की खोज करेगी। चन्द्रमा पर अनुसन्धान केन्द्र बनाने के लिए और मिसाइल ईंधन बनाने के लिए पानी बेहद ज़रूरी है। न्यूट्रान डिटेक्टरों से मिली जानकारी के अनुसार, चन्द्रमा पर बर्फ़ होने के निशान मिले हैं।  

लूना रिसूर्स।

अन्तरिक्ष में कार्यरत अन्तरराष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन के बाद चन्द्रमा पर अनुसन्धान केन्द्र का निर्माण अन्तरिक्ष के अनुसन्धान के विकास से जुड़ा एक स्वभाविक क़दम है। रूस, यूरोप, अमरीका और चीन चन्द्रमा को इसी दृष्टि से देखते हैं।  अन्तरिक्ष नीति संस्थान के संचालक इवान मोइसियिफ़ ने कहा – जैसे पहले पृथ्वी पर उत्तरी ध्रुव का इस्तेमाल करने के लिए विभिन्न देशों के बीच प्रतियोगिता शुरू हो गई थी, शायद जल्दी ही क़रीब-क़रीब वैसी ही प्रतियोगिता चन्द्रमा के ध्रुवों पर कब्ज़ा करने के लिए भी शुरू हो जाएगी।

अन्तरिक्ष नीति संस्थान के संचालक इवान मोइसियिफ़ ने कहा – इस सिलसिले में रूसी विज्ञान अकादमी की अपनी अवधारणा है। वह चन्द्रमा पर अनुसन्धान केन्द्र बनाकर वहाँ बड़ी संख्या में ऐसी चन्द्रगाड़ियाँ छोड़ देना चाहती है, जो पूरे चाँद का चक्कर लगाएँगी। हो सकता है कि इस सदी के आखिर तक चन्द्रमा पर मिसाइल ईंधन बनाना तथा अन्तरिक्ष में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियों का उत्पादन करना पृथ्वी पर उनके उत्पादन से कहीं बहुत सस्ता पड़े। 

रूस को शुक्र ग्रह की, भला, क्या ज़रूरत है?

इवान मोइसियिफ़ ने विश्वास व्यक्त किया – अगर चन्द्रमा पर पानी नहीं भी मिला तो भी अनुसन्धान केन्द्र तो वहाँ बनाया ही जाएगा। ऑक्सीजन, हाइड्रोजन और पानी मिट्टी से भी निकाले जा सकते हैं।

चन्द्रमा पर क्या काम किया जाएगा 

1923 में लूना-27 या लीन-रिसूर्स-1 चन्द्रगाड़ी चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव के इलाके में उतरेगी, जिसपर 50 किलो विभिन्न प्रकार के उपकरण भी होंगे। इन उपकरणों में निम्न तापमान वाले इलाकों में ज़मीन में छेद करने वाली यूरोपीय ड्रिल मशीन भी होगी, जो इस तरह से चन्द्रमा की ज़मीन में छेद करेगी कि उसकी मिट्टी से वे तत्व भाप बनकर न उड़ जाएँ, जो ड्रिलिंग के दौरान उड़ सकते हैं। अगर 2023 में चन्द्रमा पर किया जाने वाला यह अभियान असफल रहेगा तो 2025 में इस अभियान को फिर से दोहराया जाएगा।

इसके साथ-साथ 2023 में चन्द्रमा की परिधि पर हलके इंजन वाला एक ऐसा अन्तरिक्ष यान भी छोड़ा जाएगा, जो दस किलो तक का वज़न खींचने में सक्षम होगा। 

एक अन्य चन्द्र-कार्यक्रम के अनुसार, लूना-28 यानी लूना रिसूर्स-2 या लूना-ग्रून्त नामक 3 टन वज़नी एक टोही चन्द्रगाड़ी भी चन्द्रमा पर पहुँचाई जाएगी, जो चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव से मिट्टी उठाकर पहुँचाएगी। पिछली बार रूसी वैज्ञानिकों ने पिछली सदी के आठवें दशक में चन्द्रमा पर ऐसी ही एक चन्द्रगाड़ी का इस्तेमाल किया था। इस बार चन्द्रमा की मिट्टी  वैक्यूम कण्टेनर में भरकर लाई जाएगी। इसके बाद रूसी अन्तरिक्ष यात्री चन्द्रयान में बैठकर चन्द्रमा का चक्कर लगाएँगे।

चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो : अन्तरिक्ष में 55 बरस

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